Vishwakhabram: Elon Musk की कंपनी Starlink क्या वाकई भेड़ की खाल में छिपा भेड़िया है?
हम आपको बता दें कि स्टारलिंक के बारे में एक चौंकाने वाला अध्ययन भी सामने आया है। शोध संस्थान ‘कूटनीति फाउंडेशन’ ने अमेरिकी दिग्गज कंपनी स्टारलिंक के अमेरिकी खुफिया तथा सैन्य एजेंसियों के साथ गहरे संबंधों को रेखांकित करते हुए कहा है कि यह राष्ट्रीय हितों में बाधक बन सकते हैं।
एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक भारत में उपग्रह ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवा देना चाहती है। स्टारलिंक चाहती है कि वह भारत में जल्द से जल्द कारोबार शुरू करे। इस संबंध में एलन मस्क ने अपनी भारत यात्रा की घोषणा भी की थी लेकिन फिर उन्होंने इसे टाल दिया था। अब एलन मस्क को डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन में अहम जिम्मेदारी मिल गयी है। ट्रंप प्रशासन में भारत से संबंध प्रगाढ़ करने की इच्छा रखने वाले लोगों की बहुतायत है। खुद एलन मस्क भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुरीद हैं। प्रधानमंत्री भी एलन मस्क की विभिन्न मौकों पर सराहना करते रहे हैं। इसलिए एक धारणा यह उभरी कि प्रधानमंत्री से अच्छे रिश्ते रखने वाले एलन मस्क को भारत में कारोबार करने के लिए आसानी से एंट्री मिल सकती है लेकिन भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि स्टारलिंक ने अभी तक सुरक्षा मानदंडों को पूरा नहीं किया है और उसे उपग्रह संचार सेवाओं के लिए लाइसेंस तभी जारी किया जाएगा जब कंपनी भारत में सेवाओं के लिए सभी आवश्यकताओं को पूरा करेगी।
इस बीच, स्टारलिंक के बारे में एक चौंकाने वाला अध्ययन भी सामने आया है। शोध संस्थान ‘कूटनीति फाउंडेशन’ ने अमेरिकी दिग्गज कंपनी स्टारलिंक के अमेरिकी खुफिया तथा सैन्य एजेंसियों के साथ गहरे संबंधों को रेखांकित करते हुए कहा है कि यह राष्ट्रीय हितों में बाधक बन सकते हैं। स्टारलिंक को भेड़ की खाल में छिपा भेड़िया करार देते हुए कूटनीति फाउंडेशन ने कहा कि स्टारलिंक दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकी है, जिसकी सबसे बड़ी ग्राहक तथा प्रचारक अमेरिकी सरकार की खुफिया तथा सैन्य एजेंसियां हैं। हम आपको बता दें कि पुराने मोबाइल फोन सेवा प्रदाता वॉयस तथा इंटरनेट सेवाएं प्रदान करने के लिए दूरसंचार टावर का इस्तेमाल करते हैं जबकि उपग्रह संचार या सैटकॉम में यह सेवा प्रदान करने के लिए उपग्रहों के समूह का इस्तेमाल किया जाएगा। चूंकि उपग्रहों का नियंत्रण देश के बाहर है, इसलिए कई सवाल खड़े हुए हैं।
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कूटनीति फाउंडेशन ने एक रिपोर्ट में कहा है कि स्टारलिंक उपग्रहों का समूह दुनियाभर में इंटरनेट सेवा प्रदाताओं का एक नया रूप है, जो भौगोलिक सीमांकन तथा प्राकृतिक सीमाओं से परे है। दुनिया के हर नागरिक तक इसकी सीधी पहुंच है। हम आपको बता दें कि एलन मस्क की अंतरिक्ष कंपनी स्पेसएक्स एक अमेरिकी खुफिया एजेंसी के साथ वर्गीकृत अनुबंध के तहत सैंकड़ों जासूसी उपग्रहों का एक नेटवर्क बना रही है। यूक्रेन युद्ध में स्टारलिंक उपग्रह संपर्क के इस्तेमाल के चलते अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन और कंपनी के बीच विवाद खड़ा हो गया था। हम आपको याद दिला दें कि अरबपति एलन मस्क ने हाल ही में संपन्न अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में बाइडन की पार्टी की कमला हैरिस के खिलाफ डोनाल्ड ट्रंप का खुलकर समर्थन किया था। एलन मस्क ने पिछले साल कहा था कि उन्होंने रूसी बेड़े पर हमले में सहायता के लिए अपने स्टारलिंक उपग्रह नेटवर्क को सक्रिय करने के यूक्रेन के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था।
