जानें दुखों को हरने वाले 'सिद्धिविनायक मंदिर' की महिमा
भगवान गणेश की मूर्ति में सूंड बायीं तरफ रहती है, लेकिन सिद्धिविनायक गणेश जी की मूर्ति में सूड़ दाईं तरफ मुड़ी होती है। इस रूप को सिद्धपीठ माना जाता है और इस मंदिर को सिद्धिविनायक मंदिर कहा जाता है।
देश के सबसे अमीर मंदिरों में अपना स्थान रखने वाले बप्पा का सबसे प्रसिद्ध सिद्धिविनायक मंदिर मुंबई में स्थित है।
आप इस मंदिर की महिमा और प्रसिद्धि का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि बप्पा के दर्शन के लिए इस मंदिर के बाहर घंटों लाइन लगा कर प्रतीक्षा करनी पड़ती है। इस मंदिर की खूबसूरती अलौकिक है और इसकी बनावट भी आप का मन मोह लेती है। मंदिर के अंदर भगवान गणेश सिद्धिविनायक के रूप में विराजमान हैं तथा उनके अगल-बगल उनकी दोनों पत्नियां रिद्धि-सिद्धि की मूर्ति भी लगी हुई है। वहीं इस मंदिर की गर्भ गृह की छतें सोने की परतों से जड़ित हैं।
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आइये जानते हैं इस मंदिर के स्वर्णिम इतिहास को...
मंदिर का निर्माण
मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर का निर्माण 1801 ई. में बिट्ठू और देऊ बाई पाटिल ने मिलकर कराया था। कहा जाता है कि बिट्ठू एक ठेकेदार था जो गणपति भगवान के मंदिर का निर्माण कराना चाहता था। वहीं उस इलाके में एक कृषक महिला देऊ बाई पाटिल थीं, जो भगवान गणेश के मंदिर की निर्माण की इच्छा रखती थी। जब महिला को पता चला कि ठेकेदार मंदिर का निर्माण करा रहा है तो उस महिला ने अपनी जिंदगी भर की जमा पूंजी मंदिर निर्माण के लिए दान में दे दिया। कहा जाता है कि वह महिला निसंतान थी और वह नहीं चाहती थी कि कोई भी औरत निसंतान रहे, इसलिए उसने गणपति भगवान के मंदिर की कामना की ताकि सभी लोग आकर भगवान से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।
बताया जाता है कि शुरू में यह मंदिर बेहद छोटा बनाया गया था, लेकिन बाद में फिर इसका पुनर्निर्माण कर इसे काफी भव्य और विस्तृत किया गया।
पुराणों के अनुसार कहानी
पुराणों में वर्णित है कि भगवान विष्णु जब सृष्टि की रचना कर रहे थे तो इस दौरान उन्हें नींद आ गई और भगवान विष्णु निद्रा में चले गए। तभी उनके दोनों कानों से मधु और कैटभ नाम के दो राक्षस उत्पन्न हो गए और यह दोनों महाबली राक्षस देवताओं और ऋषि मुनियों पर अत्याचार कर उन्हें लगातार उन्हें परेशान करने लगे। जब इन राक्षसों का अत्याचार दिन दूना और रात चौगुना की गति से बढ़ने लगा, तब देवता परेशान होकर भगवान विष्णु की शरण में गए और इन दोनों राक्षसों के वध की कामना करने लगे।
तब भगवान विष्णु निद्रा से जगे और इन राक्षसों का वध करने को उद्यत हुए, किन्तु वह ऐसा करने में असफल हो गए। इसके बाद सभी देवता भगवान गणेश की शरण में गए और भगवान गणेश की सहायता से मधु और कैटभ नाम के राक्षसों का वध संभव हो सका। इसके बाद भगवान विष्णु ने एक पहाड़ी पर भगवान गणेश के मंदिर की स्थापना की जिसके बाद वह स्थान सिद्धिटेक और मंदिर को सिद्धिविनायक के नाम से जाना जाने लगा।
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क्या है सिद्धिविनायक रूप की महत्ता
सामन्यतः भगवान गणेश की मूर्ति में सूंड बायीं तरफ रहती है, लेकिन सिद्धिविनायक गणेश जी की मूर्ति में सूड़ दाईं तरफ मुड़ी होती है। इस रूप को सिद्धपीठ माना जाता है और इस मंदिर को सिद्धिविनायक मंदिर कहा जाता है। कहा जाता है कि सिद्धिविनायक की महिमा अपरंपार है, वे भक्तों की मनोकामना को तुरंत पूरा करते हैं।
कब आएं दर्शन को
वैसे तो मुंबई में मौसम सामान्यतया गर्म ही रहता है तो मानसून को छोड़ कर आप कभी भी दर्शन के लिए आ सकते हैं। सिद्धिविनायक मंदिर में हर मंगलवार को विशेष आरती होती है, जिसे देखने के लिए देश -विदेश से लोग आते हैं।
- विंध्यवासिनी सिंह
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