Kaal Bhairav Ashtakam Stotram: काले जादू और बुरी नजर ने बचाव के लिए रोजाना करें कालभैरवाष्टकम् स्तोत्रम् का पाठ

Kaal Bhairav Ashtakam Stotram
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हिंदू धर्म में कालभैरव को भगवान शिव का एक रूप माना जाता है। धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक काल भैरव को रुद्रावतार माना गया है। यह भगवान शिव का ही स्वरूप है। भगवान कालभैरव को भगवान शिव का सबसे उग्र स्वरूप माना जाता है।

हिंदू धर्म में कालभैरव को भगवान शिव का एक रूप माना जाता है। काल भैरव एक उग्र लेकिन न्यायप्रिय देवता हैं और इनको क्षेत्रपाल भी कहा जाता है। मान्यता है कि जो भी काल भैरव की पूजा करता है, उसको अकाल मृत्यु, दोष और रोग आदि का भय नहीं सताता है। धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक काल भैरव को रुद्रावतार माना गया है।

यह भगवान शिव का ही स्वरूप है। भगवान कालभैरव को भगवान शिव का सबसे उग्र स्वरूप माना जाता है। लेकिन यह अपने भक्तों की हमेशा रक्षा करते हैं औऱ बुरे कर्म करने वालों को दंड देते हैं। ऐसे में यदि कोई जातक रोजाना कालभैरव अष्टकम स्त्रोत का पाठ करता है, तो उसको जीवन में सुख-शांति प्राप्त होती है और उसे कभी किसी चीज का भय नहीं रहता है।

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कालभैरवाष्टकम् स्तोत्रम्

ॐ देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं

व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्

नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥१॥

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं

नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।

कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं

काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥२॥

शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं

श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।

भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं

काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥३॥

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं

भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।

विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥४॥

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं

कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम् ।

स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥५॥

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं

नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम् ।

मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥६॥

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं

दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।

अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकन्धरं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥७॥

भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं

काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।

नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥८॥

कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं

ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।

शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं

ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम् ॥९॥

॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं कालभैरवाष्टकं संपूर्णम् ॥

काल भैरव अष्टक के लाभ

काल भैरव अष्टक का पाठ लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने का निर्देश देता है।

इसका जाप करने से जातक पापों और बुरे कर्मों से मुक्त रहता है।

राहु, केतु और शनि दोषों के नकारात्मक प्रभावों को भी काल भैरव अष्टक कम करता है।

इसका पाठ करने से जीवन की सभी समस्याओं का अंत होता है।

यदि कोई व्यक्ति काले जादू या बुरी नजर से पीड़ित है, तो उसको भी इससे छुटकारा पाने के लिए काल भैरव अष्टक का पाठ करना चाहिए।

भगवान श्री कालभैरव की आरती

जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा।

जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।।

तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक।

भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।

वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी।

महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।।

तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे।

चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।।

तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी।

कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।।

पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।।

बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।।

बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें।

कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।।

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