डोगरा रेजिमेंट की मोटर बाईक रैली से जवान देश की एकता व अखंडता का संदेश देकर पूर्व सैनिकों की समस्याओं का डाटाबेस तैयार कर रहे हैं
भारतीय सेना में डोगरा रेजिमेंट में ज्वालामुखी का खास महत्व रहा है। डोगरा जवान जो टोपी पहनते हैं। उस पर शेर का चिन्ह है,जो देवी दुर्गा का वाहन माना जाता है। वहीं युद्ध के समय जवानों की बैटल क्राई ज्वाला माता की जय है। यही वजह है कि डोगरा जवानों की ज्वालामुखी के प्रति गहरी आस्था रही है। जिसका प्रदर्शन समय समय पर यहां आकर डोगरा जवान करते रहे हैं। ज्वालामुखी में डोगरा जवानों ने कई स्मारक बनवाए हैं
ज्वालामुखी । डोगरा रेजिमेंट के जवानों की मोटर बाइक रैली जो पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के फैजाबाद से चली थी, जालंधर ,मुकेरियां , जम्मू , पठानकोट व धर्मशाला होते हुए आज कांगडा जिला के ज्वालामुखी पहुंची। यहां रैली का इलाके पूर्व सैनिकों ने जोरदार स्वागत किया।
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भारतीय सेना में डोगरा रेजिमेंट में ज्वालामुखी का खास महत्व रहा है। डोगरा जवान जो टोपी पहनते हैं। उस पर शेर का चिन्ह है,जो देवी दुर्गा का वाहन माना जाता है। वहीं युद्ध के समय जवानों की बैटल क्राई ज्वाला माता की जय है। यही वजह है कि डोगरा जवानों की ज्वालामुखी के प्रति गहरी आस्था रही है। जिसका प्रदर्शन समय समय पर यहां आकर डोगरा जवान करते रहे हैं। ज्वालामुखी में डोगरा जवानों ने कई स्मारक बनवाए हैं।
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रेजिमेंटल सेंटर फैजाबाद से पिछले दिनों यह बाइक रैली कैप्टन रवि प्रताप की अगुवाई में शुरू हुई थी। जिसका मकसद देश भक्ति व सेना के प्रति लोगों में जागरूकता के अलावा रेजिमेंट के पूर्व सैनिकों व वीर नारियों से मिलकर उन्हें पेश आ रही दिक्कतों को जानना और उनके निवारण में सहयोग करना है। अगले साल रेजिमेंट अपने गठन के सौ साल पूरे होने पर एक भव्य कार्यक्रम करने जा रही है। उसका प्रचार भी जवान कर रहे है।
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मोटर बाईक रैली के टीम लीडर कैप्टन रवि प्रताप ने बताया कि यह रैली चंडीगढ़ से होते हुए मेरठ तक जायेगी। यह रैली डोगरा बेल्ट में गई है। रैली का मकसद पूर्व सैनिकों से मिलना व उनकी मुश्किलों को जानना है। हम घर घर जायेंगे व एक डाटा तैयार कर अपनी रेजिमेंट को देंगे। ताकि उनकी समस्याओं का समाधान हो। हम सबको देश की एकता व अखंडता के लिये डटे रहना है। चाहे हम सेवा काल में हों या रिटायर ।
162 साल पुरानीडोगरा रेजिमेंट का युद्धघोष ज्वाला माता की जय है । शारीरिक-मानसिक रूप से मजबूत लेकिन विनम्र और शिष्ट डोगरा जवानों को ईस्ट इंडिया कंपनी के कमांडर इन चीफ सर फ्रेडरिक ने आगरा लेवी के नाम से 1858 में भारतीय सेना में भर्ती करना शुरू किया । बाद में आगरा लेवी का नाम 38 डोगरा किया गया । 1887 में 37 डोगरा और 1900 में 41 डोगरा का गठन किया गया । इन तीनों रेजिमेंट्स से डोगरा रेजिमेंट्स की नींव पड़ी ।
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जम्मू और हिमाचल के पहाड़ी इलाकों के अलावा उत्तरी पंजाब के पहाड़ी इलाकों के डोगरा जवानों को इस रेजीमेंट में जगह मिलती है । ये जवान मुख्य रूप से सतलुज और झेलम के बीच की हिमालय की पहाड़ी इलाकों से आते हैं । इनका युद्धघोष है ज्वाला माता की जय जिससे भी इनकी संस्कृति की झलक मिलती है । सभी डोगरा हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के ज्वालामुखी मंदिर में अटूट श्रद्धा रखते हैं जिसे आदिशक्ति माना जाता है. इन्हें जैंटलमेन वारियर्स कहा जाता है ।
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