आरोपी पर दोष सिद्ध होने पर ही एससी-एसटी कानून के तहत पीड़ित को मुआवजा दिया जाए: उच्च न्यायालय

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इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने राज्य सरकार से कहा है कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) कानून के तहत आरोपी पर इल्ज़ाम सिद्ध होने पर ही पीड़ित को मुआवजा की राशि जारी की जाए ना कि प्राथमिकी दर्ज होने और आरोप पत्र दाखिल होने पर उसे हर्जाना दिया जाए।

लखनऊ, 5 अगस्त। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने राज्य सरकार से कहा है कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) कानून के तहत आरोपी पर इल्ज़ाम सिद्ध होने पर ही पीड़ित को मुआवजा की राशि जारी की जाए ना कि प्राथमिकी दर्ज होने और आरोप पत्र दाखिल होने पर उसे हर्जाना दिया जाए। उच्च न्यायालय ने कहा कि उसके संज्ञान में आया है कि हर दिन बड़ी संख्या में मामले आ रहे हैं जहां राज्य सरकार से मुआवजा प्राप्त होने के बाद शिकायतकर्ता मुकदमा खत्म करने के लिए आरोपी के साथ समझौता कर लेते हैं।

यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एक एकल पीठ ने 26 जुलाई को पारित किया था जो बृहस्पतिवार को वेबसाइट पर अपलोड किया गया। अदालत ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया है जिसमें एससी-एसटी कानून के तहत दर्ज मुकदमे को रद्द करने का अनुरोध किया गया था। अदालत ने कहा कि उसका विचार है कि करदाताओं के पैसे का इस प्रक्रिया में दुरुपयोग किया जा रहा है। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में राज्य सरकार कथित पीड़ितों से मुआवजे की रकम वापस लेने के लिए स्वतंत्र है जहां शिकायतकर्ता ने आरोपी के साथ मुकदमा वापस लेने के लिए समझौता कर लिया है या अदालत ने मुकदमा रद्द कर दिया है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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