हर भारतीय को जाननी चाहिए इसरो साइंटिस्ट नांबी नारायणन की कहानी, जिसे मिली देशभक्ति की सजा
एक साजिश जो आज से 27 साल पहले हुई थी। 1994 में एक ऐसा मामला सामने आया था जिसने इसरो और उसके वैज्ञानिकों की नीयत पर ऊंगली उठाई थी। उस वक्त अंतरिक्ष अभियानों के लिए महत्वपूर्ण क्रायोजेनिक इंजन के विकास से जुड़े कुछ वरिष्ठ वैज्ञानिकों पर देश के खिलाफ जासूसी करने के आरोप लगाए गए थे।
Rocketry द नांबी इफेक्ट नामक फिल्म का ट्रेलर 1 अप्रैल की शाम को रिलीज किया गया। ये फिल्म है इसरो के पूर्व रॉकेट साइंटिस्ट नांबी नारायणन के जीवन से जुड़ी जिन्हें जासूसी के झूठे आरोपों में फंसा कर गिरफ्तार कर लिया गया था। भारत की आंखों में हमेशा अंतरिक्ष की सुपरपावर बनने का सपना रहा है। भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में अच्छा काम भी कर रहा है।
एक साजिश जो आज से 27 साल पहले हुई थी। 1994 में एक ऐसा मामला सामने आया था जिसने इसरो और उसके वैज्ञानिकों की नीयत पर ऊंगली उठाई थी। उस वक्त अंतरिक्ष अभियानों के लिए महत्वपूर्ण क्रायोजेनिक इंजन के विकास से जुड़े कुछ वरिष्ठ वैज्ञानिकों पर देश के खिलाफ जासूसी करने के आरोप लगाए गए थे। उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया था। हालांकि बाद में ये पूरा मामला फर्जी साबित हुआ था।
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आपको बताते हैं कि ये पूरा मामला क्या है और इसमें अबतक क्या-क्या हुआ है?
वर्ष 1991 में इसरो ने रूस के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। जिसके तहत रूस भारत को क्रायोजेनिक इंजन की तकनीक ट्रांसफर करने के लिए राजी हो गया था। ये काम करने के लिए रूस ने भारत के साथ सिर्फ 235 करोड़ रुपये की डील की थी। जबकि इसी तकनीक के लिए अमेरिका ने भारत से 950 करोड़ रुपये और फ्रांस ने 650 करोड़ रुपये मांगे थे। रूस के साथ समझौता करके भारत ने अमेरिका और फ्रांस को नाराज कर दिया। इसके बाद अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश के दवाब में आकर रूस ने भारत को क्रायोजेनिक बेस फ्यूल डेवलप करने की तकनीक ट्रांसफर करने से मना कर दिया।
क्रायोजेनिक बेस फ्यूल की तकनीक क्या होती है?
क्रायोजेनिक इंजन शून्य से काफी नीचे के तापमान पर काम करती है। -238 डिग्री फॉरेनहाइट को क्रायोजेनिक तापमान कहा जाता है। इस तापमान पर क्रायोजेनिक ईंजन का ईंधन लिक्विड बन जाती हैं। लिक्विड ऑक्सीजन और लिक्वीड हाइड्रोजन को क्रायोजेनिक ईंजन में जलाया जाता है। लिक्वीड ईंधन के जलने से जो ऊर्जा पैदा होती है जिससे क्रायोजेनिक ईंजन को 4.4 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार मिल पाती है।
लेकिन रूस ने जब ये तकनीक भारत को देने से इनकार कर दिया तो भारत के सामने सिर्फ एक ही विकल्प बचा था खुद क्रायोजेनिक ईजन को डेवलप करना। तब इसरो ने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के विकास करने का फैसला किया और इसके लिए एक प्रोजेक्ट की शुरूआत की गई। एस नांबी नारायणन नाम के वैज्ञानिक को इस प्रोजेक्ट का डायरेक्टर बनाया गया। नांबी नारायणन ने पहली बार भारत में लिक्विड फ्यूल टेक्नॉलाजी का विकास किया था।
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जासूसी के इल्जाम
1994 में इसरो जासूसी कांड की बात सामने आई और आरोप लगा कि नांबी नारायणन और डी शशिकुमार समेत चार लोगों ने इसरो के स्पेस प्रोग्राम के सीक्रेट दूसरे देशों को बेच दिए। अक्टूबर 1994 में केरल पुलिस ने मालदीव की महिला मरियम रशीला को तय समय से ज्यादा भारत में रहने के लिए पकड़ा। पूछताछ के बाद पुलिस ने इसरो के वैज्ञानिकों के खिलाफ केस बनाया। कहा गया कि वैज्ञानिकों ने मालदीव की औरतों के जरिये पाकिस्तान को क्रायोजेनिक इंजन की खुफिया जानकारी बेची थी। पहले 20 दिन केरल पुलिस और आईबी ने मामले की जांच की फिर जो साल बाद 1996 में सीबीआई ने इसकी जांच की। जब सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की तो कहा- इसरो की सूचनाओं की कोई जासूसी नहीं हुई थी।
सीबीआई ने कहा- निर्दोष हैं नांबी
सीबीआई की ओर से कहा गया कि ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है। ऐसा कोई सबूत नहीं कि मालदीव की उन औरतों ने इन्हें कोई पैसे दिए थे। सीबीआई ने ये भी कहा कि इंटेलिजेंसस ब्यूरो ने गलत तरीके से जांच की थी और नांबी पर लगे आरोपों की ढंग से जांच नहीं की थी। जिसके कारण वैज्ञानिकों की इतनी बदनामी हुई। नारायणन ने 50 दिन जेल में बिताए थे और उन्होंने कहा था कि इंटेलीजेंस ब्यूरो के अधिकारियों के साथ मिलकर उनके खिलाफ झूठा केस बनाना चाहते हैं। अपने अधिकारियों के खिलाफ झूठा बयान देने से इनकार करने पर उन्हें इस हद तक टॉर्चर किया गया कि वो बेहोश हो गए।
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मई 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से नारायणन और बाकी आरोपियों को एक लाख रुपए मुआवजा अदा करने को कहा। इसके बाद साल 1999 में नारायणन ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में अपील की और मानसिक कष्ट के लिए हर्जाना देने की मांग की। मार्च 2001 में एनएचआरसी ने उनकी अपील को स्वीकार किया और 10 लाख रुपए के हर्जाने का आदेश दिया। सरकार ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी और नारायणन को 10 लाख रुपए हर्जाना दिया गया।
2019 में मिला पद्मभूषण
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नारायणन को 5,000,000 करीब 70,000 डॉलर मुआवजा अदा करने का फैसला किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केरल की सरकार आठ हफ्तों के अंदर यह जुर्माना अदा करे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अलग केर की सरकार ने उन्हें 1.3 करोड़ रुपए बतौर मुआवजा देने का फैसला किया था। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज की अगुवाई में मामले की जांच के लिए एक कमेटी भी बनाई गई। इस कमेटी को जिम्मेदारी सौंपी गई कि वो उन पुलिस ऑफिसर्स की जांच करें जिन्होंने नांबी को गिरफ्तार किया था। साल 2019 में नांबी नारायणन को देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।
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पुलिस अधिकारियों पर होगा ऐक्शन!
जिन पुलिस अधिकारियों के कारण नांबी को मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ा है उनके खिलाफ कार्रवाई के बारे में कमिटी को सुझाव पेश करने को कहा गया था। कमिटी ने रिपोर्ट पेश कर दी है और अब मामले में आगे की सुनवाई अगले हफ्ते होगी।- अभिनय आकाश
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