कार ऐसी खरीदी जाए... (व्यंग्य)
किसी के घर जाने और खाने का न्योता भी मिले तो हिसाब किताब लगाना पड़े। उनका घर, उस चौराहे से दाएं तरफ जाती सड़क पर जाकर, बाएं मुड़कर दूसरी गली में है, अ.. वहां गाड़ी ले जाएं तो कहां पार्क करेंगे।
बहुत साल पहले टीवी बारे एक विज्ञापन आता था, ‘पड़ोसी की जले जान, आपकी बढ़े शान’। उसी से प्रेरित है ‘कार ऐसी खरीदिए, दूसरे आपा खोएं’। कोरोना की मार के बाद अब कारों की भरमार है, सुविधाओं का संसार है, कीमत का नहीं विचार है। कहते हैं कार ऐसी खरीदिए जो हर कहीं पार्क करनी मुश्किल हो। सब कहीं ले जाने का दिल न करे।
किसी के घर जाने और खाने का न्योता भी मिले तो हिसाब किताब लगाना पड़े। उनका घर, उस चौराहे से दाएं तरफ जाती सड़क पर जाकर, बाएं मुड़कर दूसरी गली में है, अ.. वहां गाड़ी ले जाएं तो कहां पार्क करेंगे। अन्दर जाकर थोड़ी जगह है लेकिन वहां तो पहले ही गली वालों की गाड़ियां खडी होंगी, ले गए, जैसे कैसे फंसा कर पार्क कर भी दी तो मोड़नी मुश्किल हो जाएगी। कहीं ठुक गई तो एक स्क्रैच हटवाने के सैंकड़ों और एक डेंट के हज़ारों लग सकते हैं।
इसलिए वहां जाना ही क्यूं जहां शानबढ़ाऊ कारजी पार्क करने के लिए बढ़िया जगह न हो। कार ऐसी खरीदिए जिसकी आधी सुविधाओं बारे पता न चले। सुविधाएं वही होनी चाहिएं जिन्हें प्रयोग करने की ज़रूरत न हो। आजकल इतनी सुविधाएं हैं कि देखकर, सुनकर मन का आपा खोए। टेस्ट ड्राइव लो तो रुपया कीमत खो जाए। कारजी घर आएं तो मानो अजनबी हसीना आई हों और सब कुछ डिज़ाइनर पहन कर छाई हों।
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कार के फिचर्ज़ ऐसे होने चाहिए जो बढती उम्र वालों के बिलकुल पल्ले न पड़ें लेकिन टॉप मॉडल धकिया दिया जाए नई। कार तो अपने बच्चों और उनकी मम्मी की पसंद की ही लेनी पड़ेगी न। पुरानी कार ज़रूर याद आती रहेगी। ज़िंदगी अब तक तो जुगाड़ और संघर्ष में कटती रही, अब लग्जरी कार की गोद में कहां लेटेगी। बाज़ार ने तो सुदुविधाएं बेचनी हैं चाहे कार्डियो की तरह घर के कोने में रखी रहे। नए फीचर हसीनाओं की हाई स्लिट ड्रेस की तरह सिर्फ रिझाने के लिए होते हैं, बस, बंदा एक बार फिसल जाए।
व्यापारिक मुस्कराहट लिए, क़र्ज़ देने वाले भी आपका हाथ और शरीर पकड़ने को तैयार हैं। बैंड बजाते इतने रास्ते क़र्ज़ दिलाने की तरफ लिए जा रहे हैं उनका भी तो ख्याल रखना है न। आजकल के ज़माने में भी, ‘घर के बाहर हाथी खड़ा है’ वाला ख़्वाब भी कार खरीदकर पूरा हो सकता है। विशेषताएं ऐसी होने चाहिए जो ‘अच्छी’ तरह समझने के बाद भी याद न रहें। हां एक लिस्ट सामने लटका सकते हैं या कार स्पीकर, जिसमें से फीचर खुद ही कहते रहें कि मालिक हमें प्रयोग करो। वैसे तो ज्यादातर विशेषताएं सोते सोते, बेहोश होने लगती हैं, हो भी जाती हैं।
सामान खरीद कर, उसकी सुन्दर रंगारंग पैकिंग उतारते हुए अच्छा लगता है। वीडियो भी बनाया जाता है। जैसे हमारे घर कई बच्चे इक्कठे हुए लेकिन कुछ दिनों बाद ही लगा, कार से लाखों रूपए में सूरज, चांद, तारे देखना दिन में तारे देखने जैसी नासमझी है। खैर, अब यह विचार पुराना हो गया है कि समझदारी तो वही कार खरीदने में है जिसे मज़े से खुद ड्राइव कर सकें, सहजता से पार्क कर सकें और गाड़ी आपकी संतुलित खर्च करू जेब से निकली हो और पड़ोसियों के भी काम आ सके।
- संतोष उत्सुक
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