MannSeHealthy| गंभीर तो है मगर लाइलाज नहीं है Depression, Doctor से जानें इससे निजात पाने के तरीके
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में लगभग 280 मिलियन लोग डिप्रेशन से पीड़ित हैं, जिनमें से लगभग 80 मिलियन लोग विकसित देशों में रहते हैं। डिप्रेशन एक ऐसी समस्या बन चुका है जिसे नजरअंदाज करना घातक सिद्ध हो सकता है। मगर अधिकतर मामलों में पीड़ित खुद ही नहीं जानता कि वो डिप्रेशन से पीड़ित हो सकता है।
आजकल के आधुनिक युग में युवाओं से लेकर हर वर्ग के लोगों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं में इजाफा हो रहा है। मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं तेजी के साथ बढ़ने लगी हैं। खासतौर से युवाओं मे डिप्रेशन की समस्या चिंताजनक तौर से बढ़ गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में लगभग 280 मिलियन लोग डिप्रेशन से पीड़ित हैं, जिनमें से लगभग 80 मिलियन लोग विकसित देशों में रहते हैं। डिप्रेशन एक ऐसी समस्या बन चुका है जिसे नजरअंदाज करना घातक सिद्ध हो सकता है। मगर अधिकतर मामलों में पीड़ित खुद ही नहीं जानता कि वो डिप्रेशन से पीड़ित हो सकता है।
डिप्रेशन पर प्रभासाक्षी ने बात की है डॉ. शिल्पा अग्रवाल से जो कि जो कि चाइल्ड एंड अडोलेसेंट साइकैट्रिस्ट है.. डॉ. शिल्पा अग्रवाल के पास बाल एवं युवा मनोचिकित्सा में ट्रेनिंग और एक्सपीरियंस है। उनके पास सामान्य मनोचिकित्सा, नशामुक्ति मनोचिकित्सा, मनोचिकित्सा, शिक्षण और प्रेरक कार्य सहित मानसिक स्वास्थ्य विषयों में विशेषज्ञता है।
जानें क्या है डिप्रेशन
डिप्रेशन एक तरह की मानसिक बीमारी होती है, जिसमें व्यक्ति में कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं। पीड़ित में उदासी, निराशा, एकाग्रता की कमी, नींद न आना या अत्यधिक नींद आना, भूख ना लगना या अधिक भूख लगना और कुछ गंभीर मामलों में आत्महत्या के विचार आने जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। डिप्रेशन का शिकार किसी भी उम्र, लिंग, आर्थिक स्थिति का व्यक्ति हो सकता है। हालांकि आंकड़ों के अनुसार महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा डिप्रेशन का अधिक शिकार होती हैं। वहीं 18 से 24 वर्ष की आयु के युवाओं में भी डिप्रेशन के मामले अधिक देखने को मिलते हैं।
डिप्रेशन से कैसे निपटें
डॉ. शिल्पा अग्रवाल का कहना है कि डिप्रेशन कई तरह का होता है, मगर लोगों को खुद ही इसकी जानकारी नहीं होती है। कई मामलों में जानकारी के अभाव में डिप्रेशन को स्वीकार करने में समय लगता है और इससे डील भी नहीं कर पाते हैं। समाज में अब तक डिप्रेशन को लेकर अधिक जागरुकता नहीं है। डिप्रेशन से ग्रसित व्यक्ति को लोग छोड़ जाते हैं या फिर उनके साथ भेदभाव करना शुरू कर देते है। ऐसे में जरुरी है कि पीड़ित के आस पास रहने वाले लोगों को प्रैक्टिकल व्यवहार की जानकारी हो। परिवार के साथ सकारात्मक रुप से चर्चा की जाए। पीड़ित को और परिवार को मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल की मदद लेनी चाहिए। डिप्रेशन से छुटकारा पाने के लिए जरुरी है कि पीड़ित और उसके परिवार मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल के साथ विमर्श जरुर करे ताकि समस्या का समाधान समय के साथ हो सके।
इन लक्षणों पर दें ध्यान
डिप्रेशन से ग्रसित पीड़ित के जीवन और व्यवहार में कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं। उन्हें भूख कम लगना, नींद की कमी जैसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं। कई मामलों में युवाओं को अत्यधिक नींद या भूख लगना भी देखने को मिलता है। डिप्रेशन होने पर युवाओं की पढ़ाई पर असर होने लगता है। बुजुर्गों में भी ऐसी ही लक्षण देखने को मिलते हैं। वहीं कई व्यक्तियों में डिप्रेशन के हिडन लक्षण दिखते हैं, जिसे वो दुनिया के सामने जाने पर छिपा लेता हैं।
