PM मोदी ने किया जो काम, वही कदम पहुंचाएगा चीन को आराम, रूस के सहारे दुनिया में छाने की तैयारी में जिनपिंग

Jinping
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Apr 19 2023 2:30PM

वैसे तो चीन दुनिया का सबसे बड़ा क्रूड ऑयल सप्लायर है और उसके बाद भारत का नाम आता है। लेकिन रूसी क्रूड चीन के मुकाबले भारत में अधिक आ रहा है और इसकी वजह से उसे अपने महंगाई के आंकड़ों को सुधारने में मदद भी मिली है।

जब से रूस और यूक्रेन के बीच जंग चल रहा है तभी से भारत और रूस की दोस्ती पर भी चर्चा हो रही है। भारत ने जंग का समर्थन तो नहीं किया लेकिन दबाव के बावजूद रूस का साथ भी नहीं छोड़ा। रूस ने भी दोस्ती का फर्ज निभाया और भारत को सस्ता तेल दिया। रूस से इस तेल सप्लाई को रोकने के लिए पश्चिमी देशों ने भारत को ज्ञान, नसीहत, धमकी सब दी। लेकिन आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि रूस से भारत को जो सस्ता तेल मिला उसका क्या हुआ? भारत ने सबसे पहले रूस से मिले सस्ते कच्चे तेल को रिफाइन किया। उससे डीजल और जेट फ्यूल बनाया। फिर उसके बाद ये डीजल और जेट फ्यूल यूरोप को ही बेच दिया। कुल मिलाकर कहें तो भारत रूस का सबसे बड़ा तेल सप्लायर बन गया है। 

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वैसे तो चीन दुनिया का सबसे बड़ा क्रूड ऑयल सप्लायर है और उसके बाद भारत का नाम आता है। लेकिन रूसी क्रूड चीन के मुकाबले भारत में अधिक आ रहा है और इसकी वजह से उसे अपने महंगाई के आंकड़ों को सुधारने में मदद भी मिली है। अब इसी नक्शेकदम पर चीन भी चलने जा रहा ही और इसकी शुरुआत भी उसने कर दी है। जीरो कोविड पॉलिसी के बुरी तरह फेल होने की वजह से चीन आर्थिक मोर्चे पर बुरी तरह ध्वस्त है। ऐसे में उसे रिकवरी के लिए विभिन्न मोर्चों पर मदद की दरकार है। ऐसे में रूसी तेल चीन की काफी मदद कर सकते हैं। मौजूदा समय में रूस प्रतिबंधों की वजह से सस्ता क्रूड ऑयल बेच रहा है। ट्रैंकर कंसल्टेंसी वोरटेक्सा और केप्लर के अनुमान के अनुसार लगभग 43 मिलियन बैरल रूसी कच्चा तेल मार्च के महीने में चीन पहुंचा है। इस आंकड़े के 50 मिलियन तक जाने का अनुमान है। 

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रूबल दुनिया में मौजूदा समय में प्रतिबंधित है। जिसकी वजह से चीन ने रूस को युआन में ट्रेडिंग करने की इजाजत दी है। खुद पुतिन ने मार्च के महीने में एक कार्यक्रम के दौरान युआन में ट्रेडिंग को मंजूरी देते हुए इसे ग्लोबल करेंसी की मान्यता दी है। अब रूस अफ्रीकी, साउथ अमेरिकी मिडिल ईस्ट देशों के साथ युआन में ट्रेडिंग कर सकेगा। युआन में ट्रेडिंग की वजह से दुनिया में चीनी करेंसी की डिमांड में इजाफा होगा और डॉलर के मुकाबले उसकी वैल्यू में इजाफा होगा।

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