गलत इंजेक्सन (व्यंग्य)

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एक रिसर्च का विषय है ये गलत इंजेक्शन आखिर बनता कौन है? ये होता कैसा है? दिखने में कैसा लगता है? निश्चित ही इसकी शक्ल बिलकुल साक्षात् यमराज जैसी ही कुछ होगा! जो भी फार्मा कंपनी इसे बनाती है, जहाँ से आपूर्ति होती है, उस पर सरकार कार्यवाही क्यों नहीं करती है?

शहर का एक निजी अस्पताल आज फिर सुर्खियों में आ गया है। अस्पताल के किसी स्टाफ ने गलत इंजेक्शन लगा दिया है और एक मरीज की मौत हो गई है। ब्रेकिंग न्यूज़ सोशल मीडिया में डालने और अखबार में छपने से पहले ही पूरे शहर में आग की तरह फैल गई। महीने भर से निठल्ले बैठे गुंडा, मवाली, छुटभैये नेता जी के आदमी, फिरौती एक्सपर्ट, अखबार वाले, अलाना न्यूज़ चैनल और फलाना न्यूज़ चैनल वाले, यूट्यूबिये पत्रकार और फेसबुकिये पत्रकार सभी इस ‘मौताना उत्सव’ में शामिल है। ऐसे समय में सभी गुट एक साथ मिल जाते हैं और एक निर्गुट सम्मेलन का सा आयोजन होता है। पक्ष प्रतिपक्ष के समर्थक छुटभैये गले से गला मिलाकर गला फाड़ रहे हैं- डॉक्टर को हिरासत में लो, डॉक्टर हत्यारा है, ‘बस एक ही चर्चा है कि मरीज को इंजेक्शन लगा है या नहीं, अगर लगा है तो निश्चित ही गलत इंजेक्शन लगा है। ये निजी अस्पताल वाले जब भी कोई इंजेक्शन लगाते हैं वो गलत ही लगाते हैं, ये तो मरीज की किस्मत होती हैं कि कभी कभार वो ठीक हो जाते हैं, ज्यादातर तो बाबा की भभूत, देसी गाय के गोबर की लीद के लेप, सूअर के घी के सेवन से ही होते हैं, डॉक्टर तो सिर्फ लूटने के लिए गलत इंजेक्शन लगाते हैं, कभी कभार डिस्टिल वॉटर का इंजेक्शन लगा देते हैं लेकिन ज्यादातर गलत इंजेक्शन ही लगाते हैं! वो तो मरीज की किस्मत है साहब की कई बार वो ठीक हो जाता है। अपना पेट काटकर इन डॉक्टरों का पेट भरकर इलाज कराता है! ये डॉक्टर लोग तो मरीज की जान लेने में कसर नहीं छोड़ते। क्या करें मजबूरी में इनके पास आना पड़ता है। इससे बढ़िया तो सरकारी डॉक्टर है, मरीज के हाथ ही नहीं लगाते, गलत इंजेक्शन लगाने की तो दूर की बात, मरीज को दूर से ही छूकर पता लगा लेते है कि ये मर्ज यहां ठीक नहीं होने वाला, इसको तो हायर सेंटर रेफर करना पड़ेगा। कोई लोभ लालच नहीं साहब! ये तो मजबूरी में यहां निजी अस्पतालों में लाना पड़ता है। हायर सेंटर यहां से एक सौ तीस किलोमीटर दूर, बीच में मरीज मर जाएगा तो, लेकिन यहां पर भी मरीज मर जाता है, क्योंकि ये अपना गलत इंजेक्शन तैयार रखते हैं ,बस आते ही ठोक देते हैं। बड़ी लूटपाट मचा रखी है साहब, इनसे बढ़िया तो झोला छाप डॉक्टर है बेचारे, गलत इंजेक्शन लगाने का अधिकार केवल उनको है, क्योंकि वो गलत इंजेक्शन लगाते हैं लेकिन बदले में लेते क्या है बेचारे दस  या बीस रु का इंजेक्शन । उनके गलत इंजेक्शन में इतनी मारक क्षमता नहीं होती है, दस ठुकवा लो फिर भी। वहां इंजेक्सन एक ही रेट के मिलते हैं, सभी माल दस रु में। रंग बिरंगे इंजेक्सन। देखते ही ठुकवाने का मन करे। निजी अस्पतालों के इंजेक्सन तो देखने में ही डिस्टिल वाटर के से लगते हैं। बोतल में लगाते है तो बोतल के पानी का रंग ही नहीं बदलता। ये झोला छाप हमारे परिवारों से ही आते है ,हमारी भाषा बोलते हैं, हमारे जैसे गरीब दीखते हैं, हमारी जात के होते हैं। वहां उधार खाता भी चलता है साहब।   फिर इतने सस्ते ठुकवाने में कोई हर्ज भी नहीं है, दस भी ठुकवाएंगे तो भी सौ रु के होंगे! अगर वहां मरीज मर भी जाए तो भाई जात का मामला है,बिरादरी का मामला है, बेक़सूर है बेचारा, और अगर हो हल्ला करें भी तो बेचारे झोला छाप डॉक्टर से क्या मिलेगा, 'नंगा नहाएगा क्या निचोड़ेगा क्या'।

