कोविड ने आधा किया बच्चों का पोषण, गर्भवती महिलाएं और माएं भी संकट में, विकास संवाद के अध्ययन में आया सामने
लॉकडाउन से पूर्व मां अपने बच्चे को औसतन 6 बार स्तनपान करवा पाती थी जो लॉकडाउन में बढ़कर दस से बारह बार हो गया। महिलाओं ने यह बताया है कि घर में पर्याप्त भोजन नहीं है और बच्चे को बार-बार भूख लगने के कारण, वो अब ज़्यादा स्तनपान करवा रही हैं, हालाँकि इसके लिए मांओं को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा था
भोपाल। कोविड-19 महामारी का सबसे बुरा असर बच्चों और गर्भवती-धात्री महिलाओं के पोषण पर पड़ा है। गर्भवती माताओं की प्रति दिन शुदध कैलोरी में 67 फीसदी (2157 कैलोरी) स्तनपान करवाने वाली माताओं में 68 फीसदी (2334 कैलोरी) और बच्चों में 51 फीसदी (693 कैलोरी) प्रतिदिन की कमी दर्ज की गई है। साथ ही यह भी पता चला है कि इस दौरान विभिन्न पोषण एवं स्वास्थ्य कार्यक्रम 70 से 100 प्रतिशत तक निष्क्रिय रहे। इसको लेकर विकास संवाद ने मध्य प्रदेश के छह जिलों के 122 गांवों में अध्ययन किया, साथ ही 33 परिवारों के पोषण व्यवहारों का 25 मार्च से 10 मई तक की 45 दिन की अवधि का सघन विश्लेषण किया। इस अध्ययन की रिपोर्ट गुरुवार को इंटरनेट मीटिंग के जरिए जारी की गई।
प्रभावित हुआ बच्चों का भोजन:
अध्ययन में पाया गया कि 35 प्रतिशत परिवारों को अध्ययन अवधि तक कोई टीएचआर का पैकेट नहीं मिला, जबकि 38 प्रतिशत परिवारों को दो पैकेट ही मिले। इसी तरह 3 से 6 वर्ष के साठ प्रतिशत बच्चों को रेडी टू ईट फूड नहीं मिला है। जिन्हें मिला उनमें 10 प्रतिशत को 500 ग्राम सत्तू मिला है जबकि 30 प्रतिशत को 1,200 ग्राम (600 ग्राम दो हफ्ते के लिए) सत्तू ही मिला है। वहीं आंगनवाड़ी बंद होने से कुपोषण की पहचान के लिए पिछले दो महीनों में किसी भी हितग्राही का वजन और कद नहीं नापा गया है। लॉकडाउन से पूर्व मां अपने बच्चे को औसतन 6 बार स्तनपान करवा पाती थी जो लॉकडाउन में बढ़कर दस से बारह बार हो गया। महिलाओं ने यह बताया है कि घर में पर्याप्त भोजन नहीं है और बच्चे को बार-बार भूख लगने के कारण, वो अब ज़्यादा स्तनपान करवा रही हैं, हालाँकि इसके लिए मांओं को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा था और इसका असर उनके शरीर पर भी पड़ेगा। प्रायमरी स्कूल के 58 प्रतिशत बच्चों को मिड डे मील की जगह कोई भोजन भत्ता नहीं दिया गया है। उच्चतर स्कूलों में अनुशंसाओं के अनुसार 80 प्रतिशत छात्रों को मध्याह्न भोजन भत्ता (33 दिन के लिए 4,900 ग्राम) प्राप्त हुआ है, जबकि 20 प्रतिशत को अब भी मिलने का इंतजार है।
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सार्वजनिक वितरण प्रणाली:
सार्वजानिक वितरण प्रणाली के तहत 52 प्रतिशत परिवारों को योजना का पूरा लाभ मिला है, वहीं 18 प्रतिशत परिवार आंशिक रूप से लाभान्वित हुए हैं। तीस प्रतिशत परिवार योजना से वंचित रहे। सर्वेक्षित परिवारों में 94 प्रतिशत ‘प्राथमिकता वाले परिवार’ एवं 6 प्रतिशत अन्त्योदय अन्न योजना (ए ए वाय) वाले हितग्राही थे। करीब 9 प्रतिशत परिवार बीपीएल कार्ड्स या एएवाय कार्ड्स होने के बाद भी राशन से वंचित रहे। पांच सदस्यों वाले परिवार को औसत 65 किलोग्राम मासिक राशन की जरूरत होती है लेकिन उन्हें केवल 25 किलोग्राम मिला। इससे प्रति सदस्य मासिक सेवन में गिरावट आई है, जो आधे से भी कम है।
परिवार में कर्ज का बोझ:
कोविड के चलते लोग कर्ज में भी आए हैं। 24 प्रतिशत परिवारों पर कुल ₹21,250 का कर्ज है। 12 प्रतिशत पर ₹3000-4000 के बीच कर्ज और 9 प्रतिशत परिवारों ने ₹1000 रुपये से भी कम उधार लिया है। यह कर्ज रोजमर्रा की जरूरतों जैसे अनाज और सब्जियों के साथ-साथ तेल, मसाले और खरीदने के लिए लिया गया।
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केस 1
“मेरा बेटा आकाश चार साल का है। वह लॉकडाउन से पहले दिन में पांच बार खाना खाता था। इसमें घर पर चार बार खाना और आंगनवाड़ी में मिलने वाला गरम पका भोजन शामिल है। आंगनवाड़ी में अब खाना पूरी तरह से बंद हो गया है। वह आहार की कमी के चलते अक्सर रोता रहता है; मैं उसे दिन में तीन बार थोड़ा-थोड़ा करके खाना खिला पा रही हूं...”