जानें डिप्रेशन, स्ट्रेस और ओवरथिंकिंग में अंतर
ओवरथिंकिंग करना या अधिक स्ट्रेस में रहना और डिप्रेशन में होना तीनों ही बेहद अलग स्थिति होती है। इसमें व्यक्ति डिप्रेशन में तभी होता है जब उसे उपर बताए गए लक्षण लगातार दो सप्ताह तक देखने को मिलते हैं। इसके अलावा स्ट्रेस किसी एक काम के कारण, या खास मुद्दे को लेकर हो सकता है। स्ट्रेस किसी तरह की क्लीनिकल टर्म नहीं है और ये किसी भी व्यक्ति को हो सकता है, जिसके लिए कोई भी विषय कारण बन सकता है। स्ट्रेस और डिप्रेशन होना बेहद अलग स्थिति होती है। अलग अलग मुद्दों पर लंबे समय तक स्ट्रेस होने से व्यक्ति डिप्रेशन में जा सकता है। मगर स्ट्रेस जल्दी ठीक भी हो सकता है और जरुरी नहीं की हर स्ट्रेस की स्थिति का अर्थ डिप्रेशन से जूझना ही माना जाएगा। वहीं ओवरथिंकिंग व्यक्ति की पर्सनैलिटी का हिस्सा हो सकती है। ये एक तरह की आदत है, जिससे कई लोग पीड़ित हो सकते हैं। मगर स्ट्रेस में होना या ओवरथिंक करना किसी भी तरह से डिप्रेशन में होना नहीं होता है।
किन हालातों में आ सकते हैं आत्महत्या के ख्याल
डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति को अति गंभीर स्थिति में पहुंचने पर आत्महत्या के विचार भी आ सकते हैं। हर डिप्रेशन से ग्रसित व्यक्ति आत्महत्या के बारे में विचार करे या नहीं ऐसा जरुरी नहीं होता है। सीवियर डिप्रेशन (अत्यधिक तनाव) की स्थिति में ही आत्महत्या के विचार आते हैं। बॉर्डर लाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर होने पर भी आत्महत्या के विचार आ सकते हैं। आत्महत्या के बारे में अगर विचार आएं तो डिप्रेशन का शिकार व्यक्ति को अपने संबंधियों या जानकार या डॉक्टर से जरुर बात करनी चाहिए। समाज को भी जागरुक रहने की जरुरत है ताकि वो पीड़ित के लक्षणों को पहचान कर उनकी समय पर मदद कर सके। जनरल फीजिशियन को भी मरीजों की तरफ ध्यान देना चाहिए ताकि किसी मरीज में लक्षण दिखने पर उनकी मदद समय रहते हुए की जा सके।
एक सा नहीं रहता समय
पीड़ितों को ये समझना ज़रूरी है कि डिप्रेशन का समय या डिप्रेशन होने का कारण जीवन भर उनके साथ नहीं रहता है। समय के साथ चीजों में सुधार होता है और स्थिति बदलती है। ऐसे में डिप्रेशन की स्थिति भी सुधर जाती है। दूसरों से मदद मांगने में खुद को कमजोर नहीं महसूस करना चाहिए। डॉक्टर से संपर्क करने में भी परहेज ना करें। ऐसा करने से बार बार डिप्रेशन की स्थिति में जाने से खुद को रोक सकते हैं। ये भी जरुरी है कि पीड़ित और उसका परिवार इस बात को स्वीकार करे कि व्यक्ति को मानसिक परेशानी हो सकती है। जल्दी स्वीकार करने से समय से इलाज शुरु हो सकता है, जिससे स्थिति बेहतर हो सकती है।
परिवार की लें मदद
डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति की मदद के लिए घर परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत करना जरुरी है। ऐसे व्यक्ति को बोझ ना समझते हुए उनकी मदद के लिए आगे आना चाहिए। ये एक मानसिक परेशानी है जिसको दूर करने के लिए नियमित रुप से समय देना पड़ता है। अगर समय से डॉक्टर की मदद ली जाए तो इस परेशानी से छुटकारा मिल सकता है। डिप्रेशन से बाहर निकलने के बाद व्यक्ति का जीवन नॉर्मल हो सकता है। पीड़ित अपनी पसंद की एक्टिविटी, फिजिकल एक्टिविटी करना शुरू कर सकता है ताकि ये स्थिति खत्म हो सके।
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