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गलत इंजेक्शन लगाने का अधिकार सिर्फ इनको है, ये हॉस्पिटल वाले अगर लगाएंगे तो हरजाना देना पड़ेगा। इस देश में जहां सरकार रोजगार नहीं दे रही है वहां आत्मनिर्भर बनना पड़ता है! ये मौताने पर फिरौती मांगने का धंधा मेक इन इंडिया की तहत स्मॉल स्केल इंडस्ट्री रूप में दर्ज होना चाहिए। इस पर सरकार को सब्सिडी देनी चाहिए। इस संगठित धंदे के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए, इसमें पुलिस वाले, अखबार वाले, नेता जी के आदमी, सभी अपनी अपनी पार्टनरशिप के द्वारा इसे पनपाएं।

एक दम हो हल्ला बढ़ गया, भीड़ आवेश में आ गई। इसी बीच एक कुख्यात गिरोह जो शहर में 'मौताना मांगने वाला गिरोह' नाम से प्रसिद्ध है, काफी दिनों से हाथ पे हाथ धरे बैठा था सक्रिय हो गया। उसके कुछ लोग परिजन के पास आ गए, लाश को किसी भी हालत में नहीं उठाने देन की धमकी दे गए हैं। ‘हम बात करते हैं डॉक्टर से, तुम्हें बीस लाख दिलवाएंगे तसल्ली रखो।‘ अंदर डॉक्टर और उसका स्टाफ बंधक बना हुआ है, डील होती है पचास लाख में। दूसरी तरफ पुलिस वाले भी अपनी हथकड़ी की तलवार लिए डॉक्टर की गरदन पर सवार है। अखबार वाले अपने कैमरे और माइक को डॉक्टर और स्टाफ के मुंह में ठूंसकर जुर्म कबूल करने के लिए विवश कर रहे हैं, पुलिस का आधा काम तो मीडिया वाले ही कर देते हैं, ऑन स्पॉट ट्रायल फैसला, कल के अखबार में फैसला हेडलाइन बनेगा, "डॉक्टर हत्यारा, न जाने कितने मरीजों की ले चुका है जान, गलत इंजेक्शन से एक और मरीज की मौत।"

मामला तय हो गया है, एक दम जादुई परिवर्तन। डॉक्टर साला बड़ा हरामी है यार, इसे गुर आ गए गुरु, कैसे धंधा करना है! साला इसको पता है एक महीने अस्पताल बंद रहा तो इतना नुकसान होगा, सब कैलकुलेट कर लिया है। अखबार वालों की बदनामी, पुलिस का डंडा अलग, इस से बढ़िया है मालमा सेट करो, कल से दुबारा गलत इंजेक्शन लगाने का काम शुरू कर सके। पचास लाख में से बीस लाख परिजन को देकर गिरोह सटक लिया है। पुलिस वालों ने एक हाथ से लेकर दूसरे हाथ से अभयदान दे दिया है। दूसरे दिन चमत्कार हुआ, अखबार में खबर तक नहीं आई, शहर एक बार फिर इस खास ब्रेकिंग न्यूज से वंचित रह गया।

एक रिसर्च का विषय है ये गलत इंजेक्शन आखिर बनता कौन है? ये होता कैसा है? दिखने में कैसा लगता है? निश्चित ही इसकी शक्ल बिलकुल साक्षात् यमराज जैसी ही कुछ होगा! जो भी फार्मा कंपनी इसे बनाती है, जहाँ से आपूर्ति होती है, उस पर सरकार कार्यवाही क्यों नहीं करती है? ऐसे कई सवालों के घेरे में सरकार भी आ गयी! सरकार ने तुरत फुरत इस पर आयोग बिठाया। आयोग की रिपोर्ट के विलम्ब पर एक और आयोग बिठाया। आयोग ने जांच के नाम पर सारे फार्मा कंपनियों को हडकाया और जितनी भी कंपनियां इंजेक्शन बनाती है उन्हें सभी गलत इंजेक्शन बनाने का नोटिस थमा दिया! जबाबी कार्यवाही हुई! उन्हें सही इंजेक्शन बताने के नाम पर इंजेक्शन बनाने के प्रॉफिट में आधा हिस्सा लेकर उन्हें सही साबित करने की मशक्कत की गयी। रिपोर्ट सरकार को सोंप दी गयी! रिपोर्ट लोकतान्त्रिक लीक प्रणाली के तहत लीक भी हो गयी ,मेरे पास आ गयी है, सोर्स अज्ञात है, अब आपको आम खाने हैं या पेड़ गिनने है तो आप रिपोर्ट पढ़ें 'फार्मा कंपनी जो इंजेक्शन बना रही हैं वो तो सही बना रही हैं, ये निजी अस्पतालों में, खासकर छोटे अस्पताल जो छोटे शहर और कस्बों में चल रहे हैं, वहां इनमें मिलावट की जाती है, वहां जाकर ये सभी गलत इंजेक्शन हो जाते हैं। साफ साफ इसमें निजी अस्पतालों की मिली भगत की बू आ रही है। बाकी सरकारी अस्पताल में तो इंजेक्शन सड़ रहे हैं, वहां तो कोई लगाता ही नहीं है, वहां से भी ये निजी अस्पतालों में सप्लाई हो रहे हैं इनके गलतीकरण के लिए।''

- डॉ. मुकेश गर्ग 

गंगापुर सिटी, राजस्थान पिन कोड-323301

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