कहानी सुखोई डील बचाए जाने की, जब अटल ने सुरक्षा जरूरतों को चुनाव से ऊपर रखा
इंडियन एक्सप्रेस ने एक खबर चलाई कि सुखोई लड़ाकू विमान का समझौता साइन होने से पहले लगभग 35 करोड़ डाॅलर रूसी सरकार को दिए गए। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में इस बात की आशंका जताई गई कि पैसा एक तरह से घूस के रूप में सत्ताधारी पार्टी को वापस मिल गया क्योंकि उन्हें चुनावी मैदान में जाना था।
कंकरियाँ जिनकी सेज सुघर, छाया देता केवल अम्बर, विपदाएँ दूध पिलाती हैं, लोरी आँधियाँ सुनाती हैं। जो लाक्षा-गृह में जलते हैं वे ही शूरमा निकलते हैं। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की अमर रचना रश्मिरथी की यह पंत्तियां महाभारत के परिपेक्ष्य में थी। जिसके छंद आज भी प्रासंगिक हैं। महाभारत के बार में यह कहा जाता है कि ये कहानी हर दौर की कहानी है। कमोबेश वही कहानी इस दौर में भी कई बार दोहराई गई। सत्ता के लिए नैतिकता के मूल्य जानबूझकर तोड़े गए, भाषा की मर्यादा भी टूटती रही। महाभारत क्या है? सत्ता के लिए निरंतर टूटती हुई मर्यादा पर ताना गया युद्ध का एक मचान। वैद्य-अवैद्य का युद्ध नैतिक और अनैतिक का युद्ध, विश्वास और अविश्वास का युद्ध। महाभारत के युद्ध के वक्त तमाम तरह के कायदें तय हुए थे जैसे सूर्यास्त के बाद कोई शस्त्र नहीं उठाऐगा, स्त्रियों, बच्चों और निहत्थों पर कोई वार नहीं करेगा। महाभारत तो परंपराओं की कहानी है लेकिन हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी परंपरा लोकतंत्र में भी कई ऐसी कहानियां हैं जिसने समय-समय पर ये साबित किया है कि राजनीति में भी कई राजनेता ऐसे भी होते हैं जिसने सियासत की काली कोठरी में पांच दशक बिताने के बाद भी अपने दामन पर कभी भी एक दाग तक नहीं लगने दिय। इसके साथ ही जिसने राजनीति को एक नए सिरे से रंगा, लिखा, समझा और देशहित के लिए चुनावी मुद्दों को तिलांजलि देना सहजता से स्वीकार भी किया।
इसे भी पढ़ें: कांग्रेस पर आने वाले 15 सालों तक कोई विश्वास नहीं करेगाः कैलाश विजयवर्गीय
यह 1996 की बात है गर्मियों का महीना चल रहा था। केंद्र की सत्ता पर काबिज नरसिम्हा राव की सरकार अपने अंतिम वर्ष से गुजर रही थी। देश में आम चुनाव होने थे और राजनीतिक दलों का चुनाव प्रचार अभियान अपने चरम पर था। इंडियन एक्सप्रेस ने एक खबर चलाई कि सुखोई लड़ाकू विमान का समझौता साइन होने से पहले लगभग 35 करोड़ डाॅलर रूसी सरकार को दिए गए। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में इस बात की आशंका जताई गई कि पैसा एक तरह से घूस के रूप में सत्ताधारी पार्टी को वापस मिल गया क्योंकि उन्हें चुनावी मैदान में जाना था। इस खबर के सामने आते ही भारतीय जनता पार्टी ने विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया। लेकिन तभी भाजपा डील को लेकर किए जा रहे विरोध से एकाएक पीछे हट गई। पूर्व आईएएस अधिकारी शक्ति सिन्हा द्वारा लिखी पुस्तक ''वाजपेयी- द इयर्स दैट चेंजेड इंडिया'' के अनुसार अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा इस मुद्दे को नहीं उठाने का फैसला किया गया। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित इस पुस्तक के कुछ अंश के मुताबित वाजपेयी को लगा कि इस मुद्दे को उठाने से भारत की सुरक्षा जरूरतों से समझौता किया जाएगा। नरसिम्हा राव का मानना था कि उन्होंने विवादास्पद लेकिन सही निर्णय लिया। देश में आम चुनाव हुए और कांग्रेस चुनाव हार गई। लेकिन बाद में बनी संयुक्त मोर्चा सरकार के रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव ने ये सौदा पूरा कर लिया।
