टीटीपी आतंकवादी समूह पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए लगातार खतरा: सुरक्षा परिषद
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक रिपोर्ट में अफगानिस्तान आधारित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) से पाकिस्तान की सुरक्षा को लगातार खतरे की ओर ध्यान आकृष्ट किया है गया और कहा गया है कि खूंखार आतंकी संगठन के साथ चल रही शांति प्रक्रिया के सफल होने की संभावनाएं क्षीण हैं।
इस्लामाबाद। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक रिपोर्ट में अफगानिस्तान आधारित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) से पाकिस्तान की सुरक्षा को लगातार खतरे की ओर ध्यान आकृष्ट किया है गया और कहा गया है कि खूंखार आतंकी संगठन के साथ चल रही शांति प्रक्रिया के सफल होने की संभावनाएं क्षीण हैं। तालिबान प्रतिबंध समिति 1988की निगरानी टीम की वार्षिक रिपोर्ट में अफगान-तालिबान के साथ टीटीपी के संबंधों का उल्लेख किया गया है और यह बताया गया है कि पिछले साल गनी शासन के पतन से इस समूह को कैसे फायदा हुआ और इसने अफगानिस्तान से संचालित अन्य आतंकवादी समूहों के साथ अपने संबंध कैसे जोड़े।
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पाकिस्तान के डॉन अखबार के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रतिबंधित टीटीपी में अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी इलाकों में 4,000 लड़ाके हैं तथा वहां इसने विदेशी लड़ाकों का सबसे बड़ा समूह बना लिया है। पिछले साल अगस्त में काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से समिति के लिए टीम की यह पहली रिपोर्ट है। रिपोर्ट में तालिबान की आंतरिक राजनीति, उसके वित्तीय मामलों, अलकायदा, दाएश और अन्य आतंकवादी समूहों के साथ इसके संबंधों तथा सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों के कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यह रिपोर्ट ऐसे समय प्रकाशित हुई जब पिछले बृहस्पतिवार को पाकिस्तान सरकार और टीटीपी के बीच तीसरे दौर की बातचीत की शुरुआत हुई।
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पिछले साल नवंबर में हुई पहले दौर की वार्ता के परिणामस्वरूप एक महीने का संघर्षविराम हुआ था, लेकिन बाद में टीटीपी ने पाकिस्तान पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए संघर्षविराम खत्म कर दिया था। टीटीपी ने बाद में पाकिस्तानी सेना के खिलाफ हमले फिर से शुरू कर दिए। पाकिस्तान इंस्टिट्यूट ऑफ पीस स्टडीज द्वारा सारणीबद्ध किए गए आंकड़े बताते हैं कि इस साल, आतंकवादी समूह ने लगभग 46 हमले किए, जिनमें ज्यादातर कानून प्रवर्तन कर्मियों के खिलाफ थे और इनमें 79 लोग मारे गए। टीटीपी 2008 में अपनी स्थापना के बाद से ही पाकिस्तानी सुरक्षाबलों के साथ संघर्ष कर रहा है, ताकि देश में शरिया कानूनों को लागू करने के लिए दबाव डाला जा सके।
हालांकि, संघर्ष समाप्त करने के लिए पाकिस्तान सरकार के साथ बातचीत के लिए अफगान तालिबान द्वारा समूह पर दबाव डाला जा रहा है। वार्ता के नवीनतम दौर में पाकिस्तान सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता 30 मई को समाप्त हो रहे संघर्षविराम को आगे बढ़ाने की है। हालांकि पाकिस्तानी पक्ष ने बातचीत पर पूरी तरह चुप्पी साध रखी है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि समूह (टीटीपी) पाकिस्तान सरकार के खिलाफ एक दीर्घकालिक अभियान पर ध्यान केंद्रित कर रहा है , जिसका अर्थ है कि संघर्षविराम समझौतों की सफलता की सीमित संभावना है।
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