हिमालय की रक्षा (व्यंग्य)
हमारी लोकसंस्कृति और पर्यावरण आपस में गहरे जुड़े हुए हैं। वनों पर मंडरा रहे खतरों को सरकारें ईमानदारी से महसूस करती हैं। आम लोगों को यह राज़ बताती रहती हैं कि हिमालय के बिना मानव जन्म की कल्पना मुमकिन नहीं।
हमारे राष्ट्रीय रक्षक हिमालय की रक्षा के लिए एक और विशेष कमेटी का गठन हो चुका है। समझदार लोगों द्वारा घोषित हिमालय दिवस के अवसर पर आयोजित यह शुभ सूचना आम लोगों को भी दी गई कि फिर से एक विशेष समिति का गठन कर दिया गया है जिसके अध्यक्ष इस बार महानिदेशक होंगे। पिछली बार सामान्य निदेशक ही अध्यक्ष बनाए गए थे तभी उचित तरीके से हिमालय की रक्षा नहीं की जा सकी। दुनिया भर में तेज़ी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है, तापमान में वृद्धि हो रही है, यह सब इंसान के वश में नहीं फिर भी स्थिति से बचने के लिए सार्थक कदम उठाने होंगे। जल और जंगल के संरक्षण की दिशा में सभी को मिलकर आगे बढना होगा। सच तो यह है कि इतने विशाल हिमालय की तुच्छ रक्षा के लिए कमेटी गठित करने से ज़्यादा कुछ करना संभव भी नहीं है। कमेटी का गठन ही कर सकते थे इसलिए अविलंब गठन कर दिया जी।
कमेटी की पहली ज़ोरदार बैठक में हिमालय के संरक्षण और संवर्धन के लिए कार्य कर रहे अनाम और नामवर लोगों का आभार भी जताया गया हालांकि अनाम लोगों को इस बारे पता नहीं चला। लगे हाथ यह राज़ भी खोल दिया गया कि प्राकृतिक आपदाओं को निबटने में सरकार ने हमेशा उत्कृष्ट और शानदार प्रशासनीय कार्य किया है। उन्होंने उचित कहा कि हिमालय दिवस का आयोजन एक दिन या एक सप्ताह नहीं बल्कि रोजाना होना चाहिए यानी रोजाना संजीदा कार्य करना होगा। हिमालय की परेशानियों को नए सिरे से समझने की ज़रूरत है। उन्होंने यह झूठ भी कहा कि सरकार जलस्रोत और नदियों के पुनर्जीवीकरण के लिए बहुत संजीदगी से कार्य कर रही है। इसके लिए अलग से एक अलग प्राधिकरण भी गठित किया गया है यानी कमेटी और प्राधिकरण दोनों हमेशा की तरह अलग अलग दिशाओं में कार्य करेंगे। विशेष कमेटी बनाने के शुभ अवसर पर कलात्मक पोस्टर का विमोचन भी महानिदेशकजी ने ही किया जी जिससे सैंकड़ों नदी नालों को बचाने के लिए बनाई योजनाएं खुश हो गई ।
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हमारी लोकसंस्कृति और पर्यावरण आपस में गहरे जुड़े हुए हैं। वनों पर मंडरा रहे खतरों को सरकारें ईमानदारी से महसूस करती हैं। आम लोगों को यह राज़ बताती रहती हैं कि हिमालय के बिना मानव जन्म की कल्पना मुमकिन नहीं। उन्होंने वैभव भरे पुराने दिनों को भी याद किया जब पंखे नहीं थे, बर्फ खूब पड़ती थी, बड़ी ईमारतें नहीं थी। सभी महानुभावों के भाषण हो चुके तो पता चला कि बैठकों सेमिनारों में क्या और कितना झूठ बोला जाता है। बड़ी कुर्सी पर बैठने से ही पता चलता है कि जंगलों में आग लगने के अनगिनत कारण हैं जिनमें मानवीय लापरवाहियां ज़्यादा हैं।
कमेटी की बैठक में सशक्त विचारों और इरादों से, हिमालय की रक्षा, एक बार फिर से कर दी गई।
- संतोष उत्सुक
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