एलोपैथी बनाम आयुर्वेद विवाद क्यों? क्या है IMA और इसके चीफ पर धर्मांतरण को बढ़ावा देने के आरोप क्यों लग रहे हैं
योगगुरु बाबा रामदेव और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी आईएमए के बीच चल रहा विवाद लगातार गहराता जा रहा है। दोनों ही ओर से लगातार बयानों की बौछार जारी है। योग गुरू रामदेव ने एलोपैथी को लेकर विवादित टिप्पणी की तो विवाद फुल स्पीड से बढ़ता गया, डॉक्टर आगबबूला हो गए।
हमारे जीवन और वेद्य का संगम है आयुर्वेद। भारत की इस प्राचीन विरासत को प्राचीन चिकित्सा पद्दत्ति भी माना जाता है। मगर देश में आयुर्वेद और एलोपैथ के बीच घमासान छिड़ा है। योगगुरु बाबा रामदेव और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी आईएमए के बीच चल रहा विवाद लगातार गहराता जा रहा है। दोनों ही ओर से लगातार बयानों की बौछार जारी है। खेद जताकर खत्म होने वाली लड़ाई 1000 करोड़ के मानहानि के नोटिस, देशद्रोह और पुलिस कंप्लेन तक आ पहुंची है। जैसे ही एलोपैथी बनाम आयुर्वेद की लड़ाई खत्म होती दिखती है कि अचानक से कोई और बयान इस जंग को और तूल दे देता है। ऐसे में आज आपको रामदेव बनाम एलोपैथी विवाद की शुरुआत से लेकर पूरे पहलुओं के बारे में बताएंगे साथ ही आपको इंडियन मेडिकल एसोसिएशन से भी रूबरू करवाएंगे। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया/ नेशनल मेडिकल कमीशन में फर्क के से भी अवगत करवाएंगे।
आइए सबसे पहले आपको ये सुनाते हैं कि आखिर ऐसा क्या कह दिया योगगुरू बाबा रामदेव ने कि उनके बयान पर एलोपैथी डॉक्टर आग बबूला हो गए।
"बाबा रामदेव ने वायरल वीडियो में कहा था कि गजब का तमाशा है। एलोपैथी एक ऐसी स्टूपिड और दिवालिया साइंस है कि पहले क्लोरोक्वीन फेल हुई। फिर रेमडेसिविर फेल हो गई। फिर एंटीबायोटिक, स्टेरॉयड फेल हुए। प्लाजमा थेरेपी के ऊपर भी बैन लग गया। बुखार के लिए भी जो दे रहे हैं फेवीफ्लू वो भी फेल है। ये तमाशा हो क्या रहा है। बुखार की कोई भी दवाई कोरोना पर काम नहीं कर रही है।"
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योग गुरू रामदेव ने एलोपैथी को लेकर विवादित टिप्पणी की तो विवाद फुल स्पीड से बढ़ता गया, डॉक्टर आगबबूला हो गए। उन्होंने सरकार को चिट्ठी लिखी और फिर स्वास्थ्य मंत्री ने रामदेव को चिट्ठी लिखी। स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने योग गुरु बाबा रामदेव के बयान पर आपत्ति जताते हुए उन्हें चिट्ठी लिखी थी और बयान वापस लेने की मांग की थी। उन्होंने 23 मई को इस मामले में बाबा रामदेव को लेटर लिखा। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने एलोपैथी के बारे में दिये गए योग गुरु रामदेव के बयान को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए उन्हें इसे वापस लेने को कहा। उन्होंने कहा, आपका बयान कोरोना योद्धाओं का अनादर और देश की भावनाओं को आहत करता है। एलोपैथी पर आपका बयान स्वास्थ्यकर्मियों का मनोबल तोड़ सकता है। इससे कोविड-19 के खिलाफ हमारी लड़ाई कमजोर हो सकती है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि एलोपैथी दवाओं ने करोड़ों लोगों का जीवन बचाया है और यह टिप्पणी ‘बेहद दुर्भाग्यपूर्ण’ है कि इससे लाखों लोगों की जान गई है। पत्र में कहा गया है, आप भी जानते हैं कि कोविड के खिलाफ लड़ाई में बेशुमार स्वास्थ्य कर्मियों ने अपनी जान गंवा दी। आप एलोपैथी चिकित्सा को नाटक, बेकार और दिवालिया कह रहे हैं, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। स्वास्थ्य मंत्री ने रामदेव को चिट्ठी लिखकर बयान वापस लेने की मांग तब कि जब डॉक्टर्स की संस्था भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) डॉ. हर्षवर्धन को चिट्ठी लिखकर योग गुरु के बयान पर नाराजगी जताई। आईएमए ने लिखा- रामदेव अपनी अवैध दवा को बेचने के लिए एलोपैथी के खिलाफ भ्रम फैला रहे हैं। एलोपैथी के खिलाफ भ्रम फैलाने से एक बड़ी आबादी को नुकसान होगा। रामदेव के बयान ने डॉक्टर्स को इस कदर नाराज कर दिया कि आईएमए ने योग गुरु को लीगल नोटिस भी भेजा और मुकदमा चलाने की मांग भी उठाई।
