Health Tips: प्रेग्नेंसी में मिर्गी के दौरे का बच्चे पर पड़ सकता है बुरा असर, जानिए क्या है डॉक्टर की राय
मिर्गी को एपिलेप्सी भी कहा जाता है। इस बीमारी को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल होते हैं। आज हम आपको इस बीमारी से जुड़ी तमाम बातों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। देश में मरीजों की संख्या 1.2 करोड़ के आसपास है।
बहुत सारे लोगों का यह मानना है कि मिर्गी लाइलाज बीमारी है। तो बता दें कि मिर्गी न तो लाइलाज बीमारी है और न ही किसी तरह का मानसिक रोग है। मिर्गी को लेकर हमारे समाज में कई तरह की गलफहमियां हैं। कुछ लोग इसको भूत-प्रेत या चुड़ैल का साया मानते हैं, तो वहीं कुछ पागलपन के दौरों की बीमारी मानता है। कई लोग मिर्गी के दौरे को झाड़फूंक से ठीक करने का प्रयास करते हैं। मिर्गी का दौरा पड़ने पर कोई लोहा पकड़ने को बोलता है, तो कोई जूता सुंघाता है। वहीं इस दौरे में जब पीड़ित के हाथ-पैर अकड़ने लगते हैं तो लोगों को लगता है पीड़ित के शरीर में चुड़ैल घुस गई है।
आपको बता दें कि मिर्गी की बीमारी को गांव व कस्बों में अदृश्य शक्तियों से जोड़ा जाता है। अगर कोई लड़की इस बीमारी से पीड़ित होती है, तो उसको कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शादी के बाद मिर्गी का दौरा पड़ने पर न सिर्फ पति बल्कि ससुरालवालों के भी ताने सुनने पड़ते हैं। कई बार स्थिति तलाक तक भी पहुंच जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 5 करोड़ से अधिक लोग इस बीमारी से पीड़ित है। तो वहीं हमारे देश में मरीजों की संख्या 1.2 करोड़ के आसपास है।
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मिर्गी को एपिलेप्सी भी कहा जाता है। इस बीमारी को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल होते हैं। जैसे क्या इस बीमारी के होने पर मरीज नॉर्मल लाइफ जी सकता है, क्या समय के साथ यह बीमारी खत्म हो जाती है। इतनी तरक्की के बाद भी भारत में ऐसी कई बीमारियां हैं, जिनको भूत-प्रेत और आत्माओं की साजिश करार दिया जाता है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको इस बीमारी से जुड़ी तमाम बातों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।
मिर्गी की बीमारी
हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो मिर्गी एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है। लेकिन कई लोग इसको मानसिक बीमारी समझने की भूल कर बैठते हैं। जोकि गलत है। हमारे दिमाग में पेसमेकर सेल्स पाए जाते हैं, जो दिमाग के काम करने की गति को कंट्रोल करता है। इसको ब्रेन रिदम भी कहा जाता है। ऐसे में दिमाग में मौजूद पेसमेकर सेल्स जब डिस्टर्ब होते हैं। तो बीच-बीच में इलेक्ट्रिकल डिस्चार्ज हो जाता है। यह दौरे की शक्ल में नजर आता है। कुछ लोगों की जीवन में सिर्फ एक बार ही यह दौरा पड़ता है। इसको 'एपिलेप्टिक फेट' सीजर या दौरा कहा जाता है। वहीं अगर यह दौरे अगर बार-बार पड़ते हैं तो इसको एपिलेप्सी या फिर मिर्गी कहा जाता है।