कूटनीति फाउंडेशन ने मस्क की कंपनियों तथा अमेरिकी एजेंसियों के बीच कुछ अनुबंधों की खबरों का हवाला देते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ये अमेरिका के खुफिया-सैन्य-औद्योगिक परिसर के हिस्से के रूप में स्टारलिंक के ज्ञात अनुबंध हैं लेकिन बहुत सारे गोपनीय समझौते तथा अनुबंध भी हैं जिनका खुलासा नहीं किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अलावा यह सर्वविदित है कि स्टारलिंक के मालिक एलन मस्क विभिन्न निजी खुफिया कंपनियों के करीब हैं और अमेरिकी राजनीति में काफी सक्रिय व्यक्तित्व हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि एलन मस्क के नेतृत्व वाली कंपनियां ब्राजील, यूक्रेन और ईरान जैसे देशों की संप्रभुता और लोकतंत्र का अनादर करती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि स्टारलिंक (बहुत स्पष्ट रूप से) भू-राजनीतिक नियंत्रण की एक प्रौद्योगिकी है, जिसे खुफिया तथा रक्षा बलों द्वारा अंतरिक्ष में प्रभुत्व और उसके जरिये भूमि पर नियंत्रण के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है।
वहीं, स्टारलिंक को भारत में प्रवेश देने संबंधी मुद्दे पर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया की बात करें तो आपको बता दें कि केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा है कि उद्योगपति एलन मस्क के स्वामित्व वाली स्टारलिंक ने अभी तक सुरक्षा मानदंडों को पूरा नहीं किया है। उन्होंने कहा कि स्टारलिंक को उपग्रह संचार सेवाओं के लिए लाइसेंस तभी जारी किया जाएगा जब कंपनी भारत में सेवाओं के लिए सभी आवश्यकताओं को पूरा करेगी। मंत्री ने कहा कि सैटेलाइट इंटरनेट सेवा प्रदाता सभी आवश्यकताओं को पूरा करने की प्रक्रिया में है। प्रक्रिया पूरी होने के बाद उन्हें लाइसेंस मिल जाएगा।
हम आपको बता दें कि फिलहाल भारत सरकार ने भारती समूह समर्थित वनवेब और जियो-एसईएस के संयुक्त उद्यम जियो सैटेलाइट कम्युनिकेशंस को लाइसेंस जारी किया है। दोनों कंपनियों ने अभी तक अपना परिचालन शुरू नहीं किया है, क्योंकि वे स्पेक्ट्रम आवंटन का इंतजार कर रही हैं।
हम आपको यह भी याद दिला दें कि एलन मस्क के स्वामित्व वाली स्टारलिंक कई वर्षों से भारतीय बाजार में प्रवेश करने की कोशिश कर रही है। 2022 में कंपनी को भारत सरकार द्वारा देश में उपभोक्ताओं को सभी प्री-बुकिंग राशि वापस करने का निर्देश दिया गया था। उस समय स्टारलिंक बिना लाइसेंस हासिल किए कनेक्शन की प्री-बुकिंग कर रहा था और अंततः उसे सरकार के आदेश का पालन करना पड़ा था। हम आपको यह भी बता दें कि बताया जा रहा है कि स्टारलिंक ने अपने हितधारकों के नाम और विवरण प्रस्तुत करने के भारत सरकार के अनुरोध का अब तक अनुपालन नहीं किया है। देखा जाये तो भारत सरकार के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि स्टारलिंक के हितधारक कौन हैं? भारत के लिए सुरक्षा बड़ा मुद्दा है और स्टारलिंक ने अभी तक अपने हितधारकों की जानकारी सरकार के साथ साझा नहीं की है। इसके अलावा और भी चीजें हैं जिन पर कंपनी को स्पष्टता देनी होगी। जैसे कि उपयोगकर्ताओं का डेटा कहां संग्रहित किया जाएगा और विशेष मामलों में डेटा अधिकारियों तक कैसे पहुंच सकता है?
वैसे स्टारलिंक भारतीय बाजार को नजरअंदाज नहीं कर सकता क्योंकि इसका आकार बहुत विशाल है। एक अरब से अधिक लोगों वाला यह एक ऐसा बाज़ार है जिसे दुनिया की कोई भी कंपनी नज़रअंदाज नहीं करना चाहेगी। स्टारलिंक पहले ही अपनी सेवाओं के साथ 100 से अधिक देशों तक पहुंच चुका है, लेकिन भारत एक ऐसा बाजार है जहां कंपनी का प्रवेश अब तक नहीं हो सका है। भारत में स्टारलिंक की अन्य चुनौतियों में से एक चुनौती यह भी है कि देश में सैटकॉम कंपनियों को स्पेक्ट्रम कैसे आवंटित किया जाएगा?
-नीरज कुमार दुबे
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