दिल से गरीब लोगों की बातें (व्यंग्य)
बरसों तक बच्चों को रोज़ स्कूल छोड़ने, सब्जी मंडी से ताज़ा सब्जी लाने, ज़रूरी शॉपिंग करने, कहीं भी किट्टी सजाने वाली सरकारी गाड़ी का जुगाड़ दिल से गरीब लोग ही करते हैं। निजी काम करते हुए सरकारी डयूटी भी निबटा देते हैं।
धन दौलत से अमीर लोग बढ़ते जा रहे हैं मगर दिल से अमीर लोग घटते जा रहे हैं। ज़्यादा टैक्स चुकाने या चुराने वालों को अमीर माना जाता है लेकिन जो लोग दूसरों से टैक्स वसूल करवाने के लिए क़ानून बनाते हैं खुद देना नहीं चाहते ऐसे लोग दिल से गरीब ही हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो सुविधाएं हथियाते यह शक्तिशाली लोग, धनवान होते हुए भी अपनी मासिक आय पर टैक्स सरकारी खाते से जमा कराने की स्वीकृति नहीं देते। यह तो अपना आयकर भी जनता से वसूल रहे हैं। हमारा टैक्स कोई और देता रहे इससे आरामदेह और बढ़िया अनुभव क्या हो सकता है। यह टैक्स भी तो उस आय पर है जो सरकारजी देती हैं। जो आय ‘असली’ होती है उस पर किसी भी तरह का कोई टैक्स लागू नहीं है। उस असली बचत को आयकर विवरणी में दिखाने की ज़रूरत भी नहीं है।
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बरसों तक बच्चों को रोज़ स्कूल छोड़ने, सब्जी मंडी से ताज़ा सब्जी लाने, ज़रूरी शॉपिंग करने, कहीं भी किट्टी सजाने वाली सरकारी गाड़ी का जुगाड़ दिल से गरीब लोग ही करते हैं। निजी काम करते हुए सरकारी डयूटी भी निबटा देते हैं। कोठीनुमा कॉटेज बनाने के लिए सामान कहां कहां से आता है पता नहीं चलता, अगर यह राशी आय में शामिल हो जाए तो दिल से गरीब बंदा कितना टैक्स और दे। घर में बच्चों का शादी ब्याह हो तो आयोजन अपने आप परवान चढ़ने लगता है। बंदा पूछता तो है लेकिन कोई उन्हें बताता नहीं बस उनका शुक्रिया अदा किया जाता है कि आपने सेवा करने का मौका दिया। पुण्य कार्य संपन्न होने के बाद ऐसे सेवा कराऊ बंदे से क्या टैक्स लेना बनता है। दिल से गरीब बंदे, सेवा के मेवे को अपनी दिखाऊ आमदनी में शामिल कैसे कर सकते हैं।
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दिल से गरीब यह बंदे चतुर सुजान आर्थिक प्रबंधक ढूंढते हैं और आयकर विवरणी को भी गरीब कर देते हैं। यह लोग ऊंचे, विशाल, ज़्यादा रोशनी वाले आशियानों के निवासी हैं। प्रॉपर्टी और करोड़ों होने के बावजूद इन्हें मुफ्त जगह रहना पसंद होता है इसलिए ऐसे बंगलों में रहते हैं जहां का किराया, बिजली, पानी और टेलीफोन का बिल न दो तो इन गरीबों का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। ये लोग, इस समय भी, कहीं न कहीं, किसी न किसी विचारशाला में तकनीक पका रहे होंगे कि गरीबों की ईमानदार कमाई कहां कहां इन्वेस्ट करें। संभव है इतिहास में प्रवेश कर कोई सफल फार्मूला खोज रहे हों। लगभग सब कुछ मुफ्त प्राप्त करने वाले यह गरीब जनसेवक सुरक्षा भी चाहते हैं और इन्हें मिलती भी है। हमारे एक मित्र जो काफी लोकप्रिय हैं उनके भक्तों ने उनसे कहा हम आपका जन्मदिन मनाना चाहते हैं सरकार, मुस्कुराते हुए वे बोले कौन इतने उपहार संभल कर रखेगा। उन्हें बताया गया हम निमंत्रण पत्र में लिख देंगे कि कोई उपहार न लाएं। शर्म और रिवायत के मारे नकद ही लेकर आएंगे। खाने का खर्च, हमारी ठोस और तरल मेहनत निकालकर, बाकी लाभ आपका। दिलचस्प यह है कि दिल से गरीब इन लोगों का प्रारब्ध इनकी जेब में होता है। वैसे दिल से गरीब होना हर किसी के बस की बात नहीं।
- संतोष उत्सुक
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