यदि आप अपना पुराना वाहन बेचते हैं, तो उसे खरीदने वाले के ऊपर नाम ट्रांसफर करवाने का अविलम्ब दबाव बनाइए, अन्यथा आपको हो सकता है भारी नुकसान

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कमलेश पांडे । Jul 8 2023 4:17PM

बता दें कि खरीदा हुआ वाहन सम्बन्धित व्यक्ति की संपत्ति होती है। इसके चलते वह कई नियम कानूनों से बंधा होता है, जिसमें थोड़ी सी चूक होने पर पुलिस घर तक पहुंच जाती है। हालांकि, जीवन के विभिन्न पड़ावों पर वाहन खरीदने और बेचने भी पड़ते हैं, जिसमें सावधानी जरूरी है।

यदि आप किसी कारणवश अपना पुराना वाहन बेचते हैं, तो उसे खरीदने वाले व्यक्ति के ऊपर तुरन्त नाम ट्रांसफर करवाने यानी परिवहन कार्यालय के दस्तावेजों में बिक्रेता का नाम विलोपित करवाकर खरीददार का नाम अविलम्ब चढ़ाने का दबाव बनाइए। अन्यथा किसी यातायात लापरवाही में पकड़े जाने पर या किसी भी वजह से वाहन का दुरूपयोग होने पर बिक्रेता को भारी नुकसान हो सकता है। 

बता दें कि खरीदा हुआ वाहन सम्बन्धित व्यक्ति की संपत्ति होती है। इसके चलते वह कई नियम कानूनों से बंधा होता है, जिसमें थोड़ी सी चूक होने पर पुलिस घर तक पहुंच जाती है। हालांकि, जीवन के विभिन्न पड़ावों पर वाहन खरीदने और बेचने भी पड़ते हैं, जिसमें सावधानी जरूरी है। क्योंकि किसी भी वाहन से संबंधित सभी लेखा-जोखा सरकार द्वारा क्षेत्रीय परिवाहन कार्यालय (आरटीओ) के माध्यम से अपने पास रखा जाता है, ताकि जरूरत पड़ने पर वो काम आ सके। इसलिए किसी भी वाहन को बेचने पर उसके मालिक द्वारा खरीदने वाले व्यक्ति के नाम पर विधिवत ट्रांसफर करवाया जाता है। वहीं, ऐसे ट्रांसफर पर सरकार को ड्यूटी भी प्राप्त होती है जो कि राज्य सरकार का अपना राजस्व होता है।

हालांकि, देखा और पाया जा रहा है कि आजकल केवल स्टांम्प के माध्यम से ही वाहन बेचे जाने का चलन बढ़ रहा है जो कि गैरकानूनी है। आलम यह है कि कई वाहन ऐसे हैं जो बगैर ट्रांसफर के ही एक के बाद दूसरे कई लोगों को बिक चुके हैं। इस कड़ी में सिर्फ स्टांम्प की खरीद-बिक्री वाली लेखपढ़ से वाहन एक दूसरे को सौंप दिए जाते हैं, जिससे सरकार के राजस्व का तो नुकसान होता ही है, साथ ही साथ, जिस व्यक्ति के नाम पर वाहन पंजीकृत/रजिस्टर्ड है उसे भी हर वक्त ख़तरा बना होता है।

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# जानिए कि नामांतरण नहीं करवाने पर मूल मालिक को क्या होता है नुकसान

जानकारों के मुताबिक, यदि किसी भी पुराने वाहन को जिस तिथि/तारीख को बेचा जाता है, उससे चौदह दिनों के भीतर ही खरीदने वाले व्यक्ति को उस वाहन को अपने नाम पर दर्ज़ करवाना होता है। दरअसल, यह प्रावधान मोटर व्हीकल एक्ट,1988 की धारा 50 के अंतर्गत दिए गए हैं। जिसके अनुसार यदि वाहन खरीदने और बेचने की स्टेट अलग अलग होती है तो ऐसी अवधि 45 दिनों तक की ही हो सकती है। इसे वाहन के स्वामित्व का ट्रांसफर कहा जाता है। इसके मुताबिक, यदि वाहन बिक्री की कोई लेखपढ़ स्टांम्प पर की जाती है तो वह केवल चौदह दिनों तक ही वैध होगी, क्योंकि चौदह दिनों के भीतर ही उस वाहन का स्वामित्व ट्रांसफर करवाना होता है। अन्यथा की स्थिति में सख्त कार्रवाई भी हो सकती है।

# वाहन का स्वामित्व ट्रांसफर के बिना घटित कोई भी आपराधिक और सिविल घटना की जिम्मेदारी मूल मालिक पर ही होती है

अगर बेचा हुआ वाहन खरीदने वाले के नाम पर ट्रांसफर नहीं करवाया जाता है तो वह वाहन उसके पहले वाले मालिक के नाम पर ही दर्ज़ होता है। ऐसे में किसी भी वाहन से यदि कोई अपराध कारित होता है तो ऐसी सूरत वाले अपराधों में वाहन का मूल मालिक भी आरोपी बनाया जा सकता है। ऐसी परिस्थिति में कोई भी फंसा हुआ मालिक केवल स्टांम्प की लेखपढ़ के आधार पर यह नहीं कह सकता है कि वाहन उसके द्वारा बेचा जा चुका है। क्योंकि जिस व्यक्ति के पास वाहन का स्वामित्व है, उसके पास ही उस वाहन का कब्ज़ा भी होना चाहिए।

