एक दशक पहले दहशत में जीती थी Haryana की आम जनता, सिर्फ एक समाज का था बोलबाला, पूरे सिस्टम पर था कब्जा

Haryana
प्रतिरूप फोटो
ANI
Anoop Prajapati । Sep 11 2024 5:51PM

जो लोग पिछले 10 वर्षों से हरियाणा को देख रहे लोगों को जरा भी अंदाजा नहीं होगा कि एक वह भी जमाना था, जब कांग्रेस की सरकार में हरियाणा गलत वजहों से कुख्यात था। राज्य सरकार भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कार्यकाल में एक खास समाज के प्रति ही झुकी नजर आती थी।

जो लोग पिछले 10 वर्षों से हरियाणा को देख रहे लोगों को जरा भी अंदाजा नहीं होगा कि एक वह भी जमाना था, जब कांग्रेस की सरकार में हरियाणा गलत वजहों से कुख्यात था। राज्य सरकार भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कार्यकाल में एक खास समाज के प्रति ही झुकी नजर आती थी। जिसका परिणाम ये होता था कि अन्य समाज के लोगों को असमानता और भारी भेदभाव का सामना करना पड़ता था। वे ऐसे दमनकारी माहौल में समय काटने को मजबूर थे। कांग्रेस की सरकार के कार्यकाल में इस विशेष समाज को इतनी छूट और प्राथमिकता मिली हुई थी कि अन्य समाज के लिए भय, भ्रष्टाचार और भेदभाव का सामना करने के अलावा कोई चारा नहीं था। 'खर्ची-पर्ची' की व्यवस्था राज्य सरकार की कार्यप्रणाली का अंग बन चुका था।

हरियाणा की व्यवस्था पर एक समाज का था कब्जा

एक समाज का ही पूरे सिस्टम पर दबदबा हो चुका था। इसलिए जहां भी मलाई उपलब्ध था, उसका एक बड़ा हिस्सा सिर्फ उसी समाज के लिए रिजर्व रखा जाता था। व्यवस्थित तरीके से अन्य समाज के लोगों को पूरी व्यवस्था से दूर कर दिया गया था, जहां उनकी देखने-सुनने वाला कोई नहीं था। सरकार जिस खास समाज के कब्जे में थी, पूरा शासनतंत्र उसके कब्जे में था।

राज्य में दूसरे समाज के लोगों को मिली सिर्फ हताशा

राज्य में नौकरियां नहीं थीं। अगर नौकरियां निकलती भी थीं तो उसमें विशेष समाज की प्राथमिकता तय कर दी गई थी। दूसरे समाज के लोग तरसने को मजबूर थे। इसका नतीजा यह हुआ कि जो समाज तत्कालीन सिस्टम के लिए अपने नहीं थे, वे आर्थिक तौर पर गरीब से और गरीब होते चले गए। असमानता और भेदभाव का सामना करते-करते उनमें भी हताशा छाने लगी थी।

पुलिस-प्रशासन विशेष समाज के सामने था बेमानी

सबसे आश्चर्यजनक बात तो ये है कि उस समय की राज्य सरकार में उस विशेष समाज को इतनी छूट मिली हुई थी कि चाहे उनके लोग कोई भी कांड कर दें, उनके खिलाफ ऐक्शन लेना तो दूर, किसी के अंदर उनपर केस तक दर्ज करने की हिम्मत नहीं थी। उस खास समाज के प्रति इस रवैए का परिणाम ये रहा कि इसके सदस्य और भी बेलगाम होते चले गए। उन्हें मालूम था कि वह चाहे कोई भी गुनाह कर दें, पुलिस-प्रशासन के हाथ उन्हें छूने से भी कांपेंगे।

बेबसी और दहशत में जीने को मजबूर थे दूसरे समाज के लोग

अन्य समाज के लोगों में ऐसे माहौल की वजह से भय और दहशत का वातावरण बना हुआ था। वे खुद को इतना शक्तिहीन महसूस करने लगे थे, जिसमें न्याय मिलने की उम्मीद रह ना के बराबर गई थी और न ही शासन-प्रशासन और सरकार से सुरक्षा की आश लगा सकते थे।

उस माहौल में बहन-बेटियों के लिए जीना दूभर हो चुका था

हरियाणा की बहन-बेटियों में इस माहौल ने असुरक्षा की भावना पैदा कर दी थी। बाहर जिस तरह से हिंसा और उत्पीड़न का वातावरण बना दिया गया था कि वे अपने घरों की चहारदीवारियों के भीतर ही कैद रहने को मजबूर थीं। यह ऐसा जमाना था, जिसमें बेटियों को न ही स्वतंत्रता की उम्मीद रह गई थी और न ही समान अवसर मिलने की उनके सामने संभावना बच गई थी। जब समाज में सुरक्षा का वातावरण ही नहीं था तो बाकी चीजें तो दूर की कौड़ी थीं।

हुड्डा सरकार सिर्फ एक बिरादरी की सुनती थी

हरियाणा में उस समय एक तरह से विशेष समाज का 'गुंडाराज' कायम हो गया था। वे जिससे जो चीज कहते, वे करने को मजबूर थे। मना करने की उनमें न तो साहस रह गई थी और न ही इसे बर्दाश्त करने के लिए विशेष समाज तैयार था। एक तरह से कांग्रेस के उस दौर में पूरा सामाजिक ताना-बाना बिगाड़ दिया गया था। हुड्डा सरकार सिर्फ एक ही बिरादरी की सुन रही थी। बाकी समाज पूरी तरह से व्यवस्थित तौर पर दरकिनार कर दिया गया था।

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