योगगुरु ने अपना बयान वापस ले लिया
आखिरकार योग गुरु को अपना बयान वापस लेना पड़ गया। रामदेव ने स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन की चिट्ठी मिलने के बाद सोशल मीडिया पर लिखा- आपका पत्र प्राप्त हुआ। उसके संदर्भ में चिकित्सा पद्दतियों के संघर्ष के इस पूरे विवाद को खेदपूर्वक विराम देते हुए मैं अपना बयान वापस लेता हूं। मेडिकल साइंस के सभी रुपों का सम्मान करता हूं। एलोपैथी कई जानें बचाई हैं।
क्या है आईएमए यानी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन
आईएमए डॉक्टरों की एक राष्ट्रस्तरीय संस्था है और इसमें मॉर्डन साइंटिफिक सिस्टम ऑफ मेडिसिन से जुड़े डॉक्टर शामिल हैं। यह संस्था डॉक्टर और पूरे मेडिकल समुदाय की भलाई और कल्याण से जुड़े काम देखती है। इसकी स्थापना 1928 में ब्रिटिश शासन काल के दौरान हुई थी। उससे पहले कुछ डॉक्टर और उनका एक छोटा ग्रुप ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन से जुड़ा हुआ था। इस संस्था की शाखाएं देशभर में थी जो स्थानीय स्तर पर डॉक्टरों की जरूरतों का ख्याल रखते थे।
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ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन
इसी संस्था के लोगों ने बाद में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की स्थापना की। ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन के साथ एक करार हुआ था जिसमें कहा गया कि ब्रिटिश एसोसिएशन का भारत में कोई ब्रांच नहीं होगा। पूर् में आईएमए का दायरा बहुत व्यापक रहा और इस संस्था ने विश्व स्तर पर डॉक्टर के संगठन वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन बनाने में बड़ी मदद की है। इस वैश्विक संस्था का फाउंडिंग मेंबर आईएमए ही है।
आईएमका क्या काम है?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का मुख्यालय दिल्ली में है। देश के 34 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों में इसकी शाखाएं हैं। आईएमए की आधिकारिक वेबसाइट की माने तो इस संस्था के साथ मेंबर के तौर पर 3 लाख 30 हजार डॉक्टर जुड़े हैं। पूरे देश में आईएमए की 1750 से ज्यादा स्थानीय शाखाएं हैं। इस संस्था का काम देश में मेडिकल और उससे जुड़े विज्ञान को बढ़ावा देना है। इसका मुख्य काम लोगों के स्वास्थ्य और मेडिकल एजुकेशन को बढ़ावा देना है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया/ नेशनल मेडिकल कमीशन में फर्क?
आपमें से बहुत लोग इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के बीच कन्फ्यूज हो जाते होंगे। आपको बता दें कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन एक वॉलेंट्री ऑर्गनाइजेशन है जबकि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया जिसका नाम बदलकर नेशनल मेडिकल कमीशन कर दिया गया है भारत सरकार द्वारा बनाई गई एक संवैधानिक संस्था है।
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बहरहाल, पूरे विवाद के बाद स्वामी रामदेव डॉक्टरों के साथ ही कई लोगों के निशाने पर आ गए हैं। रामदेव क कॉपोरेट बाबा, व्यापारी स्वामी जैसी कई उपाधियां दी जा रही हैं। ऐसे में आपको रामदेव के खिलाफ मुखर रहने वाले आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जेए जयलाल से भी रूबरू करवाते है।
आईएमए के अध्यक्ष डॉ डॉ. जेए जयलाल (जॉनरोज ऑस्टिन जयलाल) पर ईसाई धर्म को बढ़ावा देने के आरोप लगे हैं। आरएसएस के मुखपतत्र ऑर्गेनाइजर में छपी एक खबर के अनुसार धर्मांतरण के लिए अपने कार्यालय का दुरुपयोग करने के लिए डॉ जेए जयलाल के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज हुई है। रामदेव के एलोपैथी पर दिए बयान पर उनसे भिड़ने वाले आईएमए के डॉ. जयलाल का दो महीने पुराने इंटरव्यू वायरल हो रहा है। जिसमें कथित तौर पर किश्चन धर्म का उदाहरण देते हुए उन्होंने कोरोना को खत्म करने की बात कही थी।
