ऑस्ट्रेलिया के मीडिया संगठनों पर हुई पुलिस की छापेमारी, पत्रकारों ने किया व्यापक विरोध
ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों की जासूसी कराने की सरकार की गोपनीय योजना के बारे में इस पत्रकार ने पिछले साल एक खबर लिखी थी और पुलिस ने संभवत: इसी खबर से जुड़ी सूचनाएं तलाशते हुए उनके घर पर छापेमारी की। इसके अगले दिन यानी बुधवार को पुलिस ने देश के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय प्रसारक ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (एबीसी) के मुख्यालय पर छापेमारी की।
सिडनी। प्रमुख मीडिया संगठनों पर इस हफ्ते हुई पुलिस छापेमारी के बाद ऑस्ट्रेलिया की लोकतांत्रिक साख सवालों के घेरे में आ गई है। इस वाकये के बाद पत्रकारों और उनके सूत्रों को तत्काल ज्यादा संरक्षण दिए जाने की मांग उठने लगी हैं। पुलिस ने मंगलवार को कैनबरा की एक वरिष्ठ पत्रकार के घर की तलाशी ली थी। ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों की जासूसी कराने की सरकार की गोपनीय योजना के बारे में इस पत्रकार ने पिछले साल एक खबर लिखी थी और पुलिस ने संभवत: इसी खबर से जुड़ी सूचनाएं तलाशते हुए उनके घर पर छापेमारी की। इसके अगले दिन यानी बुधवार को पुलिस ने देश के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय प्रसारक ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (एबीसी) के मुख्यालय पर छापेमारी की।
Media raids in Australia to have a 'chilling effect' on whistleblowers and journalists https://t.co/Qgi7bpeRNk pic.twitter.com/V54FICmnPx
— Al Jazeera English (@AJEnglish) June 7, 2019
छापा मारने वाली टीम एबीसी के दफ्तर में आठ घंटे तक जमी रही और इस दौरान उसने ई-मेल, आलेखों के मसौदे और एक खुफिया रिपोर्ट से जुड़े पत्रकार के नोट्स खंगाले। इस खुफिया रिपोर्ट के जरिए बताया गया था कि ऑस्ट्रेलिया के विशेष बलों ने अफगानिस्तान में निहत्थे आम लोगों को मारा था। दो पेन ड्राइव में वे ढेरों दस्तावेज लेकर चले गए, जिससे राजनीतिक विवाद पैदा हो गया और सरकार पर जवाबदेही से बचने के आरोप लगने लगे। सिडनी स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी से जुड़े प्रोफेसर पीटर मैनिंग ने कहा कि इससे खुलासा हो रहा है कि ऑस्ट्रेलिया लोकतांत्रिक दुनिया के सबसे गोपनीय प्रशासनों में से एक है। उन्होंने कहा कि सरकार असाधारण तरीके से पारदर्शिता से बचने में कामयाब रही है और इसके लिए उसने वर्ष 2001 से ही निजता, राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद से मुकाबले से जुड़े 50 से ज्यादा कानूनों या संशोधनों का इस्तेमाल किया है।
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अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी मीडिया संगठनों पर हुई पुलिस छापेमारी की निंदा की है। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक संपादकीय में लिखा कि यह सीधे तौर पर ‘‘निरंकुश ठगों’’ के काम करने का तरीका है। पहली छापेमारी में निशाना बनाए गए रूपर्ट मर्डोक के न्यूज कॉर्प की ऑस्ट्रेलिया इकाई के अध्यक्ष माइकल मिलर ने कहा कि जब पेशेवर न्यूज रिपोर्टिंग को अपराध बनाए जाने का जोखिम है, तब यह लोकतंत्र के लिए खतरा है। प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन की सरकार ने हालिया महीनों में कानून-व्यवस्था से जड़े कई विवादित कदम उठाए हैं। उन्होंने दावा किया कि पुलिस की इन जांचों में कोई राजनीतिक संलिप्तता नहीं है।
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