मुरम्मतों का मौसम (व्यंग्य)

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संतोष उत्सुक । May 14 2019 6:34PM

अवसर मिले तो अपने खराब सम्बन्धों को ठीक करते रहना चाहिए। अंजान लोगों से भी संबंध उगाने के प्रयास करने चाहिए। अपने सपने सच करने के लिए एक चींटी की तरह लगे रहना चाहिए, एक न एक दिन तो सफलता मिलती ही है।

एक लंबा अरसा, कहिए पाँच वर्षीय योजना के बाद, कल शाम उन्होंने मुझे रोककर, हाथ जोड़ कर मुस्कुराते हुए अभिवादन किया और बोले, अभी भी हम से नाराज़ हैं बंधुवर। थोड़ी हैरानी हुई कि वे ऐसा क्यूँ कर रहे हैं। उनसे न कोई राज़गी थी न नाराज़गी। हमने भी हाथ जोड़कर ही कहा, ऐसी कोई बात नहीं है। अगले ही क्षण समझ में आया कि राजनीति के खेत में चुनाव की उपजाऊ फसल रोपने का मौसम आ गया है तभी तो सम्बन्धों की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक मुरम्मत ज़ोर शोर से शुरू हो गई है। अब तो किसी भी स्तर के राजनीतिज्ञ से नाराज़गी रखने का वक़्त नहीं रहा। याद आया कई बरस पहले हमने उनकी एक हरकत पर टिप्पणी कर दी थी। हमारी पत्नी ने हमें समझाया भी था कि कहीं यह ‘सज्जन’ चुने गए तो आपकी खैर नहीं। लेकिन वह कई पार्टियां बदलने के बावजूद हमेशा हारते ही रहे और हम भी बचे रहे। उनके एक बार मुझसे पुनः संबंध नवीनीकरण करने के प्रयास से लगा राजनीति एक अध्यापक भी तो है जो हमें पढ़ाती है कि ज़िंदगी में कोई पक्का दोस्त या स्थायी दुश्मन नहीं हुआ करता। 

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अवसर मिले तो अपने खराब सम्बन्धों को ठीक करते रहना चाहिए। अंजान लोगों से भी संबंध उगाने के प्रयास करने चाहिए। अपने सपने सच करने के लिए एक चींटी की तरह लगे रहना चाहिए, एक न एक दिन तो सफलता मिलती ही है। चुनावी मुरम्मत के मौसम में चाहे नेता एक दूसरे के साथ पुश्तैनी दुश्मनों की तरह व्यवहार करें लेकिन बात वे लोकतंत्र को अधिक मजबूत करते हुए, देश को गौरवशाली व शक्तिशाली बनाने की ही करते हैं। यह मौसम होली की तरह होता है जहां सब गले मिल लेते हैं, क्या पता यह गले मिलना कहीं काम आ ही जाए और गले न मिलना  कहीं गले ही न पड़ जाए। याद रखना चाहिए कि राजनेता यदि लगा रहे तो सांसद न सही विधायक न सही एक दिन पार्षद तो बन ही जाता है और अपने मकान का निर्माण तो करवा ही लेता है। 

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खराब सम्बन्धों की मुरम्मत तो वो पहले ही कर चुका होता है। ‘घमंड का सिर नीचा’ होने का मुहावरा सफल राजनीति में ‘घमंड का सिर ऊंचा’ हो जाता है। आजकल जब राजनीतिक मुरम्मत के हर सधे हुए कारीगर का बाज़ार गर्म है, घमंड का सिर पुनः नीचे लटका घूमता है। राजनीति ने मानवीय जीवन को बहुत लचीला मुहावरा बना दिया है जिसके असली अर्थ गुम हो गए हैं और निरंतर मुरम्मत मांग रहे हैं। चुनाव घोषित होने से चुनाव होने तक मुरम्मत का यह मौसम जारी रहने वाला है। हां, चुनाव के बाद सरकार का निर्माण हो जाने के बाद घमंड का सिर ऊंचा वाला मुहावरा बाज़ार की शान हो जाएगा।

- संतोष उत्सुक

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