मिलने वाली थी बेल, फिर कैसे फंस गए केजरीवाल! आखिर के 5 मिनट में कोर्ट रूम में ऐसा क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट में मामला 23 तारीख यानी दिल्ली में वोटिंग वाली तारीक के लिए प्रचार को लेकर जमानत दिए जाने की बात चल रही है। एक वक्त तो ऐसा लग रहा था कि शाम तक केजरीवाल को जमानत मिल जाएगी। लेकिन चुनाव के लिए जमानत का मामला टल गया। दरअसल, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आखिर के मिनट में जिस तरह से अपनी दलीलें दी।
लोकसभा चुनाव में तीसरे चरण की वोटिंग बीते दिन समाप्त हो गई। पश्चिम बंगाल और असम में बंपर वोटिंग हुई। पीएम मोदी ने अहमदाबाद में वोट डालने के बाद बाकी के चरणों के प्रचार में जुट गए हैं। लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बाकी चरणों के चुनाव में प्रचार कर पाएंगे या नहीं इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बस आते-आते रह गया। फैसला जोरों पर थी और आम आदमी पार्टी को भी ये उम्मीद थी कि जेल के ताले टूटेंगे और केजरीवाल छूटेंगे। लेकिन न ही जेल के ताले टूटे बल्कि दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने तो 20 मई तक की न्याययिक हिरासत को ही बढ़ा दिया गया। सुप्रीम कोर्ट में केजरीवाल की याचिका पर सुनवाई तो हुई। अंतरिम जमानत पर बहस भी हुई। सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया कि केजरीवाल आंतकवादी नहीं हैं। आदतन अपराधी नहीं हैं। चुने हुए सीएम हैं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कई ऐसी टिप्पणी की जिससे लगा कि केजरीवाल को तो राहत मिलने ही वाली है। ईडी ने भी अंतरिम जमानत का जमकर विरोध किया। दोनों पक्षों की दलीले सुनने के बाद कोई फैसला नहीं हो सका। सुप्रीम कोर्ट की बेंच बिना कोई आदेश दिए उठ गई।सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर 10 मई, शुक्रवार को आदेश दे सकता है।
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सुप्रीम कोर्ट में मामला 23 तारीख यानी दिल्ली में वोटिंग वाली तारीक के लिए प्रचार को लेकर जमानत दिए जाने की बात चल रही है। एक वक्त तो ऐसा लग रहा था कि शाम तक केजरीवाल को जमानत मिल जाएगी। लेकिन चुनाव के लिए जमानत का मामला टल गया। दरअसल, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आखिर के मिनट में जिस तरह से अपनी दलीलें दी। जिस तरह के सवाल उठाए वो कानून और संविधान की दृष्टि से इतने महत्वपूर्ण हो गए कि सारी की सारी बातें धराशायी हो गई। आप के भीतर सुगबुगाहट जस्टिस खन्ना के एक-दो टिप्पणी के बाद शुरू हुई। बहस शुरू होने के बाद जज ने कहा कि वो एक सीटिंग सीएम हैं। लेकिन पहले भी कई सारे सीएम जेल जाने से पहले इस्तीफा दे चुके हैं। पद की गरिमा का ध्यान रखते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया। ऐसे में हेमंत सोरेन या बाकी के इस्तीफा देने वाले नेता द्वारा ये कदम उठाया जाना क्या उनकी राजनीतिक चूक थी?
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कोर्ट ने साफ कहा कि बेल देने पर ये कोई ऑफिशियल काम नहीं करेंगे। मनु सिंघवी ने कहा कि इस पर कोई रोक नहीं है। वो एक मुख्यमंत्री हैं। लंच होते होते जज की टिप्पणी के आधार पर ये धारणा बनाई जाने लगी की अब जो बस बेल मिलने ही वाली है और इसके क्या शर्तें लगाई जाएंगी इसको लेकर चर्चा होने लगी। लेकिन लंच के बाद तुषार मेहता ने अपनी दलील में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु उठाए। उन्होंने मुख्यमंत्री के लिए अलग कानून की व्यवस्था करना गलत प्रथा की शुरुआत कर देगा। इसके साथ ही तुषार मेहता ने कहा कि अगर इन्हें बेल मिलती है तो कल को कोई गरीब, मजदूर आदमी आएगा तो वो अंतरिम जमानत के लिए अप्लाई करेगा तो उसके लिए रास्ता साफ हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट का फैसला दूसरे अदालतों के लिए नजीर बनता है। कोई मुखिया होगा तो वो भी प्रचार के लिए बेल की अप्लीकेशन दे देगा। कुल लीगल और मॉरल सवाल ऐसे उठे की इस पर फैसला अटक गया।
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