आजादी के बाद कांग्रेस ने जिस UP को अपना गढ़ बनाया, वहां से एक-एक कर एग्जिट रूट क्यों तलाश रहे गांधी परिवार के सदस्य?

Gandhi family
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Feb 15 2024 1:51PM

फूलपुर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में पड़ता है। जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश की रायबरेली को अपना गढ़ बनाया। इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी ने भी रायबरेली से चुनाव जीता था।

अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है 

ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएँ 

साहिर लुधियानवी का ये शेर देश की ग्रैंड ओल्ड पार्टी के वर्तमान हालात पर एकदम मौजूं हैं। गांधी-नेहरू परिवार की राजनीतिक सरजमीं जिस उत्तर प्रदेश से रही वहां कांग्रेस का जनाधार एकदम खत्म होता जा रहा है। उत्तर प्रदेश की फूलपुर, रायबरेली, अमेठी हो जवाहरलाल नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक सभी ने उत्तर प्रदेश की किसी ने किसी सीट को अपना गढ़ बनाया था। देश के पहले प्रधानमंत्री जवारलाल नेहरू उत्तर प्रदेश के फूलपुर से चुनाव लड़ते थे। फूलपुर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में पड़ता है। जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश की रायबरेली को अपना गढ़ बनाया। इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी ने भी रायबरेली से चुनाव जीता था। जवाहरलाल नेहरू के चचेरे भाई की पत्नी उमा नेहरू ने उत्तर प्रदेश के सीतापुर से चुनाव जीता था। जवाहरलाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने भी फूलपुर सहित चुनाव लड़ा था। इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी और राजीव गांधी ने अमेठी लड़ा। राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी ने अमेठी और रायबरेली से चुनाव लड़ा। राजीव और सोनिया के बेटे राहुल गांधी भी अमेठी से ही चुनाव लड़ते रहे। उमा नेहरू के नाती अरुण नेहरू रायबरेली से चुनाव लड़े। संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से और उनके बेटे वरुण सुल्तानपुर से चुनाव लड़ते रहे। 

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रायबरेली में 17 चुनावों में तीन बार हारी कांग्रेस

इन सभी में से रायबरेली ऐसी सीट रही है जहां कांग्रेस आजादी के बाद से वह 17 आम चुनाव में से केवल तीन बार हारी है। इसी तरह वर्ष 1967 में बनी अमेठी सीट पर भी कांग्रेस केवल 3 बार हारी है। नेहरू गांधी परिवार की जगह भले ही कश्मीर से जुड़ी बताई जाती हो लेकिन नेहरू गांधी परिवार के राजनीतिक इतिहास की शुरुआत उत्तर प्रदेश होती है। जवाहरलाल नेहरू और उनके पिता मोतीलाल नेहरू दोनों ही ब्रिटिश हुकुमत में इलाहाबाद हाईकोर्ट वकील थे। पंडित नेहरू का जन्म इलाहाबाद में ही हुआ था। मोतीलाल और जवाहरलाल दोनों ही इलाहाबाद में रहते हुए कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए थे। यानी इलाहाबाद जिसे आज प्रयागराज के नाम से जाना जाता है दोनों ही नेताओं की राजनीतिक कर्म भूमि रही है।

आजादी के कांग्रेस ने यूपी को अपना गढ़ बना लिया 

वर्ष 1952 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आजाद भारत का अपना पहला चुनाव उत्तर प्रदेश के फूलपुर से ही जीता था। वही जवाहरलाल नेहरू 1962 में अपना आखिरी चुनाव पर फूलपुर में ही लड़ा था। और सुनाओ मैं नेहरू ने राम मनोहर लोहिया को 50000 से ज्यादा वोटो से हराया था। 1964 में पंडित नेहरू के निधन के बाद उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने फूलपुर से ही चुनाव लड़ा भी और जीत भी। साल 1962 में जवाहर लाल नेहरू के चचेरे भाई श्याम लाल नेहरू की पत्नी उमा नेहरू राज्यसभा पहुंची थी ये पहली बार था जब गांधी परिवार का कोई सदस्य राज्यसभा गया हो। इसके बाद 1964 में इंदिरा गांधी वो दूसरी सदस्य थी तो उत्तर प्रदेश से राज्यसभा गई थीं। लेकिन 1967 में इंदिरा ने लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया था। लेकिन अब 57 साल बाद गांधी परिवार से कोई सदस्य राज्यसभा से जाने वाला है। 

जब इंदिरा और संजय दोनों को मिली थी हार

अमेठी सीट 1967 में बनी थी और तभी से नेहरू गांधी परिवार का कोई न कोई सदस्य इस सीट से चुनाव जीतता रहा है। 1977 में इंदिरा ने रायबरेली और उनके बेटे संजय ने अमेठी से चुनाव लड़ा। हालांकि इस चुनाव में दोनों की ही करारी हार हुई थी। 1999 में अमेठी और बिलारी और फिर 2004 से लेकर 2019 तक रायबरेली से सांसद सोनिया गांधी अबकी बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ना चाहती हैं। ऐसे में दवा यह भी किया जा रहा है कि राम लहर की वजह से सोनिया गांधी का यूपी से एग्जिट हो रहा है। यह तो आपको याद ही होगा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी अपनी अमेठी सीट बीजेपी की स्मृति ईरानी के हाथों गवार बैठे थे और उन्हें दक्षिण की वायनाड सीट पर जीत मिली थी। कुछ समय पहले कांग्रेस के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने यह जरूर कहा था की अमेठी की जनता चाहती है कि राहुल गांधी यहां से चुनाव लड़े। लेकिन अब तक कांग्रेस ने राहुल के अमेठी लौटने का कोई संकेत नहीं दिया है। क्या नेहरु गांधी परिवार को उत्तर में कोई सेफ सीट नजर नहीं आ रही है।

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2004 से 2019 तक...

