अफगानिस्तान की जमीन का किसी भी रूप में आतंकवाद के लिये इस्तेमाल न हो :भारत, ऑस्ट्रेलिया
भारत और ऑस्ट्रेलिया ने आरंभिक टू-प्लस-टू वार्ता में स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अपने साझा दृष्टिकोण और बिना किसी समझौते के आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व पर जोर दिया।
भारत और ऑस्ट्रेलिया ने शनिवार को इस बात पर जोर दिया कि अफगानिस्तान की जमीन का किसी भी रूप में आतंकवाद के लिये इस्तेमाल किये जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और उसे दोबारा आतंकवादियों की शरणस्थली’’ कभी नहीं बनने दिया जाए।
दोनों देशों ने अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद उत्पन्न स्थिति को लेकर विस्तृत चर्चा की। भारत और ऑस्ट्रेलिया ने आरंभिक टू-प्लस-टू वार्ता में स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अपने साझा दृष्टिकोण और बिना किसी समझौते के आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व पर जोर दिया।
इस क्षेत्र में चीन की सैन्य आक्रामकता में वृद्धि देखी गई है। दोनों देशों के बीच यह वार्ता उस दिन हुई है, जब 9/11 आतंकी हमले की 20वीं बरसी है, जिसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया था। भारत और ऑस्ट्रेलिया ने आतंकवाद से कोई समझौता नहीं करने और उसका मजबूती से मुकाबला करने का आह्वान किया।
विदेश मंत्री एस जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने ऑस्ट्रेलियाई समकक्षों क्रमश: मारिस पायने और पीटर डटन के साथ यहां पर आरंभिक टू-प्लस-टू वार्ता की। विदेश मंत्री जयशंकर ने अपनी बातचीत को ‘सार्थक’ बताया।
उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘ ऑस्ट्रेलिया के साथ टू प्लस टू वार्ता सार्थक रही।’’ जयशंकर ने कहा कि अफगानिस्तान चर्चा का प्रमुख विषय रहा। उन्होंने कहा, ‘‘ हमने इस बारे में विस्तार से विचारों का आदान प्रदान किया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2593 के अनुरूप हमारे रूख एक तरह से समान है, जिसमें यह जोर दिया गया है कि अफगानिस्तान की जमीन का किसी भी रूप में आतंकवाद के लिये इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। ’’
अन्य मंत्रियों के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में विदेश मंत्री ने कहा कि तालिबान की अंतरिम सरकार की रूपरेखा को लेकर भी चिंताएं हैं और खास तौर पर महिलाओं और अल्पसंख्यकों के साथ किये जा रहे व्यवहार को लेकर भी।
जयशंकर ने कहा, ‘‘ आतंकवाद के अलावा वहां व्यवस्था के स्वरूप, महिलाओं एवं अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार को लेकर चिंताएं, अफगानिस्तान के लोगों की यात्रा करने संबंधी मुद्दों और मानवीय सहायता से जुड़े विषय भी थे।
यह उभरती हुई स्थिति है और इस संबंध में विचारों का अच्छा आदान प्रदान हुआ। ’’ विदेश मंत्री ने कहा कि दोनों पक्षों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि अंतराष्ट्रीय समुदाय को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2593 के तहत एकजुट रूख अपनाना चाहिए, जिसे 30 अगस्त को भारत की अध्यक्षता में मंजूरी मिली थी।
इसमें कहा गया है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी अन्य देश को धमकाने या हमला करने के लिये नहीं किया जाना चाहिए अथवा उसे आतंकवादियों को पनाह या प्रशिक्षण देने या आतंकी हमलों के वित्त पोषण करने के लिये इस्तेमान नहीं किया जाना चाहिए।
जयशंकर ने कहा कि आज 11 सितंबर की घटना की 20वीं बरसी है, यह बिना किसी समझौते के आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व को रेखांकित करता है। उन्होंने कहा, हम इसके केंद्र के करीब है और हमें अंतरराष्ट्रीय सहयोग के मूल्य को समझना चाहिए।’’
उन्होंने हालांकि किसी का नाम नहीं लिया लेकिन समझा जाता है कि उनका इशारा पाकिस्तान की ओर था। वहीं, ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री पायने ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया और भारत स्वतंत्र, खुले और सुरक्षित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण को साझा करते हैं। दोनों देश के नेताओं ने अफगानिस्तान की स्थिति पर भी विस्तार से चर्चा की।
