Trump ने डराया, पीएम मोदी की वो बात देरी से समझ में आई? सबकुछ लुटा कर नेतन्याहू को 471 दिन बाद क्यों होश आया

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अभिनय आकाश । Jan 28 2025 2:18PM

हमास के साथ युद्ध विराम समझौते से नेतन्याहू सरकार के कई मंत्री नाखुश हैं और वो खुलकर इस समझौते के खिलाफ विरोध कर रहे हैं। यहां तक कि कई मंत्रियों ने भी सरकार से अपना इस्तीफा दे दिया है। इस युद्ध विराम समझौते का असर नेतन्याहू के सिंहासन पर पड़ सकता है।

"यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में आग लगी हो तो क्या तुम घर के दूसरे कमरे में सो सकते हो? यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में लाशें सड़ रहीं हों। तो क्या तुम दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो? यदि हाँ तो मुझे तुम से कुछ नहीं कहना है।" 

ये पंक्तियां सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता का एक अंश है। ये सवाल जो आपने सुने वो इस वक्त फिलिस्तीनी और इजरायली लोगों के सामने आकर खड़े हो गए हैं। आप सब इस खबर से तो वाकिफ अब तक हो ही गए होंगे की 19 जनवरी को गाजा में युद्ध विराम लागू हुआ और गाजा पट्टी के एक मोर्चे पर लड़ाई रुक गई। लेकिन उसके ठीक दो दिन बाद इजरायल ने फिलिस्तीन के दूसरे हिस्से में एक नया मोर्चा खोल दिया। 21 जनवरी को इजरायली सेना ने वेस्ट बैंक के एक रिफ्यूजी कैंप में अपना ऑपरेशन आयरन वॉल शुरू किया। एक तरफ गाजा में लोग टूटे फूटे ही सही लेकिन अपने घरों की ओर लौट रहे हैं। दूसरी तरफ इजरायल में इस संघर्ष विराम को लेकर सवाल उठने लगे हैं। इजरायल हमास के बीच सीजफायर समझौते के बाद इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की मुश्किलें बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं। दरअसल, हमास के साथ युद्ध विराम समझौते से नेतन्याहू सरकार के कई मंत्री नाखुश हैं और वो खुलकर इस समझौते के खिलाफ विरोध कर रहे हैं। यहां तक कि कई मंत्रियों ने भी सरकार से अपना इस्तीफा दे दिया है। इस युद्ध विराम समझौते का असर नेतन्याहू के सिंहासन पर पड़ सकता है। 

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4 इजराइली नागरिकों के  बदले 200 कैदियों की रिहाई 

7 अक्टूबर 2023 को हमास के इजरायल पर हमले से यह जंग शुरू हुई। इसमें 1,200 इजरायली मारे गए और 250 बंधक बना लिए गए। इजरायली ने जवाबी कार्रवाई में गाजा पर हमला किया जिसमे अब तक 46,900 फलस्तीनी मारे जा चुके हैं। वहीं 20 लाख से ज्यादा बेघर हुए और 50 हजार से ज्यादा बच्चे गंभीर कुपोषण का शिकार है। हमास ने इजराइल की 4 महिला सैनिकों को रिहा कर दिया है। इसके बदले इजराइल ने भी 200 फिलिस्तीनियों को छोड़ दिया है। हालांकि कहा जा रहा है कि ये  फैसला इजरायल को काफी मंहगा पड़ा है। 4 इजराइली महिला सैनिकों के बदले 200 कैदियों को छोड़ना इजराइल के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ है। हमास और इसाइल के बीच कतर, इजिप्ट और अमेरिका ने मध्यस्थता की। कतर की राजधानी दोहा इसकी गवाह बनी। दोनों पक्ष एक ही इमारत में मौजूद थे और समझौते के ऐिलान से 10 मिनट पहले तक बातचीत जारी थी। समझौते की रूपरेखा मई 2024 में बाइडेन ने पेश की। लेकिन इसी जनवरी में निर्णायक मोड़ आया। 

नेतन्याहू क्यों हुए तैयार

नेतन्याहू पर इजरायली बंधकों को छुड़ाने का दवाव था। बीते 15 महीनों में इसाइल में इसके लिए 900 से ज्यादा प्रदर्शन हुए। गाजा में जंग लड़ते हुए इजरायली सेना भी थक चुकी थी। उसकी आर्थिक स्थिति भी बिगड़ गई और महंगाई भी बढ़ रही है। अमेरिका में ट्रंप के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद इजरायली पर सीजफायर का दवाव और बढ़ गया था। गाजा की 90 फीसदी आबादी विस्थापित हो चुकी है। लेबनान, सीरिया, यमन और इराक तक इस संघर्ष की चपेट में आ चुके हैं और इस बात का डर लगातार बना रहा कि कहीं इजरायल और ईरान में सीधा युद्ध न शुरू हो जाए। स्वाभाविक ही शांति की यह संभावना न केवल मध्यपूर्व के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए राहत बनकर आई है। 

ट्रंप फैक्टर

इस सहमति के पीछे अमेरिका की भूमिका तो है ही, नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का इसमें निजी दिलचस्पी लेना भी खासा महत्वपूर्ण साबित हुआ है। उन्होंने पहले ही चेतावनी जारी कर दी थी कि उनके पद ग्रहण करने से पहले बंधक छोड़ दिए जाने चाहिए। सहमति बनने की घोषणा भी सबसे पहले ट्रंप ने ही की। इसके साथ ही इसे इस तरह से भी देख सकते हैं कि भारत बुद्ध की विरासत वाली धरती है जो युद्ध नहीं शांति की नीति पर चलता है। पीएम मोदी विभिन्न मंचों से साफ कर चुके हैं कि ये युद्ध का युग नहीं है। ये बात नेतन्याहू को शायद देर से ही सही पर समझ में आ गई है। 

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बाकी हैं सवाल 

इस कथित सहमति को लेकर कई सारे सवाल बने हुए हैं। कहा जा रहा है कि अगर सहमति पर दोनों पक्ष कायम रहे रहे और इस पर अमल शुरू हुआ तो भी इस बात की गारंटी नहीं है कि इससे स्थायी शांति कायम हो ही जाएगी। पहले छह हफ्ते के युद्धविराम के दौरान जहां 33 बंधक छोड़े जाने हैं, वहीं स्थायी युद्धविराम की शर्तों पर बातचीत शुरू होनी है। आगे चलकर सारे बंधक छोड़े जाने की बात है। युद्धविराम के वाद गाजा में शासन की क्या और कैसी व्यवस्था होगी, यह भी तय होना बाकी है। बहरहाल, यह सहमति शांति के लिए एक अच्छा मौका है। उम्मीद की जानी चाहिए कि दुनिया की तमाम शांतिकामी शक्तियां इस मौके को जाया नहीं होने देंगी।

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