पूर्व खनन कारोबारी जनार्दन रेड्डी की नयी पार्टी से कर्नाटक में चुनावी मुकाबला दिलचस्प हुआ
बल्लारी सीट से जी जनार्दन रेड्डी के बड़े भाई जी सोमशेखर रेड्डी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मौजूदा विधायक हैं। अवैध खनन मामले में आरोपी जी जनार्दन रेड्डी ने भाजपा से अपना दो दशक पुराना नाता तोड़ने के बाद हाल ही में ‘‘कल्याण राज्य प्रगति पक्ष’’ (केआरपीपी) पार्टी का गठन किया था।
बेंगलुरु। कर्नाटक के पूर्व मंत्री एवं खनन कारोबारी जी जनार्दन रेड्डी द्वारा एक नयी पार्टी का गठन करने से राज्य के कुछ हिस्सों में चुनावी मुकाबला दिलचस्प हो गया है। जी जनार्दन रेड्डी द्वारा नयी पार्टी बनाने और बल्लारी विधानसभा सीट से अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में उतारने से रेड्डी परिवार में दरार पड़ने के संकेत मिलते हैं। बल्लारी सीट से जी जनार्दन रेड्डी के बड़े भाई जी सोमशेखर रेड्डी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मौजूदा विधायक हैं। अवैध खनन मामले में आरोपी जी जनार्दन रेड्डी ने भाजपा से अपना दो दशक पुराना नाता तोड़ने के बाद हाल ही में ‘‘कल्याण राज्य प्रगति पक्ष’’ (केआरपीपी) पार्टी का गठन किया था।
केआरपीपी कल्याण-कर्नाटक क्षेत्र (पहले हैदराबाद-कर्नाटक) के कुछ जिलों, खासतौर से बल्लारी, कोप्पल और रायचुर में ध्यान केंद्रित कर रही है। कर्नाटक में अप्रैल-मई में होने वाले विधानसभा चुनाव में महज कुछ महीने बाकी रहने के मद्देनजर केआरपीपी के गठन ने उसके संभावित असर को लेकर बहस शुरू कर दी है।
बल्लारी जिले के बाहर कर्नाटक की चुनावी राजनीति में फिर से कदम रखते हुए जी जनार्दन रेड्डी ने यह भी घोषणा की कि वह कोप्पल जिले में गंगावती से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। कई राजनीतिक नेताओं और पर्यवेक्षकों का मानना है कि वह अदालत द्वारा लगाई पाबंदी के कारण अपने गृह जिले में प्रवेश न करने के लिए मजबूर हैं।बहरहाल, परिवार में विभाजन, कोई मजबूत जातीय आधार न होने और लंबे समय से मित्र रहे वाल्मीकि समुदाय (अनुसूचित जाति) के बी. श्रीरामुलु जैसे प्रभावशाली जातिवादी नेता का समर्थन न मिलने से चुनावों में उनकी पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंच सकता है। एक नेता ने कहा, ‘‘चुनावों में विरोधी उन्हें (जी जनार्दन रेड्डी को) बाहरी नेता के रूप में दिखाने की कोशिश कर सकते हैं, क्योंकि रेड्डी समुदाय तेलुगु भाषी है, जिसका ज्यादा आधार पड़ोसी आंध्र प्रदेश में है।’’ हालांकि, कुछ लोगों ने आगाह किया कि जी जनार्दन रेड्डी अपने फायदे के लिए लोगों को प्रभावित करने की कला में माहिर हैं। उन्होंने कहा कि रेड्डी ने विपक्षी विधायकों को भाजपा में शामिल कराने के लिए ‘‘ऑपरेशन कमल’’ के दौरान अपनी इस कला का सफल प्रदर्शन किया था।
रेड्डी खनन घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद करीब 12 साल तक राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं रहे। राज्य में 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने खुद को रेड्डी से अलग कर लिया था। भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था, ‘‘भाजपा का जनार्दन रेड्डी से कोई लेना-देना नहीं है।’’ पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा कि भाजपा जिस तरीके से उनके साथ बर्ताव कर रही थी तथा उन्हें नजरअंदाज कर रही थी, उससे रेड्डी परेशान थे। उन्होंने कहा कि केआरपीपी कुछ निर्वाचन क्षेत्रों, खासतौर से बल्लारी क्षेत्र में भाजपा पर असर डाल सकती है और उसके वोट काट सकती है। करोड़ों रुपये के अवैध खनन मामले में आरोपी रेड्डी 2015 से जमानत पर बाहर हैं और उच्चतम न्यायालय में उन पर कई शर्तें लगाई हैं, जिनमें कर्नाटक के बल्लारी तथा आंध्र प्रदेश के अनंतपुर और कड़पा में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध शामिल है। यही वजह है कि रेड्डी ने गंगावती से चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जो बल्लारी जिले की सीमा पर बल्लारी शहर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
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अपने गृह जिले में पकड़ बनाए रखने के मकसद से रेड्डी ने हाल ही में घोषणा की थी कि उनकी पत्नी अरुणा लक्ष्मी, बल्लारी शहर से आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगी। रेड्डी के बड़े भाई जी करुणकार रेड्डी और जी सोमशेखर रेड्डी क्रमश: हरपानहल्ली तथा बल्लारी शहर से भाजपा विधायक हैं। वहीं, उनके करीबी मित्र श्रीरामुलु भी चित्रदुर्ग जिले की मोलकालमुरु सीट से भाजपा विधायक एवं मंत्री हैं। तीनों ने स्पष्ट किया है कि वे भाजपा के साथ हैं और उनका जी जनार्दन रेड्डी की नयी पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है। अपनी पत्नी को बल्लारी शहर से चुनाव लड़ाने के जनार्दन रेड्डी के फैसले पर नाखुशी जताते हुए सोमशेखर रेड्डी ने अपने छोटे भाई की खातिर दी गई ‘‘कुर्बानियों’’ को याद किया। जनार्दन रेड्डी की बेटी ब्राह्मिणी ने भी राजनीति में कदम रखने की घोषणा की है। जनार्दन रेड्डी 1999 के लोकसभा चुनाव के दौरान चर्चा में आए थे, जब उन्होंने दिवंगत सुषमा स्वराज के लिए प्रचार किया था, जिन्होंने बल्लारी से सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। हालांकि, सुषमा स्वराज यह चुनाव हार गई थीं।
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