Vakratunda Sankashti Chaturthi 2023: वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत से होती है सुख-सौभाग्य की प्राप्ति

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हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देव माना जाता है क्योंकि किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है ताकि वह काम बिना किसी बाधा के पूरा हो सके। हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है।

आज वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत है। बुधवार को होने के कारण इस चतुर्थी का खास महत्व है। बुधवार के दिन गणेश जी की पूजा से सभी बाधाएं दूर होती हैं तो आइए हम आपको वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत के बारे में बताते हैं। 

जानें वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी के बारे में

हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देव माना जाता है क्योंकि किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है ताकि वह काम बिना किसी बाधा के पूरा हो सके। हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। इस साल वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी 1 नवम्बर को मनायी जा रही है। हर महीने में दो चतुर्थी व्रत आते हैं। संकष्टी चतुर्थी, जिसे संकटहारा चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। गणेश को समर्पित हिंदू कैलेंडर के प्रत्येक चंद्र महीने में एक दिन है। यह दिन कृष्ण पक्ष के चौथे दिन पर पड़ता है। संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखकर गणेश जी की पूजा की जाती। श्री गणेश सभी कष्टों का निवारण करते हैं। चतुर्थी बुधवार को होने पर काफी शुभ होती है, क्योंकि बुधवार का दिन गणपति का होता है। इस दिन, भक्त कठिन  उपवास रखते हैं। वे गणेश की पूजा से पहले चंद्रमा के शुभ दर्शन के बाद रात में उपवास तोड़ते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से समस्याएं कम होती हैं, क्योंकि गणेश सभी बाधाओं को दूर करने वाले और बुद्धि के सर्वोच्च स्वामी हैं। 

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वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का पूजा मुहूर्त

कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि 31 अक्तूबर रात 09 बजकर 30 मिनट से शुरू होगी। इस तिथि का समापन 01 नवंबर रात 09 बजकर 19 मिनट पर होगा। उदया तिथि को देखते हुए वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का व्रत 01 नवंबर को रखा जाएगा।

संकष्टी चतुर्थी के हैं कई नाम 

संकष्टी चतुर्थी भक्तों के बीच में कई नामों से प्रसिद्ध है। कहीं इसे संकट चौथ कहा जाता है तो कोई इसे संकटहारा के नाम से जानता है। इस दिन व्रत रहने से पूर्ण संकष्टी का फल मिलता है। दक्षिण भारत में यह व्रत बहुत हर्ष के साथ मनाया जाता है। 

वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी पर करें ये उपाय

पंडितों के अनुसार जिन लोगों का आज वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का व्रत हैं, वे भगवान गणेश को हल्दी, अक्षत्, दूर्वा, लाल पुष्प, फल, नैवेद्य आदि अर्पित करें। उसके बाद मोदक या लड्डू का भोग लगाएं। व्रत कथा पढ़ें और गणेश जी की आरती करें। इस व्रत में भी रात को चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं, तभी व्रत पूरा होता है। वैसे भी बुधवार का दिन गणपति बप्पा की पूजा के लिए समर्पित है। आज के दिन आप बुध ग्रह के बीज मंत्र का जाप कर सकते हैं। इससे आपकी कुंडली में बुध ग्रह मजबूत होगा। बुधवार को हरे रंग की वस्तुओं का दान करना चाहिए। 

आज वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी के साथ करवा चौथ भी है 

आज करवा चौथ और वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत है। आज के दिन कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि, मृगशीर्ष नक्षत्र, परिध योग, बव करण, बुधवार दिन और उत्तर दिशाशूल है। सर्वार्थ सिद्धि योग प्रात: 06 बजकर 33 मिनट से बन रहा है, जो रात तक है। इस योग में कार्य के सफल होने की उम्मीद अधिक होती है। आज सुहागन महिलाएं करवा चौथ का निर्जला व्रत हैं। करवा चौथ की पूजा का मुहूर्त शाम 05 बजकर 36 मिनट से शाम 06 बजकर 54 मिनट तक है। इस समय में मां पार्वती, गणेश जी और भगवान शिव की पूजा करें। उसके बाद रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करें। इस व्रत को करने से जीवनसाथी की उम्र बढ़ती है।

वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा 

वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी से सम्बन्धित कई कथाएं प्रचलित है। एक बार शिवजी और माता पार्वती एक दूसरे साथ समय व्यतीत कर रहे थे। तब मां पार्वती को चौपड़ खेलने की इच्छा हुई। लेकिन इस खेल में सवाल यह उठा कि दोनों के बीच हार-जीत का फैसला कौन करेगा। इस समस्या से निपटने के लिए भगवान शिव ने घास-फूंस का एक बालक बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। इसके बाद पुतले से कहा कि अब हार-जीत का फैसला करना।

चौपड़ खेलने के दौरान पार्वती तीन बार जीतीं। लेकिन बालक से पूछने पर उसने उत्तर दिया कि महादेव जीते। इस पर माता पार्वती बहुत क्रुद्ध हुईं और उन्होंने उसे कीचड़ में पड़ने रहने का अभिशाप दे दिया। इससे बालक दुखी हो गया उसने देवी से प्रार्थना की। तब देवी ने कहा कि आज से एक साल बाद यहां नागकन्याएं आएंगी उनके कहे अनुसार तुम गणेश जी की पूजा करना। ऐसा करने तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। उस बालक ने गणेश जी का व्रत किया। उपवास से देवता प्रसन्न हुए और उन्होने बालक से वर मांगने को कहा। बालक ने कहा कि मुझे अपने माता-पिता से मिलने कैलाश पर्वत जाना है। आप मुझे आर्शीवाद दें। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया। इसके बाद उसने माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए 21 दिन तक गणेश जी का व्रत करने से माता पार्वती प्रसन्न हो गयीं।

वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश जी का भोग भी होता है बहुत खास 

वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का दिन बहुत खास होता है। पंडितों के अनुसार भगवान गणेश की पूजा में उनके सबसे प्रिय प्रसाद मोदक या लड्डू जरूर चढ़ाएं।

वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी के दिन ऐसे करें पूजा

शास्त्रों के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रातः काल उठकर स्नानादि करने के पश्चात पूजा घर की साफ-सफाई करें और गंगाजल छिड़कें। भगवान गणेश को वस्त्र पहनाएं और मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। गणेश जी का तिलक करें व पुष्प अर्पित करें। इसके बाद भगवान गणेश को 21 दूर्वा की गांठ अर्पित करें। गणेश जी को घी के मोतीचूर के लड्डू या मोदक का भोग लगाएं। पूजा समाप्त होने के बाद आरती करें और पूजन में हुई भूल-चूक के लिए क्षमा मांगे।

वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी से पूरी होंगी सभी मनोकामनाएं

शास्त्रों के अनुसार गणपतिजी का इस दिन सच्चे दिल से उनकी पूजा और व्रत करता है तो सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। परिवार के सभी कष्ट दूर होते हैं और कर्ज खत्म हो जाता है।

वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी का महत्व 

वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी का व्रत सुख-सौभाग्य दिलाता है। पति की दीर्धायु, संतान प्राप्ति और उसकी तरक्की के लिए इस दिन विधि-विधान से गणेश भगवान की पूजा करें। संकष्टी चतुर्थी के दिन शाम को या सुबह शुभ मुहूर्त में भगवान गणेश की पूजा कर सकते हैं। दिनभर व्रत रखा जाता है। रात्रि में चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। कहते हैं वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रमा के दर्शन मात्र से मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। व्रती को अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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