लोक लुभावने चुनावी वादों पर मद्रास HC की टिप्पणी नेता-मतदाता दोनों को खुद के भीतर झांकने पर करती है मजबूर
तमिलनाडु में तमाम राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की तरफ से लोक लुभावने वादे और घोषणाएं किए जा रहे हैं। कोर्ट की तरफ से एक तरफ लोकलुभावने वादें करने वाले राजनेताओं को फटकार लगाई है वहीं मतदाताओं से भी सवाल किया है कि क्या अपने वोट बेचने वाले लोगों को नेताओं पर सवाल उठाने का कोई नैतिक अधिकार है।
सत्ता बदले या सरकार , मुद्दे बदले या विचार , चुनाव आयोग का नजरिया बदले या मीडिया के चुनाव कवरेज का तरीका , अगर नही बदला है तो सिर्फ़ मतदाताओ को उलझा कर उनको विकास के सपने दिखाकर , रोजगार के नये अवसरो को पैदा करने का आश्वासन देकर, भ्रष्टाचार एवं मुफ़्त और लोक लुभावने वादे का झांसा देकर अपनी अपनी राजनीतिक रोटियों को सेंक सत्ता का भोग करना ! तमिलनाडु में चुनाव है और इसे जीतने के लिए सत्तारूढ़ एआईएडीएमके ने छह एलपीजी सिलेंडर देने और सोलर स्टोव देने का वादा किया। वहीं सत्ता में अपनी जगह बनाए रखने के लिए डीएमके ने जरूरतमंदों को एजुकेशन लोन देने का वादा किया है। लेकिन दक्षिण मदुरै से एक निर्दलीय उम्मीदवार सर्बानंद ने ऐसे-ऐसे वादे किए हैं कि अगर ये वादें सच में पूरे हो जाएं तो आप भी मदुरै शिफ्ट होने की सोच सकते हैं। सर्बानंद ने अपनी चुनावी घोषणापत्र में वादा किया है कि अगर वो चुनाव जीते तो लोगों को तीन मंजिला मकान देंगे जिसमें स्विमिंग पूल भी होगा। घर के खर्च के लिए हर साल 1 करोड़ रूपए भत्ता देंगे। 20 लाख की एक कार और एक छोटा हेलीकॉप्टर भी देंगे। घर में काम करने के लिए एक रोबोट भी देंगे। हर किसी को एक आईफोन देंगे और भी बहुत कुछ। अब आप कह रहे होंगे कि भईया जब इतना सबकुछ मिल ही जाएगा तो काहे कि चिंता, जिंदगी संवर जाएगी। आज के विश्लेषण में हम आपको पहले तो तमिलनाडु में राजनीतिक दलों के किए गए चुनावी वादों के बारे में बताएंगे और उसको बाद आपको मद्रास हाई कोर्ट की टिप्पणी से भी रूबरू करवाएंगे जो कि नेता और मतदाताओं दोनों को ही खुद के भीतर झांकने पर मजबूर करती है।
देश के पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। तमिलनाडु में तमाम सियासी पार्टियां और उम्मीदवार मतदाताओं को लुभाने के लिए लोक लुभावनी घोषणाएं कर रहे हैं। ऑल इंडिया द्रविड़ मुनेत्र कझगम (एआईएडीएमके) की कोशिश इन वादों के सहारे तीसरी बार वापसी की है तो 10 साल से सत्ता से दूर रही द्रविड़ मुनेत्र कझगम (डीएमके) जीत के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रही है। चुनावी घोषणा पत्र में टीवी, सोने की चेन, टैबलेट और वॉशिंग मशीन जैसे तमाम सामानों को मुफ्त देने की घोषणा हो चुकी है।
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AIADMK ने किया ये वादा
एआईएडीएमके ने हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा किया है। इसके साथ ही राज्य में उनकी सरकार बनने पर हर साल हर परिवार को एलपीजी की 6 सिलेंडर मुफ्त दिए जाएंगे। एआईएडीएमके ने अपने घोषणापत्र में कहा कि हर हाउस वाइफ को महीने में 1500 रुपये दिए जाएंगे, सरकारी बसों में महिलाओं को 50 प्रतिशत किराए में छूट मिलेगी। अम्मा हाउसिंग स्कीम के तहत बेघरों को फ्री में आवास उपलब्ध कराने, ग्रामीण इलाकों में जमीन खरीदकर पक्के घर बनाकर फ्री में देने और शहरी इलाकों में अपार्टमेंट बनाकर फ्लैट देने की घोषणा की है। एआईएडीएमके की तरफ से सभी घरों में मुफ्त केबल टीवी देने का भी वादा किया गया है। किसानों को 7500 प्रति वर्ष भत्ता के रूप में दिया जाएगा।
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DMK के घोषणापत्र में सस्ते की सौगात
डीएमके ने अपने घोषणापत्र में महिलाओं और युवाओं को ध्यान में रखते हुए तमाम योजनाओं की झड़ियां बरसाई हैं। डीएमके ने राज्य में तमिलों को 75 फीसदी नौकरियों का वादा किया है। इसके अलावा विद्यार्थियों को मुफ्त डाटा कार्ड के साथ कंप्यूटर टैबलेट देने और राज्य की 75 प्रतिशत नौकरियों को स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने के लिए कानून बनाने सहित कई वादें किए गए हैं। पेट्रोल और डीजल पर लगे करों में पांच और चार रुपये की कटौती की जाएगी। पूरे साल छात्रों को 2 जीबी डाटा मुफ्त दिया जाएगा। डीएमके के घोषणापत्र के अनुसार दूध के दाम तीन रुपये कम किए जाएंगे। हिंदू मंदिर के रखरखाव के लिए 1 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए जाएंगे। घोषणापत्र में किसानों को नई गाड़ी खरीदने के लिए 10 हजार रुपये की आर्थिक मदद की बात कही गई। बेघर लोगों के लिए नाइट शेल्टर और महिलाओं की मैटरनिटी लीव बढ़ाकर 12 महीने करने की बात कही गई है।