पायने ने कहा, ‘‘पिछले महीने काबुल पर कब्जा होते हुए देखा गया और आतंकवाद के खिलाफ चल रही लड़ाई के साथ, अफगानिस्तान का भविष्य हमारे दोनों देशों के लिए चिंता का महत्वपूर्ण विषय बना हुआ है।’’
उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया इस बात में काफी रूचि रखता है कि अफगानिस्तान फिर कभी आतंकवादियों की पनाहगाह और प्रशिक्षण केंद्र नहीं बने। उन्होंने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता हे।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे दोनों देश भयावह आतंकवादी हमलों के शिकार रहे हैं और यह दिन, 11 सितंबर को हमेशा 20 साल पहले की उन भयानक घटनाओं के लिए याद किया जाएगा, जब आतंकवादियों ने हमारे मित्र- अमेरिका और आधुनिक, बहुलवादी तथा लोकतांत्रिक दुनिया पर हमला किया।’’
पायने कहा कहा, ऑस्ट्रेलिया का अफगानिस्तान के नागरिकों, विदेशी नागरिकों और वीजा धारकों की सुरक्षित निकासी पर ध्यान है और हमारा आग्रह है कि इन्हें सुरक्षित निकलने दिया जाए।’’
उन्होंने कहा कि हिंसा के प्रभावों और मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर भी सचेत हैं। वहीं, वार्ता के दौरान दोनों देशों ने हिन्द प्रशांत क्षेत्र की स्थिति, दक्षिण चीन सागर तथा रक्षा एवं कारोबार संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने और कोरोना वायरस से निपटने के विषयों पर भी चर्चा की।
संवाद की शुरुआत में विदेश मंत्री ने अपनी टिप्पणी में कहा, “हम एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय पर मिल रहे हैं, जब एक महामारी के साथ-साथ हम एक ऐसे भू-राजनीतिक माहौल का सामना कर रहे हैं जिसमें तेजी से उथल-पुथल हो रही है, और ऐसे में हमें द्विपक्षीय रूप से और समान विचारधारा वाले अन्य भागीदारों से मिलकर, अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा तथा एक शांतिपूर्ण, स्थिर और समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त रूप से प्रतिक्रिया देनी चाहिए।”
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत का बेहद चुनिंदा देशों के साथ वार्ता के लिये “टू-प्लस-टू” प्रारूप है। उन्होंने कहा, “बेशक, यह बैठक हमें व्यापक रणनीतिक साझेदारी की समीक्षा करने और आगे बढ़ाने का अवसर देती है क्योंकि हम इस महीने के अंत में संयुक्त राज्य अमेरिका में अपने प्रधानमंत्रियों के बीच एक और बैठक की तैयारी कर रहे हैं।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में क्वाड नेताओं के एक शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए अमेरिका की यात्रा करने वाले हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ऑस्ट्रेलिया के अपने समकक्ष डटन के साथ शुक्रवार को विभिन्न मुद्दों पर व्यापक चर्चा की।
वहीं, जयशंकर ने विदेश मंत्री पायने से टू-प्लस-टू वार्ता से ठीक पहले मुलाकात की। दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों ने वार्ता में अफगानिस्तान में नाजुक सुरक्षा हालात पर चर्चा की और तालिबान शासित अफगानिस्तान से आतंकवाद फैलने की आशंका से संबंधित ‘साझा चिंताओं’ के बारे में बात की।
राजनाथ सिंह ने कहा कि दोनों पक्षों ने विभिन्न संस्थागत ढांचा के तहत व्यापक विषयों पर चर्चा की, जिसमें रक्षा सहयोग और वैश्विक महामारी का विषय शामिल है। विदेश और रक्षा मंत्री स्तरीय वार्ता ऐसे समय हुई है जब क्वाड समूह के सदस्य देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के नए सिरे से प्रयास कर रहे हैं।
इस समूह में भारत और ऑस्ट्रेलिया के अलावा अमेरिका और जापान भी हैं। पिछले साल जून में, भारत और ऑस्ट्रेलिया ने अपने संबंधों को एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा उनके ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष स्कॉट मॉरिसन के बीच एक ऑनलाइन शिखर सम्मेलन के दौरान साजो- समान की सैन्य ठिकानों तक पारस्परिक पहुंच के लिए एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
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