पक्ष, विपक्ष और बेचारा वक़्त (व्यंग्य)
कोई भी नेता जब मंत्री हो जाए तो उनके पास सवाल नहीं स्वादिष्ट जवाब होते हैं जिन्हें वे दर्जनों माइक के सामने मुस्कुराते हुए पेश करते हैं। क्योंकि वे सरकार होते हैं असली महाराज होते हैं। मंत्री ही असली शासन है, वे जो कह दें कानून होता है।
पक्ष के नेता चुनाव हार कर विपक्ष हो जाएं तो उनके पास खूब सवाल होते हैं। वही सवाल जिनके उत्तर उनके पास सरकार में होते हुए नहीं होते। दिलचस्प यह है कि राजनेता कहते हैं कि अब राजाओं का राज नहीं है लेकिन उनका अपना नाम महाराज होता है। विपक्ष के नेता ने अमुक प्रकरण की जांच को लेकर उन पर सवाल उठाते हुए वीडियो जारी कर दिया। समिति में आपसी मिलीभगत का आरोप हीरे की तरह जड़ दिया जिससे सवाल और चमक उठा। जांच लटकाने पर लाल रंग का एक और सवाल उठा दिया। उन्होंने कहा कि एक साल से जांच चल रही है, उसकी रिपोर्ट कहां और क्या है कोई इस बारे अपना मुंह खोलने को तैयार नहीं है। क्या सरकार के मंत्री को भी कुछ पता नहीं है। यह बात साफ़ है कि पूरे मामले को बड़ी होशियारी के साथ दबाया जा रहा है। अब विपक्ष में बैठे नेता ने मान लिया, सरकार होशियार होती है।
कोई भी नेता जब मंत्री हो जाए तो उनके पास सवाल नहीं स्वादिष्ट जवाब होते हैं जिन्हें वे दर्जनों माइक के सामने मुस्कुराते हुए पेश करते हैं। क्योंकि वे सरकार होते हैं असली महाराज होते हैं। मंत्री ही असली शासन है, वे जो कह दें कानून होता है। छोटे मोटे सवालों के जवाब तो वे अपने स्तरहीन चमचों से दिलवा देते हैं। सरकार में होते हुए उनके जवाबों की सामाजिक कीमत होती है। इस बार जवाब में कहा गया कि विपक्ष के नेता लगातार झूठे आरोप लगाकर सज्जन लोगों का मनोबल तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। बिना तथ्यों के, सिर्फ राजनैतिक लाभ के लिए गड़बड़ी का आरोप लगाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण, अनैतिक और असामाजिक है। ऐसी बातों में राजनीति नहीं होनी चाहिए। यह बहुत मजेदार स्थिति है कि राजनेता आपस में कहते रहते हैं कि राजनीति न करें। अब राजनेता राजनीति न करे तो क्या बदमाशी करें।
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उन्होंने कहा, बिखरे हुए विपक्ष के नेताओं में झूठ बोलने की प्रतियोगिता चल रही है क्यूंकि फिलहाल उनके पास और कोई काम नहीं है। हमारी सरकार के होते कोई ऐसी गड़बड़ी नहीं हो सकती। कोई हिम्मत भी नहीं कर सकता। हमारी छवि खराब करने की तमाम कोशिशें बेकार साबित होंगी। सभी आरोप निराधार हैं। विपक्ष ने अपनी तरफ से संजीदा आरोप लगाए। मीडिया में प्रचार किया, प्रेस रिलीज़ दी। सरकारी पक्ष ने सधे हुए जवाब दिए, प्रेस रिलीज़ दी और मामला ढीला पड़ जाता है।
कुछ दिन बाद और कोई काम न हो तो विपक्ष वाले पुतला फूंक तमाशा करते हैं। सर्दी का मौसम हो तो पुतला ज़रूर जलाया जाता है। कई बार बढ़िया पुतला बनाया जाता है ताकि कुछ देर हाथ भी सेंक सकें। ठंड ज़्यादा हो तो सुरक्षा कर्मचारी भी आग सेंकते हुए देखे जा सकते हैं। इस तरह बेचारा वक़्त गुजरता रहता है।
- संतोष उत्सुक
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