इसे भी पढ़ें: मुरैना में रोड शो के दौरान पार्टी नेताओं पर बरसे फूल, गूंजे भाजपा के समर्थन में नारे
अब आते हैं इस डिफेंस डील वाली कहानी के विस्तार पर। इंडियन एक्सप्रेस में खबर प्रकाशित होने के बाद ये थोड़ी देर के लिए ही सही पर चर्चा में रही कि नरसिम्हा राव सरकार के अंतिम दिनों में जल्दबाजी में डील फाइनल हुई। इसके साथ ही सरकार ने कोई अंतिम कीमत तय किए बिना एडवांस के रूप में 35 करोड़ डाॅलर की राशि का भुगतान किया। डील साइन करने के पीछे हड़बड़ाहट की भी बात उठी। लेकिन बाद में ऐसी भी बातें सामने आई कि रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने खुद के देश में चुनाव नजदीक होने और सुखोई फैक्टरी उनके क्षेत्र में आने की बात राव को बताई। इसके साथ ही हालत खराब होने से स्टाफ को वेतन नहीं दिया जा रहा है। ऐसी स्थिति में भारत के एडवांस पेमंट से उन्हें वेतन दिया जा सकेगा और ये बात जादू की तरह चुनाव में असर भी करेगा।
इसे भी पढ़ें: भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा प्रदेश भर में मनायेगा वाल्मीकि जयंती
मसला जो भी रहा हो लेकिन अक्सर जैसा कि कई रक्षा समझौतों के साथ होता रहा है, गंभीर आरोप लगाए जाते रहे, बड़ा चुनावी मुद्दा भी बना और कई सरकारें भी गंवानी पड़ी। लेकिन भाजपा ने इस मामले में चुप्पी साध ली। शक्ति सिन्हा की किताब के अनुसार वाजपेयी को इस बात का भय था कि यदि यह अच्छा एयरक्राफ्ट है तो घोटाले की अप्रमाणित बातों से डील खराब हो सकती है। जिसके बाद 1996 के लोकसभा चुनाव अभियान में वाजपेयी ने इस मुद्दे को नहीं उठाने का फैसला लिया। सिन्हा लिखते हैं कि क्योंकि वाजपेयी को लगा कि भारत की सुरक्षा जरूरतों से समझौता नहीं किया जा सकता। वर्तमान समय में इस तरह की घटनाएं रक्षा सौदों पर राजनीतिक लड़ाई के विपरीत एक प्रस्ताव पेश करती है। केंद्र में वाजपेयी की सरकार बनी, लेकिन वो 13 दिन ही चल पाई।
इसे भी पढ़ें: अटल योजना के तहत 2024 तक 35 हजार युवाओं का होगा कौशल विकास
मुलायम सिंह यादव और वाजपेयी की मुलाकात
नरसिम्हा राव की शब्दों में कहे तो 'विवादास्पद लेकिन सही निर्णय' के बाद कांग्रेस चुनाव हार गई। फिर ये सौदा सपा सदस्य और संयुक्त मोर्चा सरकार में रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव ने पूरा किया। आज के दौर में जब संसद परिसर राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोप और सियासी अखाड़ों का केंद्र बना रहता है। ऐसे दौर में किसी अच्छे काम की सराहना तो दूर की बात है उसको लेकर मंशा तक पर गंभीर सवाल उठाए जाते हैं। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में मुलायम सिंह की सराहना की और उनकी प्रशंसा के कुछ शब्द तो भाजपा के कई सदस्यों को आश्चर्यतकित कर गए थे। बाद में मुलायम सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी और जसवंत सिंह को साउथ ब्लाॅक आमंत्रित किया और सैन्य अनुबंधों की परिस्थितियों को समझाने हुए ब्रिफिंग की व्यवस्था रखी। वाजपेयी प्रमुख सुरक्षा मुद्दों पर घरेलू आम सहमति का संकेत देना चाहते थे, विशेष रूप से रूस के संबंध जो अंतरराष्ट्रीय मंचों में भारत प्रबल समर्थक था। वाजपेयी ने रूसी सरकार द्वारा स्वायत्त गारंटी का प्रावधान जिसके अंतर्गत ऐसे प्रावधान रखने की बात सुझाई। इसके लिए किसी भी प्रकार की रिश्वत नहीं दी गई हैं और यदि ऐसा कुछ भविष्य में सामने आता है तो वे भारत सरकार को इसकी भरपाई करेंगे। राजनीति के कट्टर प्रतिद्वंदी मुलायम सिंह और भाजपा ने बंद दरवाजों के पीछे एक इतने बड़े संवेदनशील मुद्दे के दस्तावेज साझा किए, ये अपने आप में रजनाीति में किसी मिसाल सरीखा है। - अभिनय आकाश
अन्य न्यूज़