शिंगल्स रोग, जानें क्या है इसका दूसरा नाम और इसके लक्षण सीधे Expert से

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बीमारी की शुरुआत में मरीज को जलन होती है। बीमारी के अगले चरण में मरीज के शरीर पर रैशेज पड़ने लगते है। इसके बाद शरीर में कील जैसी चुभन होने लगती है जिससे मरीज काफी परेशानी से जूझता है। शिंगल्स बीमारी में ये समस्या लगातार नहीं होती है मगर रुक रुक कर ऐसा होता है।

पर्यावरण में आने वाले बदलावों के कारण कई तरह के रोग लोगों को घेरने लगे है। सांस से लेकर त्वचा संबंधी कई रोग हैं जिनसे लोग पीड़ित है। ऐसा ही एक रोग है शिंगल्स जो कि त्वचा संबंधित रोग होता है। ये रोग किस कारण से होता है इसका कारण पता नहीं चला है। इस बीमारी से संबंध में हमने बात की है डॉक्टर फरहान अहमद से जो MS General Surgey हैं।

शिंगल्स रोग ऐसा रोग है जो छुआछुत से फैलता नहीं है। हालांकि ऐहतियात के तौर पर इस बीमारी को ढककर रखना चाहिए ताकि त्वचा को खुला रखने से इंफेक्शन का खतरा कम रहे। कई मामलों में इस तरह की बीमारी से पीड़ित लोगों की आंखों की रोशनी जाने का खतरा भी अधिक होता है।

ये हैं लक्षण

बीमारी की शुरुआत में मरीज को जलन होती है। बीमारी के अगले चरण में मरीज के शरीर पर रैशेज पड़ने लगते है। इसके बाद शरीर में कील जैसी चुभन होने लगती है जिससे मरीज काफी परेशानी से जूझता है। शिंगल्स बीमारी में ये समस्या लगातार नहीं होती है मगर रुक रुक कर ऐसा होता है, जिससे मरीज काफी परेशानियां झेलता है। बीमारी के शुरुआती लक्षण में बुखार होना, इचींग होना, शरीर में दर्द, लाल चकत्ते पड़ना, ब्लिस्टर समेत कई परेशानियां हो सकती है। भारत में शिंगल्स को जनेऊ भी कहा जाता है। ये ऐसी बीमारी है जो ठीक होने के बाद भी कई बार दर्द देती है। ऐसे में फिर से दवाई का सेवन करना होता है।

बीमारी में ये है ट्रीटमेंट

इस बीमारी से राहत दिलाने के लिए मरीज को एंटीवायरल ड्रग्स दिए जाते है। मरीज को सुन्न करने वाली दवा दी जाती है, ताकि मरीज ईचिंग और जलन से बचाया जा सके। शिंगल्स ऐसी बीमारी है जो कि आमतौर पर 40 वर्ष से अधिक की उम्र के बाद ये बीमारी मरीज को अपनी गिरफ्त में लेती है। ये बीमारी चिकनपॉक्स वायरस से संबंधित ही है। ऐसे में जिन लोगों को चिकनपॉक्स हुआ है वो भी इस बीमारी से संक्रमित हो सकते है। वहीं जिन्हें चिकन पॉक्स नहीं हुआ है उन्हें भी शिंगल्स होने का खतरा होता है। वहीं डॉक्टर ये भी कहते हैं कि चिकनपॉक्स का टीका लगने के बाद भी इस बीमारी के होने का खतरा बना रहता है, मगर ये खतरा काफी कम होता है।

क्या घरेलू उपाय भी होते है

इस बीमारी में घरेलू उपाय अधिक कारगर साबित नहीं होते है। शुरुआत में ही ये काम कर सकते हैं मगर बीमारी को मूल रूप से खत्म करने के लिए जरुरी है कि डॉक्टर से संपर्क कर उनकी सलाह के अनुरुप ही दवाई का सेवन करना चाहिए। अगर इस परेशानी को दूर करने के लिए आयुर्वेद की मदद से इम्यूनिटी को मजबूत किया जा सकता है। हालांकि आयुर्वेद की मदद से इम्युनिटी मजबूत करने के लिए भी सामग्री डॉक्टर की सलाह से ही उपयोग में लेकर आएं। किसी भी दवाई को छोड़ने या शुरु करने से पहले डॉक्टर से कंसल्ट करना आवश्यक है।

शिंगल्स होने पर ऐसे करें परहेज

डॉक्टर फरहान का कहना है कि शुरुआती लक्षण दिखने के बाद ये बीमारी मरीज को अपनी गिरफ्त में लेती है। इस बीमारी की गिरफ्त में मरीज तीन से पांच सप्ताह तक रहता है। मरीज को दवाई लेने से आराम पड़ता है मगर ये त्वचा रोग कुछ समय तक रहता है। इस बीमारी को नागिन भी कहा जाता है। इसमें भी शरीर पर रैश होने से लेकर बुखार होने की समस्या होती है जो तीन से पांच सप्ताह तक समस्या होती है। दवाई देने से ये परेशानी रोगी में कम होने लगती है। बीमारी का साइकल पूरा होने के साथ ही दवाई का उपयोग करना भी जरुरी है। अगर इस बीमारी का इलाज अधूरा छोड़ा जाए तो ये घातक भी हो सकती है। ऐसे में मरीजों के लिए आवश्यक है कि वो किसी भी स्थिति में इस बीमारी को नजरअंदाज ना करें और हल्के में ना ले। इसका पूरा ट्रीटमेंट लें और स्वस्थ हो। अगर मरीज वैक्सीन ले तो उनका बचाव इस बीमारी से हो सकता है, जो दो डोज में दी जाती है।

मरीजों में हो सकता है साइडइफैक्ट

कई मरीजों में साइड इफैक्ट भी देखने को मिलता है। दवाई का उपयोग कर मरीजों में निमोनिया होने का खतरा भी बना रहता है। 

गर्मी में बढ़ सकती है परेशानी

इस बीमारी से पीड़ित मरीज को आमतौर पर गर्मी के मौसम में अधिक परेशानी का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि गर्मी के मौसम में पसीना आना काफी आम होता है। ऐसे में मरीज में कॉम्पलिकेशन बढ़ सकता है जिससे परेशानी बढ़ती है। मरीज को फिर से बुखार हो सकता है। कई अन्य मामलों में मरीज की आंख की रोशनी भी कम हो सकती है। 

 

गर्भवती महिलाओं को देना होगा ध्यान

आमतौर पर 40 वर्ष की उम्र के मरीज काफी कम दिखते है और 50 वर्ष की उम्र के मरीज अधिक होते है। हालांकि किसी मामले में मरीज अगर 40 से अधिक वर्ष की हैं और गर्भवती होने की स्थिति में इस बीमारी से ग्रसित हैं तो महिला का इलाज गायनोकॉलॉजिस्ट की देखरेख में किया जा सकता है। इनके अलावा स्किन स्पेशलिस्ट (डर्माटोलॉजिस्ट) की देखरेख में भी इलाज किया जा सकता है।

डिस्क्लेमर: इस लेख के सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन सुझावों और जानकारी को किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर न लें। किसी भी बीमारी के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
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