एक-दूसरे से अलग होता है मिर्गी का हर दौरा
मिर्गी के कुछ दौरे ऐसे भी होते हैं, जिसमें पूरा शरीर अकड़ जाता है और हाथ-पैर टेढ़े होने लगते हैं। इसको जनरलाइज टॉनिक क्लॉनिक सीजर कहा जाता है।
वहीं कुछ दौरे ऐसे होते हैं, जिनमें पीड़ित व्यक्ति ब्लैक आउट हो जाता है। ऐसी स्थिति में पीड़ित को याद नहीं रहता है कि उसको क्या हुआ था। इस स्थिति को एब्सेंस सीजर कहा जाता है।
कुछ दौरों में मसल्स पर कंट्रोल खत्म हो जाता है। ऐसी स्थिति में मरीज अचानक गिर जाता है। उसको एटॉनिक सीजर कहा जाता है।
पीरियड्स में आते हैं ज्यादा दौरे
हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो जो लड़कियां मिर्गी की बीमारी का शिकार होती हैं, उनको पीरियड्स से पहले या उसी दौरान यह दौरे ज्यादा हो सकते हैं। इसके कैटामीनिअल सीजर कहा जाता है।
बता दें कि दुनियाभर में 40% से अधिक महिलाओं को मेंस्ट्रुअल साइकिल की दौरान मिर्गी का दौरा पड़ता है।
प्रेग्नेंसी में मिर्गी के दौरे
आपको बता दें कि यदि महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान मिर्गी के दौरे आते हैं, तो उसको पहले से अपनी मेडिकल हिस्ट्री के बारे में जानकारी होनी चाहिए। अगर आप पहले से एंटी सेप्टिक दवाओं का सेवन कर रही हैं, तो प्रेग्नेंसी के दौरान इन दवाओं को बदल दिया जाता है। क्योंकि इसका सीधा असर आपके गर्भ में पलने वाले बच्चे पर भी पड़ सकता है।
फिजिकल और इमोशनल स्ट्रेस या पूरी नींद ना लेने की वजह से भी कई बार प्रेग्नेंसी में दौरे आते हैं।
प्रेग्नेंसी के दौरान भी कुछ महिलाओं को पहली बार दौरा आ सकता है क्योंकि इस दौरान शरीर में हॉर्मोनल बदलाव होते हैं। या फिर सोडियम और वॉटर का रिटेंशन होता है। जिससे सूजन होने लगती है। हांलाकि इस दौरान दौरे के आसार काफी कम होते हैं।
वहीं प्रेग्नेंसी के दौरान मिर्गी का दौरा पड़ने पर मां और बच्चे दोनों को चोट लगने का खतरा हो सकता है। साथ ही मिसकैरेज का भी खतरा होता है। इसलिए प्रेग्नेंसी के लिए खासतौर पर बनी एंटी एप्लेटिक दवाओं का सेवन किए जाने की सलाह दी जाती है। जिससे मां और बच्चे पर मिर्गी के लिए बनी सामान्य दवाओं का असर न हो।
प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं का ब्लड प्रेशर हाई होने पर भी दौरे पड़ सकते हैं।
मां और बच्चे पर इसका असर
यदि कोई महिला मिर्गी से पीड़ित होने की बात को छुपाकर रखती हैं और इसकी दवा का सेवन प्रेग्नेंसी में भी करती रहती हैं, तो गर्भ में पलने वाले बच्चे पर भी इसका असर पड़ सकता है। कई बार ऐसे मामले में प्रीटर्म डिलीवरी हो सकती है, बच्चे का वेट कम हो सकता है, बच्चे के कटे होंठ, जीभ या फिर कटे प्राइवेट पार्ट के अलावा दिल में किसी तरह का डिफेक्ट हो सकता है।
वहीं कई बार शिशु ऑटिज्म का शिकार हो सकता है, ऐसा बच्चा न अन्य नॉर्मल बच्चों की तरह समय पर चल पाता है और न बोल पाता है।
बच्चे की जान को खतरा
