'डियर साहित्यकार' में बोले IIMC के महानिदेशक, वर्तमान समय की मांग है निष्पक्ष पत्रकारिता
वैश्विक परिवर्तन में जनसंचार माध्यमों की भूमिका पर अपनी बात रखते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि तकनीक और प्रौद्योगिकी की बढ़ती भागीदारी ने हमारे जीवन को बदल दिया है। तकनीक का उपयोग किए जाने के आधार पर व्यापक लाभ हैं।
नई दिल्ली। भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने क्रेडेंट टीवी के कार्यक्रम 'डियर साहित्यकार' में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मीडिया हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। इसका हमारी भाषा और संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ता है। निष्पक्ष पत्रकारिता वर्तमान समय की मांग है। कार्यक्रम की मेजबानी युवा लेखिका एवं आलोचक डॉ. प्रणु शुक्ला ने की। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि हम इंटरनेट के उस दौर में जी रहे हैं, जहां झूठ के जरिये आप किसी को लंबे समय तक बहला नहीं सकते। आज सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक मिनट में झूठी खबरों को ट्रेस कर लेते हैं। वर्तमान में केवल पारदर्शी पत्रकारिता को महत्व दिया जाता है।
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वैश्विक परिवर्तन में जनसंचार माध्यमों की भूमिका पर अपनी बात रखते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि तकनीक और प्रौद्योगिकी की बढ़ती भागीदारी ने हमारे जीवन को बदल दिया है। तकनीक का उपयोग किए जाने के आधार पर व्यापक लाभ हैं। महामारी के दौरान प्रौद्योगिकी ने हमें जोड़े रखा और इसके माध्यम से हम लोगों की मदद कर पाए। आईआईएमसी के महानिदेशक के अनुसार पत्रकारिता का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। हम संचार की दुनिया में रहते हैं। मनुष्य संचार के बिना नहीं रह सकता, क्योंकि हम समाज का एक हिस्सा हैं। समय के अनुसार संचार के साधन विकसित होते रहेंगे। आज ऐप, ई-पेपर और सोशल मीडिया ने कागज, रेडियो और टेलीविजन की जगह ले ली है। मीडिया सिर्फ अपने रूप बदल रहा है, लेकिन समाचारों की खपत लगातार बढ़ रही है।
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युवा पीढ़ी को सलाह देते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि हमारे देश की युवा पीढ़ी स्मार्ट, इनोवेटिव और मेहनती है। विभिन्न देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीईओ आज भारतीय हैं। वे भारत को दुनियाभर में गौरवान्वित कर रहे हैं। आज भारत शक्तिशाली होता जा रहा है और एक दिन वह दुनिया का नेतृत्व करेगा। क्रेडेंट टीवी के कार्यक्रम 'डियर साहित्यकार' के निर्देशक सुनील नारनौलिया एवं सह-संपादक डॉ. राकेश कुमार हैं। इस शो में नरेश सक्सेना, चित्रा मुद्गल, ममता कालिया, शैलेश लोढ़ा, प्रेम जनमेजय, डॉ. सूर्यबाला, तेजेंद्र शर्मा, चित्रा देसाई, चरण सिंह पथिक, असगर वजाहत और हेमंत शेष जैसे देश के शीर्ष साहित्यकार अपने जीवन के अनछुए पहलुओं और रचनाकर्म को साझा कर चुके हैं।
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