कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दलों की मांग, आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा हटाने पर विचार करे केन्द्र
संसद के मॉनसून सत्र के 19 जुलाई से शुरू होने के बाद से मंगलवार को पहली बार लोकसभा में शांति की स्थिति रही और ‘संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021’पर चर्चा शुरू हुई जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सूची बनाने से जुड़े राज्यों के अधिकारों को बहाल करने का प्रावधान किया गया है।
नयी दिल्ली। कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर ‘बहुमत के बाहुबल’ का इस्तेमाल करने और संघीय ढांचे के खतरे में पड़ने का आरोप लगाते हुए मंगलवार को केंद्र से आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा को हटाने पर विचार की मांग की। वहीं, सत्तारूढ़ भाजपा ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि देश में सबसे अधिक समय तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी की सरकारों के समय हर राज्य में पशुओं की भी गिनती की गई लेकिन पिछड़ा वर्ग की गिनती नहीं की गई क्योंकि उसे इनकी कोई चिंता ही नहीं थी। संसद के मॉनसून सत्र के 19 जुलाई से शुरू होने के बाद से मंगलवार को पहली बार लोकसभा में शांति की स्थिति रही और ‘संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021’पर चर्चा शुरू हुई जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सूची बनाने से जुड़े राज्यों के अधिकारों को बहाल करने का प्रावधान किया गया है। निचले सदन में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉक्टर वीरेंद्र कुमार ने विधेयक को चर्चा एवं पारित होने के लिये पेश किया।
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विधेयक का उल्लेख करते हुए वीरेंद्र कुमार ने कहा, ‘‘आज बहुत ऐतिहासिक दिन है। हम ऐसे महत्वपूर्ण संशोधन विधेयक पर चर्चा कर रहे हैं जो ओबीसी की सूची के निर्धारण के राज्यों के अधिकार को बहाल करने का है।’’ चर्चा की शुरूआत करते हुए लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की गलती के कारण ही यह विधेयक लाना पड़ा है तथा वह उत्तर प्रदेश एवं कुछ राज्यों के चुनाव को ध्यान में रखकर भी इसे लाई है। चौधरी ने आरोप लगाया, ‘‘ उत्तर प्रदेश, उत्तरराखंड में चुनाव है तो आप यह ला रहे हैं ताकि लोगों को खुश किया जा सके।’’ चौधरी ने कहा कि2018 में 102वां संविधान संशोधन विधेयक लाया गया और पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के साथ ही राज्यों का ओबीसी सूची निर्धारित करने का अधिकार छीन लिया गया। उन्होंने कहा, ‘‘हमने उस वक्त इस मुद्दे को उठाया था, आप रिकॉर्ड को देख सकते हैं।’’
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कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि 102वें संशोधन के समय सरकार ने ‘छेड़छाड़’ की और विपक्ष की चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया। चौधरी ने इंदिरा साहनी मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘ इस विधेयक पर समर्थन करने के साथ हमारी मांग है कि आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा हटाने के बारे में विचार किया जाए...कई राज्यों में यह सीमा अधिक है, लेकिन आप इसे कानूनी रूप से करिये।’’ द्रमुक, समाजवादी पार्टी, शिवसेना सहित कुछ अन्य दलों के सदस्यों ने भी आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा को हटाने पर विचार करने की सरकार से मांग की। कई विपक्षी सदस्यों ने जाति आधारित जनगणना कराने की भी मांग की। चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा कि कांग्रेस 1950 में शासन में आई लेकिन उसने 40 साल तक काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट पर काम नहीं किया और पिछड़ों को न्याय नहीं दिया। उन्होंने कहा कि मंडल आयोग ने 1980 में रिपोर्ट दी लेकिन कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने पिछड़ों को तब भी न्याय नहीं दिया। उन्होंने कहा कि जिस सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया, भाजपा उस समय उसका समर्थन कर रही थी। यादव ने कहा कि 1993 में पिछड़ा वर्ग आयोग बना और उसके बाद क्रीमी लेयर की समीक्षा का काम 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने किया तथा नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हमारी सरकार ने ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया।
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चर्चा में हिस्सा लेते हुए भाजपा की संघमित्रा मौर्य ने कहा कि देश में सबसे अधिक समय तक कांग्रेस सत्ता में रही और उनके समय हर राज्य में जिलावार पशुओं की भी गिनती की गई लेकिन पिछड़े वर्गों की गिनती नहीं हुई। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘ साल 2011 में जब जनगणना हो रही थी तब केंद्र में कांग्रेस नीत सरकार थी। हम पूछना चाहते हैं कि तब अन्य पिछड़ा वर्ग के आंकड़े क्यों प्रकाशित नहीं किये गए।’’ उन्होंने कहा कि आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों को अधिकार देने का काम किया है। भाजपा सांसद ने कहा कि अगर आपने (कांग्रेस) जनता के अधिकारों के संरक्षण की बात की होती तब जनता आपको सत्ता से बाहर नहीं करती। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस के समय तमाम घोटालों के साथ अनुसूचित जातियों, पिछड़े वर्गो के हितों को नजरंदाज किया गया।
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