आपको बता दें कि महिला को पड़ने वाले मिर्गी के दौरे से बच्चे की जान जा सकती है। वहीं प्रेग्नेंसी के पहले 3 महीने में आए मिर्गी के अटैक से मिसकैरेज का खतरा हो सकता है। वहीं प्रेग्नेंसी के आखिरी तीन महीनों में मिर्गी का दौरा पड़ने से बच्चे की डिलीवरी समय से पहले हो सकती है।
जब किसी प्रेग्नेंट महिला को मिर्गी का दौरा पड़ता है, तो कुछ समय के लिए गर्भ में पलने वाले बच्चे तक ऑक्सिजन की सप्लाई नहीं पहुंच पाती है। जिससे बच्चे की धड़कन रुक सकती है।
महिलाएं जो दवा लेती हैं वह एंटी एप्लेटिक ड्रग्स पर होती हैं। ऐसे में कई बार उनको अधिक ब्लीडिंग हो सकती हैं। क्योंकि यह दवा विटामिन 'के' का एब्जॉर्वेशन कम कर सकती हैं। इसलिए प्रेग्नेंसी में आखिरी 3 महीनों में महिला को 'विटामिन के' का इंजेक्शन दिया जाता है।
प्रेग्नेंसी में मिर्गी के दौरे
प्रेग्नेंसी में कई बार ऐसी स्थितियां बन जाती हैं, जिसके कारण दौरे पड़ने लगते हैं। इसको हाइपरएमेसेस ग्रेविटेरम कहा जाता है। प्रेग्नेंट महिला को इतनी ज्यादा उल्टियां होती हैं कि उनका पोटैशियम और सोडियम लेवल डगमगा जाता है। इस मेटाबॉलिक डिसऑर्डर के कारण प्रेग्नेंट महिलाओं को दौरे पड़ने लगते हैं।
वहीं प्रेग्नेंसी में हद से ज्यादा उल्टियां होने पर इसका असर ब्लड प्रेशर और यूरिन में प्रोटीन के लेवल पर पड़ता है। अगर यह दोनों नॉर्मल है तो एक्लेम्पसिया की जांच की जाती है। हाई ब्लड प्रेशर से इस कंडीशन का कनेक्शन होता है। यह दोनों कंडीशन मिर्गी से मिलती-जुलती है, लेकिन यह मिर्गी नहीं होती है।
लाइलाज नहीं है मिर्गी की बीमारी
मिर्गी की बीमारी सबसे ज्यादा 2 बार ही अपनी पीक पर होती है। एक बचपन में तो दूसरा बुजुर्ग अवस्था में होती है। जिन लोगों को बुजुर्ग अवस्था में ट्यूमर या डिमेंशिया होता है, इससे वह सबसे ज्यादा प्रभावित होता है।
वहीं कुछ महिलाओं को मेनोपॉज के बाद भी दौरे पड़ते हैं। लेकिन मिर्गी की बीमारी लाइलाज नहीं है। वर्तमान समय में इसकी अच्छी दवा आ रही है।
इसका इलाज 3-5 साल तक चलता है। अगर मरीज लगातार इस दवा का सेवन करता है, तो दवाओं का गैप नहीं करना चाहिए। वहीं पर्याप्त नींद लेने ले रहे हैं तो यह काफी हद तक ठीक हो जाता है।
यदि किसी महिला को मिर्गी की बीमारी है, तो लोग इसे बेटी से भी जोड़कर देखते हैं। लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है। मिर्गी जेनेटिक हो सकती है लेकिन हर किसी को यह बीमारी हो। ऐसा जरूरी नहीं है।
बता दें कि मां के पीरियड्स और मेनोपॉज के समय को बेटी से कनेक्ट किया जा सकता है, लेकिन मिर्गी की बीमारी को नहीं।
मिर्गी का दौरा पड़ने पर मरीज को ऐसे संभाले
मरीज के कपड़े ढीले कर दें
मरीज को बाएं करवट लिटा दें
मरीज के मुंह से निकलते झाग को साफ करते रहें
मरीज के सिर के नीचे तकिया रखें
मरीज को गलती से भी जूता न सुंघाएं
मरीज को इस दौरान कुछ खाने-पीने को न दें
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