सफाई का ज़रूरी कार्यक्रम (व्यंग्य)
सफाई और स्वच्छता हर व्यक्ति की ज़िम्मेदारी है जिसमें विपक्ष का हर एक व्यक्ति भी शामिल है। हम सभी को अपनी दिनचर्या में सफाई और स्वच्छता को शामिल करना होगा। इस संवाद पर लगा गांधीजी की मूर्ति व्यंग्यात्मक शैली में मुस्कुरा रही है।
किसी भी राष्ट्रीय उत्सव के दिन, शहर के उजड़ते गांधी पार्क में सफाई कार्यक्रम आयोजित करना बहुत ज़रूरी होता है। स्वच्छ रहना और सफाई करना भी ज़रूरी है। सफाई की प्रेरणा देने के लिए, प्रतीकात्मक सफाई निबटाने के बाद, ज़ोरदार और शोरदार भाषण देना ज़रूरी होता है। किसी ऐसे कार्यक्रम में नेता आए हों और भाषण न दें यह हो नहीं सकता। अपने रटे हुए भाषण में कहते हैं, सफाई और स्वच्छता हमारे समाज का बेहद ज़रूरी कर्तव्य है, इससे हमारा पर्यावरण सुधरता है। कार्यक्रम में मंत्रीजी पधारे हों तो उन्हें ज़्यादा लच्छेदार शैली में भाषण देना होता है। वे सरकारजी की तारीफ़ करते हुए समझाते हैं कि सरकार स्वच्छता और सुंदरता के लिए हर स्तर पर संजीदगी से कम कर रही है। आधुनिक तकनीकें अपनाई जा रही हैं जिनमें मशीनों और कंप्यूटर से काम किया जाता है।
उन्होंने बताया कि आने वाले दिनों में सफाई वाहनों पर क्यू आर कोड लगाकर उनकी निगरानी ईमानदार इंसानों द्वारा की जाएगी। स्वच्छता सिर्फ सरकार और नगर निकायों की ज़िम्मेदारी नहीं है। यह तो राजनीतिक संस्थाएं हैं। सफाई और स्वच्छता हर व्यक्ति की ज़िम्मेदारी है जिसमें विपक्ष का हर एक व्यक्ति भी शामिल है। हम सभी को अपनी दिनचर्या में सफाई और स्वच्छता को शामिल करना होगा। इस संवाद पर लगा गांधीजी की मूर्ति व्यंग्यात्मक शैली में मुस्कुरा रही है। मंत्रीजी ने काम करने वालों और काम से जी चुराने वालों की एक सामान प्रशंसा की ताकि काम न करने वाले उनसे नाराज़ न हों। कहीं हड़ताल ही न कर दें। महिलाओं और महिला कर्मचारियों की अलग से खूब तारीफ़ की।
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स्वच्छता कार्यक्रम हो और शपथ न दिलाई जाए यह भी नहीं हो सकता। आम आदमी शपथ नहीं दिला सकता। यह महान कर्तव्य मुख्यअतिथि का होता है। आम आदमी का कर्तव्य शपथ लेना होता है। गांधीजी की मूर्ति ने यह भी देख लिया कि अधिकांश लोगों ने सिर्फ मुंह से ही शपथ ली। कईयों ने तो होंट भी ज़रूरत के अनुसार नहीं हिलने दिए। राष्ट्रीय उत्सव के दिन आयोजित इस कार्यक्रम में विपक्ष का कोई नेता शामिल नहीं हुआ। सरकारी कर्मचारियों को तो उपस्थित होना ही था। अगर न होते तो बाद में लिखकर सफाई देनी पड़ती इसलिए सुरक्षित तरीका अपनाया।
ऐसे महत्त्वपूर्ण सामाजिक, सार्वजनिक कार्यक्रम में यदि किसी नेता को बुलाना रह जाए तो वे अपनी शिकायत अखबारों में छपवाकर और सोशल मीडिया में उंडेलकर ही रहते हैं। सार्वजनिक कार्यक्रम में न बुलाने बारे वे अपनी शिकायत अन्य जगह पर भी करते हुए कहेंगे, जो आयोजक क्षेत्र के संजीदा नेताओं को नहीं बुलाते वे सफाई क्या करवाएंगे। यदि वे उनको बुलाते तो वे देर तक रुकते और काफी सफाई भी करते। सिर्फ फोटो खिंवाने के लिए हाथ में झाडू न पकड़ते।
वैसे उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के समारोह सिर्फ दिखावा होते हैं। जानबूझकर महंगे झाडू मंगाए जाते हैं। टी शर्ट, एप्रिन, कैप और दस्तानों पर फालतू खर्च किया जाता है और तो और टी शर्ट और कैप पर नारा छपवाने में पैसा बर्बाद किया जाता है। दुःख की बात यह भी है कि जो नारा छपवाया जाता है वह विदेशी भाषा में छपवाया जाता है। हमसे सलाह ली जाती तो हम अपनी मात्र भाषा में छपवाते। इन बातों से गांधीजी की आत्मा कभी खुश नहीं होगी।
नेताजी की यह बात बिलकुल सही है। यदि आत्मा ऐसे पचड़ों में पड़ने के तैयार रहती है तो कभी खुश नहीं होगी। गांधीजी की आत्मा तो बिलकुल खुश नहीं होगी। कार्यक्रम समापन के बाद पार्क की हालत देखकर तो ऐसा ही लगता रहा।
- संतोष उत्सुक
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