"कोई भी डॉक्टर उन तमाम क्षेत्रों में काम करने के लिए या आईसीयू में काम करने के लिए आगे नहीं आना चाहता था। जहां सबसे ज्यादा लोग हताहत हुए थे। मगर कई कमिटेड डॉक्टर्स सामने आए और उन्होंने उन सभी क्षेत्र में सेवा दी, चर्च के अस्पतालों ने भी इसमें आगे आकर सेवा की है। वह केवल ईसाईयों की सेवा नहीं करते वह निम्न सामाजिक वर्ग आर्थिक स्थिति में कमजोर लोगों की भी सेवा करते हैं। छोटे और स्थानीय क्षेत्रों में ईसाइयों ने आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों सहित कई अन्य दलित लोगों की भी सेवा की है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि भगवान का ध्यान अभी यूएसए हटकर इंडिया पर आ गया है। वह अपनी कृपा इंडिया पर बरसा रहा है इसलिए हम यह संदेश देना चाहते हैं कि यह ईश्वर की कृपा है । यह हमारी शक्ति से नहीं बल्कि ईश्वर की कृपा है कि भारत की स्थिति ठीक हो रही है। साथ ही हेल्थ केयर सिस्टम की वजह से स्थिति अब सामान्य हो रही।"
ये बातें डॉ. जयलाल ने क्रिश्चियनिटी टुडे को दिए एक इंटरव्यू में कही थी। वहीं हेग्या इंटरनेशनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि युवा मेडिकल छात्रों और डॉक्टरों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए अपने पद का उपयोग करना चाहते हैं। उनका मानना है कि पिछले कुछ वर्षों में आधुनिक मेडिसन की जगह पर आयुर्वेद को लाने की कोशिशे की जा रही है। आयुर्वेद, यूनानी, होमयोपैथ और योग इत्यादि की जड़ें संस्कृत में हैं, जो कि हिन्दुत्व की भाषा है।
IMA अध्यक्ष के खिलाफ शिकायत दर्ज
दिल्ली के एक वकील ने 28 मई 2021 को डॉ जेए जयलाल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस का कहना है कि वकील विष्णु शर्मा ने जयलाल के खिलाफ ईसाई धर्म का प्रचार करने और लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए उकसाने की शिकायत दर्ज कराई है। शर्मा ने अपनी शिकायत में कहा कि जयलाल सोशल मीडिया पर ईसाई धर्म का जिस तरह से प्रचार कर रहे हैं, उससे धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा मिल रहा है। शर्मा ने जयलाल पर आरोप लगाया है कि वह मीडिया में अपने इंटरव्यू के जरिए ईसाई धर्म को बढ़ावा दे रहे थे।
Filed complaint @NMC_IND and @MoHFW_INDIA seeking revocation of Medical Practitioner's License of Mr. John Jayalal, President, Indian Medical Association @IMAIndiaOrg as he has openly declared his intention of splitting human beings into Christians and non-Christians.
— Legal Rights Protection Forum (@lawinforce) May 27, 2021
(1/2) pic.twitter.com/P9D5cE9vUP
एलोपैथी बनाम आयुर्वेद
अब आते हैं एलोपैथी बनाम आयुर्वेद की लड़ाई पर। आपको बता दें कि कोई भी पद्दति न तो पूरी तरह से पूर्ण ह सकती है और न ही सटी। लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं होना चाहिए कि किसी पद्दति को अवैज्ञानिक कह कर सिरे से खारिज कर दिया जाए। अगर आयुर्वेद या पारंपरिक चिकित्सा पद्दति इतनी ही अवैज्ञानिक थी तो विज्ञानी होने का दावा करने वाली पश्चिमी देशों के तमाम लग इसके मुरीद क्यों हो होते चले गए? कोरोना महामारी के दौर में निश्चित ही सभी चिकित्सा पद्दतियों के डॉक्टरों ने मेहनत की है। लेकिन ये भी सच है कि भारत जैसे विशाल देश में किसी एक पद्दति के सहारे पूरी जनसंख्या की सेहत की रखवाली कर पाना आसान नहीं। इसलिए जिस पद्दति में जो कमी है, उसे स्वीकार करें और दूसरी पद्दति की अच्छाई को स्वीकार करें। आयुर्वेद बनाम एलोपैथी का विवाद करोना के इलाज के संदर्भ में बढ़ा है। लेकिन हमें एलोपैथी की सीमाओं को भी देखना होगा।
- अभिनय आकाश
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