वामन जयंती व्रत से भक्तों की सभी मनोकामनाएं होती हैं पूर्ण
वामन अवतार को विष्णु भगवान का प्रमुख अवतार माना जाता है। श्रीमदभागवत पुराण में वामन अवतार का उल्लेख मिलता है। कथन के अनुसार एक बाद देवता तथा दानवों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में देवता दानवों से पराजित होने लगे।
वामन जयंती का व्रत बहुत खास होता है। इस व्रत को वैष्णव लोग बहुत श्रद्धा से करते हैं, तो आइए हम आपको वामन जयंती व्रत के बारे में कुछ खास बातें बताते हैं।
जानें वामन जयंती के बारे में
भादो महीने के शुक्लपक्ष की द्वादशी को वामन जयंती या वामन द्वादशी मनायी जा रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी शुभ तिथि को श्रवण नक्षत्र के अभिजित मुहूर्त में विष्णु भगवान के दूसरे रूप वामन भगवान का अवतार हुआ था। इस साल 29 अगस्त 2020 को वामन जयंती मनाई जा रही है।
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इस दिन सुबह भगवान वामन का षोडषोपचार पूजन करने के पश्चात चावल, दही इत्यादि वस्तुओं का दान करना अच्छा माना जाता है। शाम को पूजा कर समस्त परिवार वालों को भगवान का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से भगवान वामन प्रसन्न होते हैं और भक्तों की समस्त मनोकामनाओं पूरी होती हैं।
वामन जयंती का है विशेष महत्व
हिंदू मान्यताओं के अनुसार श्रवण नक्षत्र होने पर वामन जयंती का महत्व बढ़ जाता है। भक्तों को भगवान वामन की मूर्ति बनानी चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए। जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा से पूजा करता है उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
वामन अवतार को भगवान विष्णु का प्रमुख अवतार माना जाता है। श्रीमदभागवत पुराण में वामन अवतार का उल्लेख मिलता है। कथन के अनुसार एक बाद देवता तथा दानवों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में देवता दानवों से पराजित होने लगे। दानव अमरावती पर आक्रमण करने लगे तभी इन्द्र विष्णु के पास जाकर सहायता के लिए याचना करने लगे। तब विष्णु भगवान ने सहायता का वचन दिया और कहा कि वह वामन रूप धारण कर माता अदिति के गर्भ से जन्म लेंगे। दानवों के राजा बलि द्वारा देवताओं की हार से कश्यप जी ने अदिति को पुत्र प्राप्ति के लिए पयोव्रत का अनुष्ठान करने को कहा जाता है। तब भादो महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को वामन भगवान अदिति के गर्भ से अवतार लेते हैं और ब्राह्मण का रूप लेते हैं।
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वामन अवतार और राजा बलि
महर्षि कश्यप दूसरे कई ऋषियों के साथ मिलकर वामन भगवान का उपनयन संस्कार करते हैं। इस संस्कार में वामन बटुक को पुलह नामक के महर्षि ने यज्ञोपवीत संस्कार कराया। आंगिरस ने वस्त्र, अगस्त्य ने मृगचर्म, सूर्य ने छत्र, गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डल, मरीचि ने पलाश दण्ड, भृगु ने खड़ाऊं, अदिति ने कोपीन, कुबेर ने भिक्षा पात्र तथा सरस्वती ने रुद्राक्ष माला दिए उसके बाद वामन भगवान पिता की आज्ञा लेकर राजा बलि के पास गए। उस समय राजा बली नर्मदा के उत्तर तट पर यज्ञ कर रहे थे।
वामन भगवान ब्राह्मण का रूप धारण कर राजा बलि से भीख मांगने पहुंचें। उस समय वामन अवतार ने राजा बलि से केवल तीन पग भूमि मांगी। राजा बलि ने वामन के इस मांग पर सहमति व्यक्त की। इस पर वामन भगवान ने एक पैर से स्वर्ग था दूसरे पैर से पूरी पृथ्वी नाम ली। इसके बाद वह तीसरा पैर रखने के लिए राजा बलि से पूछे। इस पर राजा बलि भगवान का पैर रखने के लिए अपना सर दे देते हैं। राजा बलि के सिर पर पैर रखते हैं ही बलि परलोक चले जाते हैं। विष्णु भगवान प्रसन्न होकर राजा बलि को पाताल लोक का राजा बना देते हैं। इस तरह देवताओं को स्वर्ग वापस मिल जाता है और वह प्रसन्नता पूर्वक रहने लगते हैं।
जानें वामन जयंती का शुभ मुहूर्त
द्वादशी तिथि प्रारम्भ हो रही है- सुबह 08 बजकर 17 मिनट से (29 अगस्त 2020)
द्वादशी तिथि खत्म हो रही है-अगले दिन सुबह 08 बजकर 21 मिनट तक
वामन जयंती को ऐसे करें पूजा
वामन जयंती का दिन खास होता है इसलिए इस दिन प्रातः जल्दी उठें और स्नान कर साफ कपड़े पहनें। उसके बाद घर के मंदिर की साफ-सफाई कर एक चौकी को साफ कर उस पर गंगाजल छिड़क कर साफ कपड़ा बिछाएं। उसके बाद चौकी पर शालिग्राम जी की प्रतिमा स्थापित करें। शालिग्राम भगवान की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं। शालिग्राम भगवान विष्णु जी के ही रूप माने जाते हैं। आप भगवान को मौसमी फल, पीले फूल और नैवेद्य चढ़ाएं। उसके बाद धूप-दीप जलाकर आरती करें और उनकी पूजा करें। साथ ही वामन जयंती की कथा पढ़े और दूसरों को भी सुनाएं। पूजा के अंत में भगवान की आरती करें और मिठाई तथा खीर का भोग लगाएं।
- प्रज्ञा पाण्डेय
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