इसलिए, अगर ऐसे किसी भी वाहन से कोई तीसरा व्यक्ति शराब इत्यादि प्रतिबंधित अपराधों के आरोप में पकड़ा जाता है, तब वाहन का मूल मालिक भी पुलिस के द्वारा दर्ज प्राथमिकी में आरोपी बना दिया जाता है। क्योंकि वाहन का कब्ज़ा उसे अपने पास रखने की जिम्मेदारी थी। इसलिए उसके नाम पर दर्ज़ वाहन यदि किसी अपराधी के पास जाता है जिससे वह कोई अपराध कर देता है तब मूल मालिक पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है, जो उचित प्रतीत होता है।

# सड़क हादसा होने पर जिम्मेदारी मालिक पर

तेज रफ्तार वाली सड़कें बनने से या अवैज्ञानिक तरीके से मोड़ बनाने के चलते आजकल सड़क हादसा आम बात सी हो गई है। ऐसे में यदि किसी भी थाना क्षेत्र के अंतर्गत कोई सड़क हादसा हो जाता है, तो पुलिस आरटीओ ऑफिस से उसका विवरण प्राप्त करती है। इस कड़ी में स्टाम्प द्वारा बेचे गए वाहन और खरीददार के नाम पर ट्रांसफर नहीं करवाए गए वाहन से अगर कोई सड़क हादसा हो जाता है तब हादसे की गंभीरता के मुताबिक अपराध की धारा दर्ज़ की जाती है। ऐसी धाराएं आईपीसी 279, 337, 338 एवं 304(ए) हैं जहाँ मामूली चोट से लेकर मृत्यु होने तक की धाराएं हैं। लिहाजा, ऐसे हादसों के बाद दो प्रकार के प्रकरण बनते हैं। एक प्रकरण तो आपराधिक प्रकरण होता है जो ड्राइवर पर चलाया जाता है। वहीं, कभी कभी ऐसे प्रकरण में परिस्थितियों को देखकर मालिक पर भी मुकदमा बना दिए जाते हैं। दरअसल इन अपराधों में सज़ा का भी प्रावधान है जो जुर्माने से लेकर दो साल तक के कारावास तक की है। इसलिए वाहन मालिक को पूरी सावधानी बरतनी चाहिए।

ऐसे मामलों में दूसरा प्रकरण सिविल प्रकरण भी बनता है जो मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 166 के अंतर्गत मुआवजे हेतु पीड़ित अथवा पीड़ित के वारिसों द्वारा लगाया जाता है। ऐसा मुआवजा क्षति के आधार पर लगाया जाता है जो पीड़ित व्यक्ति की आय को देखते हुए उसको होने वाली नुकसान के आधार पर तय होता है। इसलिए ही किसी भी वाहन का थर्ड पार्टी बीमा होता है, ताकि ऐसे किसी भी  नुकसान की नौबत आने पर क्षतिपूर्ति बीमा कंपनी द्वारा की जाती है। लेकिन अगर वाहन का बीमा ही नहीं है तब क्षतिपूर्ति की ज़िम्मेदारी मूल मालिक पर भी डाली जा सकती है और पीड़ित व्यक्ति को होने वाले नुकसान की भरपाई उसके मूल मालिक से दिलवाई जाती है। यहां पर मूल मालिक का मतलब आरटीओ ऑफिस में दर्ज नाम से है, नामांतरित नाम से है।

वहीं, यह भी पाया जा रहा है कि आजकल सड़क हादसों में मरने वाले लोगों के आश्रित परिजनों को आय के अनुसार अधिक से अधिक मुआवजा राशि दिलवाई जा रही है। जिस व्यक्ति की आय अधिक है, उसकी सड़क हादसे में मृत्यु होने पर परिजनों को अधिक से अधिक मुआवजा मिलता है। ऐसे में बीमा नहीं होने की स्थिति में मुआवजा वाहन के मूल मालिक को ही देना होता है, क्योंकि वाहन का बीमा करवाना मालिक की जिम्मेदारी होती है।

# यदि वाहन खरीदने वाला व्यक्ति अपने नाम पर वाहन ट्रांसफर नहीं करवाए तो क्या कर सकता है मूल मालिक

यदि ऐसा वाहन खरीदने वाला व्यक्ति उसे ट्रांसफर नहीं करवाए तो यह उसके मूल मालिक की जिम्मेदारी होती है कि वह उसे ट्रांसफर करवाने हेतु सूचना पत्र प्रेषित करें। सजगता वश ऐसा सूचना पत्र रजिस्टर्ड डाक द्वारा ही प्रेषित किया जाना चाहिए और वाहन खरीदने वाले व्यक्ति को तत्काल वाहन अपने नाम पर ट्रांसफर करवाने की चेतावनी देनी चाहिए। अन्यथा वाहन का कब्ज़ा भी मांगना चाहिए। बावजूद इसके, यदि वह व्यक्ति वाहन अपने नाम पर ट्रांसफर नहीं करवाए तो इस पूरे प्रकरण से सम्बंधित साक्ष्य सहित एक आवेदन क्षेत्रीय परिवाहन कार्यालय के समक्ष प्रस्तुत कर दिया जाना चाहिए और उनसे वाहन का रजिस्ट्रेशन निरस्त करने हेतु आग्रह करना चाहिए। इसके अलावा, वाहन का मालिक खरीदने वाले के विरुद्ध आपराधिक और सिविल मुकदमा भी लगा सकता है। इसलिए मूल वाहन स्वामी को सजगता बरतनी चाहिए, अन्यथा वह किसी बड़ी परेशानी में फंस सकता है।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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