चांद पर 100 दिन की छुट्टी, स्विमिंग पूल के साथ मकान
मदुरै साउथ सीट से एक निर्दलीय उम्मीदवार ने वोटरों से मुफ्त आईफोन, स्विमिंग पुल के साथ तीन मंजिला मकान, चांद पर 100 दिन की छुट्टियां, हर युवक को बिजनेस के लिए एक करोड़ रुपए देने के वादें किए है। इसके अलावा 20 लाख रुपए की कार, हर घर को छोटा हेलिकॉप्टर। घर के कामकाज में मदद के लिए एक रोबोट और हर लड़की को शादी पर 800 ग्राम सोना। निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थुलाम सर्वानन सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने ये कदम राजनीतिक दलों की ओर से अपने चुनावी घोषणा पत्रों में मुफ्त चीजें देने की झड़ी लगाने पर तंज कसने के लिए ये रास्ता अपनाया है।
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तमिलनाडु में तमाम राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की तरफ से मतदाताओं के लिए लोक लुभावने वादे और घोषणाएं किए जा रहे हैं। लेकिन अब हम आपको इन वादों को लेकर मद्रास हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी के बारे में बताते हैं। जिसमें कोर्ट की तरफ से एक तरफ लोकलुभावने वादें करने वाले राजनेताओं को फटकार लगाई है वहीं मतदातों से भी सवाल किया है कि क्या अपने वोट बेचने वाले लोगों को नेताओं पर सवाल उठाने का कोई नैतिक अधिकार है। दरअसल, तिरुनेवल्ली जिले के निवासी एम चंद्रमोहन ने निर्वाचन अधिकारियों को वसुदेवानल्लूर विधानसङा की आरक्षित सीट को सामान्य वर्ग में तब्दील करने का निर्दैश देने की गुहार लगाई थी। जिस पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एन किरुवकरन और जस्टिस बी पुगलेंधी ने जो बाते कहीं वो गौर से सुनने लायक है।
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा- उम्मीदवारों को फ्री लैपटॉप, टीवी, पंखे, मिक्सी और अन्य चीजों के बजाय बुनियादी सुविधाओं को मैनिफेस्टो में शामिल करनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि बेहतर है कि राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशी ऐसे मुफ्त सामान देने के वादे की जगह वोटरों को पानी, बिजली, स्वास्थ्य और ट्रांसपोर्ट सुविधाएं बेहतर करने के वादे करें। हाईकोर्ट की तरफ से कहा गया कि हर दल लोक लुभावन वादों के मामले में एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश करता है। ऐसे में कोई एक दल परिवार की महिला मुखिया को 1 हजार रुपये महीने की आर्थिक सहायता का वादा करता है तो जवाब में दूसरा दल 1500 रुपये का प्रस्ताव रख देता है। परिणाम यह हुआ कि लोगों में मुफ्त में जीवन यापन करने की मानसिकता पैदा होने लगी है। कोर्ट ने कहा कि ये चलन बन गया है। जो भी बैंक से कर्ज लेता है उसे लौटाता नहीं है बल्कि चुनावों के दौरान कर्जमाफी की उम्मीद करने लगता है। इस तरह से लोग राजनीतिक दलों के जरिये भ्रष्टाचारी बनाए जा रहे हैं। हर उम्मीदवार चुनाव में करीब 20 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं क्योंकि बहुत सारे लोग कुछ हजार रुपये, बिरयानी और शराब के लिए अपना वोट बेचकर भ्रष्टाचारी बन रहे हैं। पीठ ने कहा कि जिस तरीके से दल अपने वादे करते हैं, यह अकार और अनुचित तथा वास्तव में आवंछित है। यह एक सच्चाई है। अगर ऐसा है तो जनता अच्छे नेताओं की उम्मीद कैसे कर सकती है?
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बहरहाल, कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद राजनीति में क्या परिवर्तन आता है ये देखना दिलचस्प होगा। लेकिन कुल मिलाकर कहे तो राजनीतिक घरानों ने मतदाताओ को एक ऐसे बाज़ार के शक्ल में शुमार कर लिया है जो उनके वादों के खरीदार बन ही जाय चाहे वो शराब पीकर बने या फिर नोट लेकर या फ़िर मुफ्त की किसी योजना के तहत ! मतलब साफ़ है कि तरीका जो भी हो और नीतियां जो भी बने राजनीतिक परिपाटी तो हमेशा इस बाज़ार पर कब्जा जमाने की ही रहेगी ! ये यूं ही चलता रहेगा। ये चुनाव गुजर जाएगा और फिर अगला चुनाव आएगा कब चुनाव घोषणा होने से पहले सड़कें ठीक हो जाएंगी। चौबीस घंटें बिजली और पानी की व्यवस्था हो जाएगी और फिर से शुरू हो जाएगाा किए गए कामों की गिनती कराना और आने वाली सत्ता को फिर से हासिल करने के लिए नए वादों को परोसना क्योंकि किसी ने सच ही कहा है की चुनाव उस बारिश की तरह है जो आने के कुछ समय पहले अपनी भीनी खुशबू में लोगों को मदमस्म्त कर देता है और जब ये बारिश तेज होती है इसमें भींगने का मजा भी आता है लेकिन बाद मे वैसा ही रहता है जैसा की बारीश के बाद का कीचड़।- अभिनय आकाश
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