-फूल बाई बैगा (उमरिया)
केस 2
“मैं पांच महीने की गर्भवती हूं और मेरा गर्भधारण अब तक आंगनवाड़ी केंद्र में दर्ज नहीं हुआ है। मैं दर्ज करना तो चाहती थी, लेकिन लॉकडाउन ने मुझे रोक दिया। मेरे पति मजदूर हैं चूंकि, सब कुछ बंद है, हम अपनी आहार की जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहे हैं। मुझे आंगनवाड़ी से लाभ नहीं मिल पा रहे हैं। सब्जियां और आवश्यक वस्तुएं अब उपलब्ध नहीं हैं और इस वजह से हमारे पास चावल और नमक के साथ सूखी रोटी या कभी-कभी सिर्फ सूखी रोटी खाने को हम मजबूर हैं।”
-पूजा बाई कोल (सतना)
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अध्ययन में आए तथ्यों के बाद विकास संवाद ने सरकार के सामने इस विषय पर कुछ मांगे रखी है। जो बिन्दुवार इस प्रकार है-
- आईसीडीएस कार्यक्रम के तहत पूरक पोषण कार्यक्रम (एसएनपी) को पूर्ण पोषण कार्यक्रम (सीएनपी) में बदला जाए।
- प्रवासी परिवारों/श्रमिकों तथा उनके बच्चों को पूर्ण पोषण उपलब्ध कराने की तत्काल व्यवस्था की जाए।
- पोषण कार्यक्रम को महिलाओं और स्व-सहायता समूहों के माध्यम से विकेंद्रीकृत किया जाए।
- मातृत्व पात्रता को सार्वभौमिक बनाया जाए। मातृत्व लाभ/पात्रता के तौर पर न्यूनतम मजदूरी के बराबर छह महीने तक समर्थन दिया जाए।
- पीडीएस को विकेंद्रीकृत किया जाए, स्थानीय उत्पादों की खरीद व वितरण हो। सोशल ऑडिट) हो।
- मनरेगा के तहत 200 दिन का रोजगार दिया जाए। प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली के साथ सोशल ऑडिट हो।
- वन अधिकार अधिनियम के तहत सभी दावों को स्वीकार किया जाए।
- सभी आंगनवाड़ी केंद्रों और स्कूलों में न्यूट्रिशन गार्डन (पोषण उद्यान)/ किचन गार्डन का प्रावधान अनिवार्य किया जाए। फलदार पेड़ लगाए जाए।
- दुग्ध उत्पादन, मछली पालन व तालाब निर्माण का प्रोत्साहन हो।
विकास संवाद, भोपाल के निदेशक सचिन कुमार जैन का कहना है कि, वर्तमान परिस्थितियों में पूरक पोषण कार्यक्रम को पूर्ण पोषण कार्यक्रम (सीएनपी) में परिवर्तित करने की आवश्यकता है। इसमें स्व सहायता समूहों की भूमिका महत्वपूर्ण बनानी होगी। श्रमिकों के लिए पूर्ण पोषण लागू करना होगा व राष्ट्रीय खादय सुरक्षा कानून के तहत आने वाली योजनाओं को पूर्ण रूप से लागू करना जरूरी हो गया है। मनरेगा को मजबूत करना सबसे बुनियादी जरूरत है।
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