पालतू कुत्ते, आवारा इंसान (व्यंग्य)
किसी ज़माने में कहते थे कि राजा से कोई काम करवाना हो, क़ानून लागू करवाना हो तो वज़ीर को तंग करो। आम नागरिक, आम कर्मचारी क्या होता है। अफसर ने तत्काल मीटिंग कर अनुशासन पालकों की क्लास ली।
हमारे शहर के लोग, पुराने फ़िल्मी गीत, ‘लोगों ने बोतलें की बोतलें चढाई ..तो कुछ न हुआ, मैंने होटों से लगाई तो...’ की तर्ज पर, ‘आवारा कुत्तों ने कितनों को काटा तो कुछ न हुआ, एक अफसर को पालतू कुत्ते ने काटा तो...’ गाए जा रहे हैं। एक पालतू कुत्ते ने स्तरीय व्यक्ति को काटकर कानूनी हंगामा करवा दिया। बड़ी हिम्मत की उसने जो साधारण कर्मचारी नहीं, उच्च श्रेणी अधिकारी को काटा। समाज में इज्ज़त का सवाल खड़ा हो गया।
किसी ज़माने में कहते थे कि राजा से कोई काम करवाना हो, क़ानून लागू करवाना हो तो वज़ीर को तंग करो। आम नागरिक, आम कर्मचारी क्या होता है। अफसर ने तत्काल मीटिंग कर अनुशासन पालकों की क्लास ली। उन सार्वजनिक स्थानों पर भी कुत्तों का ले जाना, घुमाना पूरी तरह से बैन कर दिया जहां पहले अधूरी तरह से बैन था। खूब प्रेस कवरेज मिली, फेसबुक ने भी पढ़वाया कि प्रमुख सार्वजनिक जगहों पर पालतू कुत्ता घुमाता, कोई व्यक्ति नज़र भी आ गया तो मौका पर ही एक हज़ार रूपए का नकद चालान किया जाएगा। मतलब सभी पालतू कुत्ता घुमाऊ प्रेमियों को अपनी जेब में सुबह सुबह एक हज़ार की नकद राशि रखनी होगी। थाने में उस दिन की पहली एफआईआर दर्ज हुई, आदमी भी फंसा और उसका वफादार भी। सभी पालतू कुत्तों के कान खड़े हो गए। बेचारे आवारा कुत्तों का कोई स्थायी मालिक नहीं होता इसलिए कोई खतरा नहीं भौंका।
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मामला, साधारण कतई नहीं था तभी अर्थ यह निकाला गया कि पालतू कुत्तों को गैर सार्वजनिक जगहों पर ले जाया जा सकता है। वहां चाहें तो आवारा कुत्तों के साथ मिलकर आम व्यक्तियों को काट सकते हैं। मलमूत्र भी आराम से विसर्जित कर सकते हैं। वह बात बिलकुल अलग है कि इंसानों के लिए मल मूत्र विसर्जन के लिए वाशरूम नहीं हैं। इस सन्दर्भ में महिलाओं की तो बात ही न करो। महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक बजट का पैसा ऐसी तुच्छ योजनाओं पर खर्च नहीं किया जा सकता। माफ़ करें ...यह व्यंग्य कहीं और ही जा रहा है हमें बात तो ...कुत्तों की करनी है।
खतरनाक इत्तफ़ाक, अगली सुबह, सामान्य सार्वजनिक जगह पर सिर्फ एक आवारा कुत्ते ने सिर्फ सात आम नागरिकों को जख्मी किया। नगरपालिकाजी का काम कम सक्रियता से चल गया क्यूंकि किसी उच्चाधिकारी को काटने की दुर्घटना तो थी नहीं कि तुरंत बैठक बुलाई जाए और स्पष्ट भाषा में सख्त निर्देश दिए जाएं। मुद्दा वीआईपी हो जाए तो नगरपालिका में ज़िम्मेदारी की बाढ़ अचानक आ सकती है। ऐसी कागज़ी कमेटी का पुनर्गठन करना पड़ता है जो सख्त निर्णय लेगी कि कौन कौन से सार्वजनिक स्थल, सैरगाह या पार्क हैं जहां पालतू कुत्ते प्रवेश बंद के बोर्ड लगाए जाएंगे। बेचारे निरीक्षक को सुबह सुबह उठकर, हाथ में रसीद बुक पकड़कर निरीक्षण करना होगा ताकि दो चार चालान काट कर यह साबित हो कि वीआईपी को काटने पर कार्रवाई हुई है। वैसे, शहर के सभ्य, जान पहचान रखने वाले, पढ़े लिखे, लोकतांत्रिक बाशिंदे अपने पालतुओं को घुमाना और जहां चाहे पौटी करवाना नहीं छोड़ते।
कुछ आवारा कुत्ता प्रेमी, उस ख़ास कुत्ते की जिसने हिम्मत करके ख़ास टांग को जख्मी किया, प्रशंसा कर रहे हैं। वह बात अलग है कि आवारा कुत्ता प्रेमी, नगरपालिका से अनुरोध करते आए हैं कि ऐसी जगह बनाई जाए जहां उन्हें स्थायी पनाह मिल सके, देखभाल हो सके। क्या पता कुत्तों ने ही मिलकर बैठक की हो, उसमें विमर्श हुआ हो कि हम कोई बेजान वस्तु नहीं हैं। इंसानों ने हमें परेशान कर दिया है। ब्रीडिंग करने वालों के अपने बाजारी स्वार्थ हैं। क्रॉस ब्रीडिंग से भी हमारे साथियों में गुस्सा बढ़ा है। हमारी उचित देखभाल नहीं हो रही। उन्होंने ही उस ख़ास कुत्ते को संदेश प्रेषित किया हो कि सुबह जहां सैर करने जाते हो वहां शांत मन से किसी वीआईपी टांग को खोजकर काटो ताकि इस क्षेत्र में मुद्दा बने।
खैर बात आई और गई। सब कुछ वैसे ही चल रहा है जैसे बरसों से चलता आया है। आवारा इंसान और पालतू कुत्ते दोनों खुश हैं।
- संतोष उत्सुक
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