इमरजेंसी फ्लैशबैक: होटल से मिला संजय का इशारा और बुलडोजर लेकर पहुंच गई अमृता सिंह की मां, दिल्ली के 70 हजार घरों को उजाड़ दिया गया
संजय गांधी को लगा की जामा मस्जिद के पास चीजें और खूबसूरत नजर आनी चाहिए। इस काम में उनका सहयोग किया मशहूर एक्टर सैफ अली खान की पहली सास अमृता सिंह की मां रुखसाना सुल्ताना जो उन दिनों यूथ कांग्रेस में बेहद सक्रिय थी।
आपातकाल को 47 साल पूरे हो गए। 25 जून 1975 को हरेक नौजवान, आम इंसान, न्याय के इमान, देश के विधान और आजाद हिन्दुस्तान का सबसे मनहूस क्षण आया। जब अपनी सत्ता को बचाने के लिए संवैधानिक मान मर्यादा को कुचलते हुए देश पर आपातकाल थोप दिया गया। सभी मूलभूत अधिकार समाप्त कर दिए गए। समाचार पत्र पर भी पाबंदी लगा दी गई। विपक्षी दलों के प्रमुख नेता नजरबंद कर दिए गए। सभा, जुलूस, प्रदर्शन सभी पर रोक लगा दी गई। अदालतें स्वयं कैद हो चुकी थी, जो जमानत लेने और देने से साफ इनकार कर रही थी। एक लाख से अधिक राजनेताओं- कार्यकर्ताओं को गिरफ्तारी के समय यातनाएं सहनी पड़ी। इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी के इशारे पर देश में हजारों गिरफ्तारियां हुईं। क्या आप यह सोच सकते हैं कि देश की राजधानी दिल्ली में एक ही दिन में 70000 गरीबों को उनके घरों से उतारकर यमुना के पुश्ता में फेंक दिया जाएगा। जी हां, यह हुआ था और यह इमरजेंसी के दौरान हुआ था। यह वाक्य तुर्कमान गेट का है।
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संजय गांधी को लगा की जामा मस्जिद के पास चीजें और खूबसूरत नजर आनी चाहिए। इस काम में उनका सहयोग किया मशहूर एक्टर सैफ अली खान की पहली सास अमृता सिंह की मां रुखसाना सुल्ताना जो उन दिनों यूथ कांग्रेस में बेहद सक्रिय थी। रुखसाना ने तय कर लिया कि वह अपने गरीब मुसलमान भाइयों बहनों को समझाएंगे कि संजय गांधी की नीतियां चाहे वह नसबंदी सफाई इस्लाम को हटाना उनकी तरक्की के लिए कितनी जरूरी है। उस वक्त का एक किस्सा मशहूर है जब डीडीए के उपाध्यक्ष और संजय गांधी के चहेते जगमोहन संजय गांधी के साथ तुर्कमान गेट के एक होटल में मौजूद थे। तमाम जनप्रतिनिधियों ने बुलडोजर भेजने और बस्तियों को हटाने की कार्रवाई रोकने की दरख्वास्त की। लेकिन फिर भी बुलडोजर चला गोलियां भी चली कहा जाता है कि लोगों को लॉरियों में भरकर पुश्ता कि मेड शिफ्ट कॉलोनी में भेज दिया गया।
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उस वक्त 31 वर्ष की रुकसाना सुल्ताना को संजय गांधी का राईट हैंड कहा जाता था। सुल्ताना ने दिल्ली में जामा मस्जिद के आसपास संवेदनशील मुस्लिम इलाकों में एक साल में करीब 13 हजार नसबंदियां करवाईं। जगह-जगह पर कैंप लगाए गए। नसबंदी कराने वाले लोगों को 75 रूपए, काम से एक दिन की छुट्टी और एक डब्बा घी दिया जाता था। कहीं-कहीं पर सायकिल भी दी जाती थी। सफाई कर्माचारियों, रिक्शा चलाने वालों और मजदूर वर्ग के लोगों का जबरदस्ती नसबंदी करवाया गया।
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