नदी के ऊपर भी बहती है नदी, यह कुदरत का नहीं इंजीनियरिंग का करिश्मा है
दुनिया में एक ऐसी नदी भी है जिसके ऊपर वास्तविकता में एक दूसरी नदी बहती है। जर्मनी में स्थित यह नदी अपने अनोखे अंदाज के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। दरअसल, यह कोई कुदरती करिश्मा नहीं है, बल्कि इंजीनियरों की सोच का परिणाम है।
आपने दुनिया की बहुत सी नदियों के बारे में सुना होगा व शायद कुछ को देखा भी हो। हर नदी की अपनी एक विशेषता होती है लेकिन क्या आपने कभी एक ऐसी नदी के बारे में सुना है, जिसके ऊपर भी एक नदी बहती हो। नहीं न, लेकिन दुनिया में एक ऐसी नदी भी है जिसके ऊपर वास्तविकता में एक दूसरी नदी बहती है। जर्मनी में स्थित यह नदी अपने अनोखे अंदाज के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। दरअसल, यह कोई कुदरती करिश्मा नहीं है, बल्कि इंजीनियरों की सोच का परिणाम है। जर्मनी में मैगडेबर्ग में एक वाटर ब्रिज है और इस ब्रिज की रूपरेखा इसे दुनिया के सभी ब्रिज से अलग करती है।
जर्मनी में स्थित यह अनोखा मैगडेबर्ग वाटर ब्रिज दुनिया का सबसे लंबा नौगम्य कृत्रिम जलसेतु है तथा इसकी लंबाई करीबन 918 मीटर है। यह एल्बे रिवर के ऊपर बनाया गया है तथा यह बर्लिन के निकट मैगडेबर्ग शहर में स्थित है। जहां अन्य नौगम्य जलसेतु एक बार में केवल कुछ छोटी बोट को ही ले जाने में सक्षम हैं, वहीं इस जलसेतु में एक बार में ही सैंकड़ों बड़े मालवाहक आसानी से आ−जा सकते हैं। पूर्वी व पश्चिमी जर्मनी में माल के परिवहन के लिए बनाया गया यह मैगडेबर्ग वाटर ब्रिज मुख्य रूप से बड़े कर्मिशयल शिप द्वारा प्रयोग में लाया जाता है।
इस वाटर ब्रिज के कारण शिप्स को ओरिजिनल एल्बे रिवर रूट के कारण लगने वाले 12 किलोमीटर के चक्कर से राहत मिल जाती है। एल्बे रिवर में पानी का कम स्तर होने के कारण कभी−कभी पूरी तरह से लोडेड नौकाओं को काफी रूकावटों का सामना करना पड़ता था। इस अनोखे मैगडेबर्ग जलसेतु का निर्माण कार्य वैसे तो साल 1930 में ही शुरू हो गया था लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध व शीत युद्ध के कारण इसके निर्माण कार्य को बीच में ही छोड़ना पड़ा। बाद में जर्मनी के एकीकरण के बाद इस वाटर ब्रिज का निर्माण कार्य एक बार फिर से जर्मनी की प्राथमिकताओं में शुमार हो गया। इसके बाद इसके कार्य को साल 1997 में दोबारा शुरू किया गया तथा छह सालों के कड़े परिश्रम के परिणामस्वरूप आखिरकार साल 2003 में मैगडेबर्ग वाटर ब्रिज का कार्य पूरा हुआ। इसे बनाने में करीबन 500 मिलियन यूरो की राशि का खर्च आया तथा अक्टूबर 2003 में इसे आम लोगों के लिए खोल दिया गया। आज यह ब्रिज बड़े−बड़े शिप्स के लिए तो वरदान साबित हो ही रहा है, साथ में आम लोग भी आसानी से इसका लुत्फ उठा रहे हैं।
-मिताली जैन
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