India vs Russia: भारत का चंद्रयान-3 या रूस का मून मिशन लूना-25, कौन मारेगा बाजी?
1976 के बाद से रूस चांद पर नहीं गया है। अब लूना-25 लैंडर के साथ वह मिशन आगे बढ़ाना चाहता है। स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस ने कहा कि लॉन्च 11 अगस्त को होगा। लूना-25 को सॉफ्ट लैंडिंग का अभ्यास करना होगा।
करीब 50 साल बाद रूस एकबार फिर चांद पर मिशन भेजने के लिए तैयार है। रूस ने कहा कि कई हफ्तों की देरी के बाद वह इस हफ्ते चांद पर लैंड करने वाले स्पेसक्राफ्ट को रवाना करेगा। चांद के दक्षिणि छोर पर पानी के संभावित स्रोत पाए जाने की उम्मीद लंबे वक्त से वैज्ञानिकों द्वारा की जा रही है। जो वहां भविष्य में मानव के कहने के लिए जरूरी है। 14 जुलाई को धरती से रवाना किया गया चंद्रयान-3 अब चंद्रमा की 4,313 किलोमीटर गोल ऑर्बिट में मौजूद है। इसे 100 किमी. ऑर्बिट में ले जाने के लिए 9 से 17 अगस्त के बीच सिलसिलेवार ऐक्शन लिए जाएंगे। विक्रम लैंडर के चंद्रमा पर 23 अगस्त को उतरने की उम्मीद है। मगर सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या रूस का मिशन भारत के चंद्रयान से पहले चांद के साउथ पोल पर उतरने में कामयाब हो सकता है?
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चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर रूस का लूना-25 लैंडर
1976 के बाद से रूस चांद पर नहीं गया है। अब लूना-25 लैंडर के साथ वह मिशन आगे बढ़ाना चाहता है। स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस ने कहा कि लॉन्च 11 अगस्त को होगा। लूना-25 को सॉफ्ट लैंडिंग का अभ्यास करना होगा। मिट्टी के नमूने लेना और उनका विश्लेषण करना होगा इस मिशन का काम है। चार पैरों वाले लैंडर का वजन 800 किलो है। माना जा रहा है कि यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। टीओआई की रिपोर्च के अनुसार रूसी अतंरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस ने कहा कि उसके लूना 25 अंतरिक्ष यान को चंद्रमा तक उड़ान भरने में पांच दिन लगेंगे। फिर उसके दक्षिणी ध्रुव के पास संभावित लैंडिंग की तीन जगहों में से एक पर उतरने से पहले लूना-25 चांद की कक्षा में 5-7 दिन बिताएगा। इससे साफ पता चलता है कि ये लूना-25 चंद्रमा की सतह पर उतरने में चंद्रयान-3 की बराबरी कर सकती है या उसे थोड़ा पीछे छोड़ सकता है।
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चंद्रयान-3 अच्छी हालत में है
स्पेस एजेंसी इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि चंद्रयान-3 अच्छी हालत में है। इसका सबसे अहम फेज वह होगा जब स्पेसक्राफ्ट 100 किलोमीटर की ऑर्बिट से चंद्रमा के करीब जाना शुरू करेगा। सोमनाथ ने कहा कि 100 किमी तक हम कोई मुश्किल नहीं देख रहे हैं। समस्या केवल पृथ्वी से लैंडर की स्थिति का अनुमान लगाने में है। यह माप बेहद अहम है। अगर यह सही है तो बाकी प्रक्रिया पूरी की जा सकती है। हम इस बार इसे बहुत सही तरीके से नीचे उतारने में सक्षम हैं। योजना के मुताबिक, ऑर्बिट में बदलाव किया जा रहा है।
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