1998 में जब सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान संभाली थी। तब भी पार्टी की हालत खराब थी। 1998 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के फौरन बाद उन्हें अध्यक्ष पद सौंपा गया था। इसके बाद 1999 में पहली बार कांग्रेस ने सोनिया की अगुवाई में लोकसभा चुनाव लड़ा तब कांग्रेस जीती तो नहीं लेकिन सोनिया ने पार्टी के लिए मजबूत कैम्पेनिंग जरूर की थी। 1999 में सोनिया गांधी कैसे फ्रंट से लीड कर रही थी उसे ऐसे समझा जा सकता है कि 1999 में अमेठी जीता और कर्नाटक के बेल्लारी से सुषमा स्वराज को हराया था। साल 2004 आया और वाजपेयी सरकार का इंडिया शाइनिंग का नारा बुरी तरह पिट गया। इसकी कामयाबी का सेहर भी सोनिया गांधी के सिर बंधा। 2004 में सोनिया गांधी ने अमेठी की सीट अपने पुत्र राहुल गांधी को दी और 2004 से 2019 के चुनाव तक कांग्रेस हारी या जीती सोनिया गांधी कभी मैदान छोड़ती नजर नहीं आई। 

यूपी में क्यों कमजोर हुई कांग्रेस की जड़ें

इसके पीछे कई कारण राजनीतिक विश्लेषकों की तरफ से दिए जाते हैं। कहा जाता है कि पिछेल तीन दशक से सत्ता के केंद्र में आने के लिए संघर्षरत कांग्रेस पार्टी 1989 के बाद नेताओं की लंबी फेहरिस्त भी कास्ट पॉलिटिक्स का शिकार हो गई। नतीजा, एक के बाद एक गिरते प्रदर्शन से उत्तर प्रदेश कांग्रेस हाशिए पर चली गई। अगर कहा जाए कि केंद्र में बदलती सरकारों के समीकरण का सबसे अधिक असर यूपी कांग्रेस पर पड़ा तो गलत नहीं होगा। जब जब केंद्र की राजनीति ने करवट ली तो प्रदेश की राजनीति भी विकास के वादे से दूर जाति आधारित राजनीति पर आकर टिक गई। वीपी सिंह के दौर में 1987 में बोफोर्स घोटाले के आरोप लगाकर कांग्रेस से किनारा करने के बाद से ही पार्टी की प्रदेश में जड़े हिलनी शुरू हो गई। बाद में 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद स्थिति और खस्ता हाल होने लगी। यूपी के विकास पुरुष कहे जाने वाले एनडी तिवारी ने कुछ वक्त के लिए पार्टी से किनारा किया। फिर वापस अपनी पार्टी का इसमें विलय जरूर करा लिया। लेकिन तब तक प्रदेश की राजनीति ने तेजी से करवट लेना शुरू कर दिया। एक तरफ राम लहर पर सवार बीजेपी ने कमंडल के रास्ते अपने रथ को आगे बढ़ाना शुरू किया। वहीं प्रदेश में तेजी से मजबूत होते क्षत्रप बसपा और सपा ने भी पैर जमाना शुरू कर दिया। ये वही दौर था जब यूपी में पूरी तरह से कॉस्‍ट पॉलि‍टि‍क्‍स का उदय हो चुका था। मुलायम सिंह यादव मुस्‍लि‍म व यादवों के रहनुमा और मायावती दलि‍त वोटों की रहनुमा बन चुकी थी। 

गांधी परिवार ने उत्तर प्रदेश में सरेंडर कर दिया ?

जिस रायबरेली के बारे में कभी शायर मुनव्वर राणा ने कहा था कि ये रायबरेली जनाब यहां राजनीति पनारो से बहती है। वहां से इंदिरा 1967 से 1977 तक सांसद रही। इंदिरा के पति फिरोज गांधी रायबरेली से 1952 और 1957 से चुनाव जीते थे। उस सीट को छोड़ सोनिया गांधी अब लोकसभा की बजाय राज्यसभा से सांसद जाने का रास्ता चुना है। ऐसा पहली बार होने जा रहा है। इससे पहले ऐसा अभी तक नहीं हुआ। सोनिया गांधी राजस्थान से राज्यसभा के रास्ते सांसद जाएंगे राहुल गांधी पहले ही अमेठी से वायानाड की ओर शिफ्ट हो चुके हैं। राहुल अमेठी सीट से चुनाव लड़ेंगे या नहीं अभी इसपर सस्पेंस जारी है। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि क्या गांधी परिवार ने उत्तर प्रदेश में सरेंडर कर दिया है।

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