अयोध्या मसले के सुलह का फॉर्मूला: जब विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांटा गया, SC के निर्णय से पहले आज ही के दिन इलाहाबाद HC ने दिया था क्या फैसला

Ayodhya
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अभिनय आकाश । Sep 30 2022 4:02PM

30 सितंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी इस मामले में एक अहम फैसला दिया था। इस फैसले में इलाहबाद हाई कोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन को राम जन्मभूमि करार दिया था।

491 साल पुराने अयोध्या राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को अपना फैसला सुनाया। रामलला के नाम पर जमीन के हक पर हस्ताक्षर के साथ ही तय हो गया कि अयोध्या में प्रभुराम का भव्य और दिव्य मंदिर बनेगा। जिसके बाद पीएम मोदी ने अयोध्या मंदिर का शिलान्यास और भूमि पूजन भी किया। लेकिन क्या आपको पता है इससे पहले साल 2010 में आज ही के दिन यानी 30 सितंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी इस मामले में एक अहम फैसला दिया था। इस फैसले में इलाहबाद हाई कोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन को राम जन्मभूमि करार दिया था। ऐसे आज आपको अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्या फैसला दिया था ये बताएंगे। 

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जमीन की खुदाई से निकलेगा समस्या का समाधान ?

वैसे तो अयोध्या विवाद तो पुराना है। बहुत से आंदोलन हुए। सबका मूल सवाल एक ही था - क्या बाबरी मस्जिद से पहले वहाँ कोई राममंदिर था। क्या राम जन्मभूमि मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनी है ? दो सौ बरस से जनमानस के पन में पनपता यह सवाल इलाहाबाद हाईकोर्ट के सामने भी था। लगा-जमीन की खुदाई से इस समस्या का समाधान निकलेगा। अदालत ने इसी रास्ते समाधान ढूँढ़ने की कोशिश भी की। एएसआई ने कुल 90 खाइयाँ खोदीं। पूरे क्षेत्र को पाँच हिस्सों में बाँटा। इनमें पूर्वी, दक्षिणी, पश्चिमी, उत्तरी क्षेत्र और उभरा हुआ प्लेटफॉर्म शामिल था। इन सभी क्षेत्रों में क्रमवार खुदाई हुई, जिससे ढाँचों की प्रकृति और उसकी सांस्कृतिकता का अंदाजा लगे। एएसआई ने माना कि ढाँचे के नीचे एक और ढाँच था। जो अवशेष मिले, उससे साबित होता था कि वहाँ ग्यारहवीं शताब्दी का हिंदू मंदिर स्वीकार था। खुदाई में एक शिलालेख और भगवान शंकर की मूर्ति भी मिली थी।

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2.77 एकड़ विवादित भूमि के तीन बराबर हिस्से 

30 सितंबर, 2010 को यह ऐतिहासिक फैसला जस्टिस सुधीर अग्रवाल जस्टिस एस.यू. खान, जस्टिस डी.वी. शर्मा की बेंच ने सुनाया। 1989 से इस मामले की 18 जजों ने सुनवाई की। हाईकोर्ट ने अपने इस फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि के तीन बराबर हिस्से करने की बात कही। इसमें वह जगह, जहाँ आज रामलला की मूर्ति स्थापित हैं, को रामलला विराजमान को सौंप दिया। इसे पहला हिस्सा कह सकते हैं। राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को दे दिया गया, जबकि बचा हुआ तीसरा हिस्सा सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड को सुपुर्द कर दिया गया। हाईकोर्ट के तीन जजों की बेंच ने इस फैसले के लिए आर्केयोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट को ही आधार माना। अदालत ने भगवान राम के जन्मस्थान होने की धार्मिक मान्यता को भी फैसले का आधार बताया। तीनों ही जजों ने मुसलमानों की ओर से सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के दावे को कानूनन समय सीमा की मियाद से बाहर बताया और इसी तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया। इस फैसले का एक बड़ा महत्त्व यह था कि म उसी जगह पर रहेंगे, जहाँ वे स्थापित हैं। इसी जगह हो हिंदू राम की जन्मभूमि मानते हैं।

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एक तिहाई बंटवारे के फॉर्मूले से सहमत नहीं थे जस्टिस शर्मा

जस्टिस डीवी शर्मा इस एक-तिहाई बँटवारे के फॉर्मूले से सहमत नहीं है उनके मुताबिक विवादित स्थल के बाहरी हिस्से पर हिंदुओं का पूजन के उपय विशेषाधिकार रहा है। इसी तरह से भीतरी आहाते में भी वे पूजा करते हैं उनका पूरे ही हिस्से पर विशेष अधिकार है। अपने 'डिसेंट नोट' में जस्टिस शर्मा ने सम तौर पर लिखा कि विवादित जगह भगवान राम का जन्मस्थान है। जस्टिस अग्रवाल के मुताबिक विवादित ढाँचे का केंद्रीय गुंबद भगवा जन्मस्थान रहा है। ऐसा हिंदुओं की आस्था और विश्वास है। इस फैसले से मंदिर निर्माण का रास्ता तो साफ हुआ। पर दोनों पक्ष इस बात से असंतुष्ट थे कि उन्होंने विवादित स्थल के बँटवारे की तो माँग ही नहीं थी। ज्यादातर लोगों की राय थी कि यह 'न्यायिक फैसला' नहीं बल्कि 'सुलह का फॉर्मूला' है। सभी पक्षों ने फैसले के खिलाफ अपील कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा, सुनवाई शुरू कर दी। रामलला अब भी लंबे, ऊँचे, पीले स्टील के बाड़े के भीतर एक तंबू में बैठे अदालती आदेश का इंतजार कर रहे हैं।

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