गरीब सवर्णों को आरक्षण पर संसद की मुहर, पक्ष में पड़े 165 वोट, विरोध में सिर्फ 7 मत
कुछ विपक्षी दलों ने इस विधेयक को लोकसभा चुनाव से कुछ पहले लाये जाने को लेकर सरकार की मंशा तथा इस विधेयक के न्यायिक समीक्षा में टिक पाने को लेकर आशंका जतायी।
सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा एवं रोजगार में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रावधान वाले ऐतिहासिक संविधान संशोधन विधेयक को बुधवार को संसद की मंजूरी मिल गयी। राज्यसभा ने करीब 10 घंटे तक चली बैठक के बाद संविधान (124 वां संशोधन), 2019 विधेयक को सात के मुकाबले 165 मतों से मंजूरी दे दी। इससे पहले सदन ने विपक्ष द्वारा लाए गए संशोधनों को मत विभाजन के बाद नामंजूर कर दिया। लोकसभा ने इस विधेयक को कल ही मंजूरी दी थी जहां मतदान में तीन सदस्यों ने इसके विरोध में मत दिया था।
उच्च सदन में विपक्ष सहित लगभग सभी दलों ने इस विधेयक का समर्थन किया। कुछ विपक्षी दलों ने इस विधेयक को लोकसभा चुनाव से कुछ पहले लाये जाने को लेकर सरकार की मंशा तथा इस विधेयक के न्यायिक समीक्षा में टिक पाने को लेकर आशंका जतायी। हालांकि सरकार ने दावा किया कि कानून बनने के बाद यह न्यायिक समीक्षा की अग्निपरीक्षा में भी खरा उतरेगा क्योंकि इसे संविधान संशोधन के जरिये लाया गया है।
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केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए इसे सरकार का एक ऐतिहासिक कदम बताया। उन्होंने कांग्रेस सहित विपक्षी दलों से यह पूछा कि जब उन्होंने सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिये जाने का अपने घोषणापत्र में वादा किया था तो वह वादा किस आधार पर किया गया था। क्या उन्हें यह नहीं मालूम था कि ऐसे किसी कदम को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि यह हमारी संस्कृति की विशेषता है कि जहां प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एससी और एसटी को आरक्षण दिया वहीं पिछड़े वर्ग से आने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सामान्य वर्ग को आरक्षण देने की यह पहल की है।
Passage of The Constitution (One Hundred And Twenty-Fourth Amendment) Bill, 2019 in both Houses of Parliament is a victory for social justice.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 9, 2019
It ensures a wider canvas for our Yuva Shakti to showcase their prowess and contribute towards India’s transformation.
उन्होंने एसटी, एससी एवं ओबीसी आरक्षण को लेकर कई दलों के सदस्यों की आशंकाओं को निराधार और असत्य बताते हुए कहा कि उनके 49.5 प्रतिशत से कोई छेड़छाड़ नहीं की जा रही है। वह बरकरार रहेगा। विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के द्रमुक सदस्य कनिमोई सहित कुछ विपक्षी दलों के प्रस्ताव को सदन ने 18 के मुकाबले 155 मतों से खारिज कर दिया।
इससे पहले विधेयक पर हुई चर्चा में कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों द्वारा इस विधेयक का समर्थन करने के बावजूद न्यायिक समीक्षा में इसके टिक पाने की आशंका जतायी गयी और पूर्व में पीवी नरसिंह राव सरकार द्वारा इस संबंध में लाये गये कदम की मिसाल दी गयी। कई विपक्षी दलों का आरोप था कि सरकार इस विधेयक को लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर लायी है। अन्नाद्रमुक सदस्यों ने इस विधेयक को ‘‘असंवैधानिक’’ बताते हुये सदन से बहिर्गमन किया।
विधेयक पर हुयी चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा ने सवाल किया कि ऐसी क्या बात हुयी कि यह विधेयक अभी लाना पड़ा? उन्होंने कहा कि पिछले दिनों तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में हार के बाद सरकार ने यह कदम उठाया है। उन्होंने कहा कि इन विधानसभा चुनावों में हार के बाद संदेश मिला कि वे ठीक काम नहीं कर रहे हैं। चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग को आरक्षण देने के मोदी सरकार के फैसले को मैच जिताने वाला छक्का बताते हुये कहा कि अभी इस मैच में विकास से जुड़े और भी छक्के देखने को मिलेंगे। प्रसाद ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुये कहा कि सरकार ने यह साहसिक फैसला समाज के सभी वर्गों को विकास की मुख्य धारा में समान रूप से शामिल करने के लिये किया है। उन्होंने इस विधेयक के न्यायिक समीक्षा में नहीं टिक पाने की विपक्ष की आशंकाओं को निर्मूल बताते हुए कहा कि आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा संविधान में नहीं लगायी गयी है। उच्चतम न्यायालय ने यह सीमा सिर्फ पिछड़े वर्ग और अनुसूचित जाति एवं जनजाति समूहों के लिये तय की है।
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