Govatsa Dwadashi 2024: गोवत्स द्वादशी का व्रत करने से संतान को प्राप्त होती है भगवान श्रीकृष्ण की कृपा

Govatsa Dwadashi 2024
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कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की द्वादशी के दिन गोवत्स द्वादशी मनाई जाती है। इस बार यह व्रत 28 अक्तूबर को किया जा रहा है। गोवत्स द्वादशी के दिन गाय के बछड़े की पूजा की जाती है।

हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी का व्रत किया जाता है। इस व्रत को नंदिनी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है। बता दें कि हिंदू धर्म में नंदिनी गाय को दिव्य गाय माना जाता है। ऐसे में गोवत्स द्वादशी के दिन गाय के बछड़े की पूजा की जाती है। पूजा के बाद बछड़े को गेंहू से बना भोजन खिलाया जाता है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन गाय के दूध और गेंहू से बनी चीजों का उपयोग वर्जित होता है। साथ ही कटे फलों का भी सेवन नहीं करना चाहिए। गोवत्स की पूजा और कथा के बाद ब्राह्मणों को फल और दक्षिणा देनी चाहिए। इस बार आज यानी की 28 अक्तूबर 2024 को गोवत्स द्वादशी का व्रत किया जा रहा है। तो आइए जानते हैं गोवत्स द्वादशी का शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में...

शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के मुताबिक कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की द्वादशी के दिन गोवत्स द्वादशी मनाई जाती है। इस बार यह व्रत 28 अक्तूबर को किया जा रहा है। वहीं पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05:39 मिनट से 08:13 मिनट तक रहेगा। 

गोवत्स द्वादशी का महत्व 

मान्यता है कि गोवत्स द्वादशी के दिन गाय के बछड़े की पूजा और व्रत करने से भगवान श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं। श्रीकृष्ण यह व्रत करने वाली महिलाओं की संतानों की हर संकट से रक्षा करते हैं। वहीं जो दंपत्ति निसंतान होती हैं, उनको भी सुख का आशीर्वाद मिलता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, गाय में 84 लाख देवी-देवता वास करते हैं। ऐसे में जो भी लोग गोवत्स द्वादसी पर गायों की पूजा करते हैं, उनको सभी 84 लाख देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता है कि मां यशोदा ने श्रीकृष्ण के जन्म के बाद गौ माता के दर्शन कर उनका विधि-विधान से पूजन किया था। उस दिन कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि थी। तभी से द्वादशी तिथि पर गाय और बछड़े की पूजा करने लगे। गोवत्स द्वादशी पर व्रत रखने और गाय-बछड़े की पूजा करने से जीवन में सुख-शांति और खुशहाली बनी रहती है। गाय और बछड़े की पूजा करने से गाय के शरीर के रोएं के बराबर सालों तक गोलोक में वास करने का परम सौभाग्य प्राप्त होता है। वहीं वासुदेव श्रीकृष्ण की कृपा से संतान को सुख और तरक्की मिलती है।

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