लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े होते थे शरद जोशी के व्यंग्य
व्यंग्यकार शरद जोशी जी ने अपने व्यंग्यों में राजनीतिक समस्याओं, सामाजिक धार्मिक कुरीतियों, तात्कालिक घटनाओं को इतनी कुशलता और इस अंदाज में उठाया कि उन्होंने सीधे पाठकों के दिल को छुआ।
शरद जोशी ने व्यंग्य लेखन की विधा को एक नया आयाम दिया और अपनी लेखनी के जरिए उस समय की सामाजिक, धार्मिक कुरीतियों और राजनीति पर चुटीला कटाक्ष किया। उनके व्यंग्य आज की परिस्थितियों में भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस समय थे। भगत सिंह कॉलेज में हिंदी साहित्य के प्रोफेसर डॉ. सुनील कुमार तिवारी ने जोशी के जन्मदिन पर कहा कि शरद जोशी के व्यंग्यों की प्रासंगिकता और लोकप्रियता आज भी बरकरार है।
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उन्होंने कहा, ''शरद जी ने अपने व्यंग्यों में राजनीतिक समस्याओं, सामाजिक धार्मिक कुरीतियों, तात्कालिक घटनाओं को इतनी कुशलता और इस अंदाज में उठाया कि उन्होंने सीधे पाठकों के दिल को छुआ और उन्हें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया।'' डॉ. तिवारी ने कहा, ''उनके लिखे व्यंग्यों में इतना गहरा कटाक्ष होता था जो पाठकों को अंदर तक झकझोर देता था और लंबे समय तक सोचते रहने पर मजबूर कर देता था।'' जेएनयू में हिंदी साहित्य के प्रोफेसर राम बख्श ने कहा कि शरद जोशी की लोकप्रियता का सबसे अहम कारण उनके व्यंग्यों में मौजूद विरोध का स्वर और उनका आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ा होना था।
प्रो. राम बख्श ने कहा, ''1960 के बाद का समय हिंदी साहित्य में विरोध के स्वर के गौरव का दौर था। इससे पहले विरोध को उतनी लोकप्रियता नहीं मिली थी। जोशी जी ने राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं पर गहरी चोट की। लोगों को वह पसंद आई क्योंकि वह सीधे उनके सरोकारों तक पहुंचती थी। लोगों को लगा जो बात वह नहीं कह पाते वह इन व्यंग्यों में कही गई है जैसे− राजनीति, भ्रष्टाचार पर चोट और सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार।''
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प्रो. राम बख्श ने कहा, ''उन्होंने लोगों को किसी भी घटना को देखने का एक नया नजरिया दिया। जोशी जी ने शालीन भाषा में भी अपनी बात को बेहतर ढंग और बहुत ही बारीकी से रखा, जिस कारण वह और उनके व्यंग्य पाठकों में खासे लोकप्रिय होते चले गए।'' डॉ. तिवारी ने कहा कि शरद जोशी ने जनता की समस्याओं को, जनता की भाषा में जनता के सामने अनोखे अंदाज में रखा। उन्होंने कहा, ''शरद जी ने किसी एक क्षेत्र को नहीं छुआ। उन्होंने सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक यहां तक कि धार्मिक सभी विषयों पर व्यंग्य किया। जितनी विविधता उनके विषयों में दिखाई देती है उतनी ही उसके प्रस्तुतीकरण में भी झलकती है। उनकी भाषा−शैली और प्रस्तुतीकरण का ढंग विषय के मुताबिक होता था जो सीधा पाठक के दिल में उतरता था।''
डॉ. तिवारी ने कहा कि उनकी व्यंग्य रचनाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस समय थीं। उन्होंने कहा, ''जोशी के व्यंग्यों की सबसे खास बात थी उनकी तात्कालिकता, वे किसी घटना पर तुरंत व्यंग्य लिखते थे जिससे पाठक उससे आसानी से जुड़ जाता था। जैसे उस समय हुए एक घोटाले पर उन्होंने 'हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे' नामक व्यंग्य लिखा। अपने शीर्षक से ही यह पूरी बात कह देता है। इसकी प्रासंगिकता आज भी बरकरार है। वे अपने व्यंग्यों में किसी को नहीं बख्शते थे, चाहे वह प्रधानमंत्री हो या निचले स्तर का कोई कर्मचारी।''
डॉ. तिवारी ने कहा कि उस समय नवभारत टाइम्स में आने वाला उनका कॉलम 'प्रतिदिन' बहुत लोकप्रिय था, यहां तक की लोग उसके लिए अखबार को पीछे से पढ़ना शुरू करते थे। उन्होंने कहा, ''शरद जी सिर्फ पाठकों के लिए और उनके भरोसे के लिए लिखते थे। वे अपनी रचनाओं में साहित्यिक भाषा या शैली पर ध्यान देने की बजाय पाठकों की पसंद पर ध्यान देते थे और उसी के अनुसार लिखते थे। यही उनकी लोकप्रियता का मूल कारण था और यही वजह है कि अखबारों में छपने वाले उनके दैनिक लेख और कॉलम भी साहित्य की अमूल्य धरोहर बन गए और आज किताबों के रूप में हमारे सामने हैं।''
उल्लेखनीय है कि शरद जोशी का जन्म 21 मई 1931 को मध्य प्रदेश के उज्जैन में हुआ। उन्होंने इंदौर के होल्कर कॉलेज से बीए किया और यहीं पर समाचार पत्रों तथा रेडियो में लेखन के जरिए अपने कॅरियर की शुरुआत की। उन्होंने 'जीप पर सवार इल्लियां', 'परिक्रमा', 'किसी बहाने', 'तिलस्म, 'यथा संभव', 'रहा किनारे बैठ' सहित कई किताबें लिखीं। इसके अलावा जोशी जी ने कई टीवी सीरियलों और फिल्मों में संवाद भी लिखे। पांच सितंबर 1991 को उनका निधन हुआ।
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