रावण क्लब की ज़ोरदार बैठक (व्यंग्य)
रावणजी ने बैठक में कहा कि मुझे पूरा विशवास है कि समाज वाले पर्यावरण बारे न सोचकर हमारे ऊंचे पुतले ज़रूर बनवाएंगे और हमारे जैसे प्रसिद्ध नेताओं से उनमें आग लगवाएंगे। हमें बुराई का प्रतीक बताकर, हमारे पुतले जलाकर मान लेंगे कि बुराई कम हो गई।
रावण क्लब के सदस्य चाहते थे कि इस साल दशहरा से पहले बैठक रखी जाए। पिछले साल दशहरा के बाद बैठक हो पाई थी लेकिन अफरातफरी में तभी राक्षसी हितों बारे ढंग से विचार विमर्श नहीं हो पाया। बैठक आयोजन बारे कुछ सदस्य, अध्यक्ष रावणजी से मिलने गए तो उन्होंने सौम्यता से स्वीकृति देते हुए कहा, मेरी नज़र से देखो, मेरे दिमाग से समझो तो राक्षसी हितों की रक्षा करने में समाज बहुत सहयोग दे रहा है। समाज में ईर्ष्या द्वेष, नफरत और विषमताएं बढ़ती जा रही हैं। इस बहाने हम सभी का कद ऊंचा होता जा रहा है।
रावणजी ने बैठक में कहा कि मुझे पूरा विशवास है कि समाज वाले पर्यावरण बारे न सोचकर हमारे ऊंचे पुतले ज़रूर बनवाएंगे और हमारे जैसे प्रसिद्ध नेताओं से उनमें आग लगवाएंगे। हमें बुराई का प्रतीक बताकर, हमारे पुतले जलाकर मान लेंगे कि बुराई कम हो गई। इस बहाने बुराई पर अच्छाई की विजय मान ली जाएगी। यह लोग पुतले जलाते रहते हैं, इन्हें लगता है पुतले फूंकने के साथ बुराई का अंत हो गया। बहुत नासमझ हैं। यह सब समाज में रोपित राक्षसी खूबियों के परिणाम हैं। अच्छाई अब चमकदार मुखौटा बन चुकी है, कोई अपना बुरा आचरण, अच्छे आचरण में बदलने को राज़ी नहीं, हर एक दिमाग में, मैं हूं ... यानी रावण प्रवृति। हमारे दरबार जैसी सुख सुविधाएं, मनोरंजन, नाच गाना, खाना पीना, मारना पीटना, उदंडता भारतवासियों को बहुत पसंद आ रही है, वे इनमें डूबे हुए हैं और अपने मानवीय, पारिवारिक, नैतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय कर्तव्य भूलते जा रहे हैं। इससे यही साबित होता है कि रावण प्रवृतियां बढ़ती जा रही हैं, यानी हमारे साम्राज्य को कोई खतरा नहीं।
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मेघनाद ने कहा, महाराज आप कहें तो मैं भी अपनी प्रशंसा कर लूं लेकिन रावण बोले, अब तो हर कोई रावण होना चाहता है। आदमी बुराई जल्दी सीखता है, अच्छाई नहीं। लोगों ने कितनी लंकाएं बसा रखी हैं, हम तो बुराई के प्रतीक मात्र हैं लेकिन समाज में तो अनगिनत रावण हैं, कितने मेघनाद और कुंभकर्ण तो करोड़ों हैं। हमारी असुर प्रवृति समाज में विकसित होती जा रही है। हमारे गुण यानी अहंकार, हवस, लोभ, मोह, काम, क्रोध, अनीति, अधर्म, अनाचार, असत्यता निसदिन बढ़ते जा रहे हैं। बुराई व्यवसाय बन चुकी है, हमारे नाम पर करोड़ों का व्यवसाय हो रहा है।
रावणजी ने राक्षसों की बोलती बंद कर दी थी। उनके ओजस्वी भाषण के दौरान कुंभकर्ण को भी नींद नहीं आई। उसने मन ही मन संकल्प लिया कि वह अपना जीवन अब सोकर व्यर्थ नहीं जाने देगा बल्कि राक्षसी संस्कृति की की रक्षा और प्रसार के लिए संजीदा कार्य करेगा। मेघनाद को इशारा करते हुए रावणजी ने कहा, हम तुम्हें बोलने का अवसर दे रहे हैं लेकिन अपनी प्रशंसा के साथ हमारी प्रशंसा भी करना, बोलो पराक्रमी, हरयुगी राजा रावण की जय।
- संतोष उत्सुक
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