लिक्विड-मिरर टेलीस्कोप क्या है? यह कहां लगाया गया है? इससे क्या-क्या फायदे होंगे?

Liquid Mirror Telescope
Source PIB

लिक्विड मिरर तकनीक के विशेषज्ञ प्रो. पॉल हिक्सन, ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय, कनाडा बताते हैं कि पृथ्वी के घूमने से चित्र पूरे कैमरे में आ जाते हैं, लेकिन इस गति की भरपाई कैमरे द्वारा इलेक्ट्रॉनिक रूप से की जाती है।

खगोल विज्ञान के क्षेत्र में भारत ने एक और मील का पत्थर स्थापित कर दिया है। अब देश का पहला और एशिया का सबसे बड़ा लिक्विड-मिरर (तरल दर्पण) टेलिस्कोप, उत्तराखंड स्थित एक पहाड़ी देवस्थल पर लगाया गया है, जो आकाश का सर्वेक्षण करने में सहायता करेगा। बताया जाता है कि इसके स्थापित हो जाने से अब इसके ऊपर से गुजरने वाली आकाशपट्टी को देखकर कई आकाशगंगाओं और अन्य खगोलीय स्रोतों का अवलोकन करना संभव हो जाएगा।

बता दें कि भारत, बेल्जियम और कनाडा के खगोलविदों द्वारा निर्मित इस नए उपकरण में प्रकाश को इकट्ठा करने और फोकस करने के लिए तरल पारा की एक पतली फिल्म से बना एक 4 मीटर व्यास का घूर्णन दर्पण लगाया हुआ है। यह आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (एआरआईईएस) के देवस्थल वेधशाला परिसर में 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत उत्तराखंड के नैनीताल जिले में एक स्वायत्त संस्थान है।

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देखा जाए तो भारत में पहली बार इस अनोखे लिक्विड-मिरर टेलीस्कोप को हिमालय की पहाड़ी पर लगाने से शोधकर्ताओं में उत्साह का माहौल है। क्योंकि हिमालय पर्वत श्रेणी में पहाड़ के ऊपर लगाई गई यह नई टेलिस्कोप सुविधा अब सुपरनोवा, गुरुत्वाकर्षण लेंस, अंतरिक्ष मलबे और क्षुद्रग्रहों जैसी क्षणिक या परिवर्तनशील वस्तुओं की पहचान करने के लिए ऊपरी आकाश पर नजर रखेगी। जिससे शोधकर्ताओं को भी अद्यतन आंकड़े मिलते रहेंगे।

उल्लेखनीय है कि भारत, बेल्जियम और कनाडा के वैज्ञानिकों ने पारा का एक कुंड बनाया है, जो एक परावर्तक तरल है। इसके चलते सतह एक परवलयिक आकार में घुमावदार हो जाती है, जो प्रकाश को केंद्रित (फोकस) करने के लिए आदर्श स्थिति है। मायलर की एक पतली पारदर्शी फिल्म पारा को हवा से बचाती है। परावर्तित प्रकाश एक परिष्कृत मल्टी-लेंस ऑप्टिकल शोधक से होकर गुजरता है, जो देखने के विस्तृत क्षेत्र में तेज छवियां उत्पन्न करता है। फोकस पर स्थित एक बड़े प्रारूप वाला इलेक्ट्रॉनिक कैमरा इन छवियों को रिकॉर्ड करता है।

इस बारे में लिक्विड मिरर तकनीक के विशेषज्ञ प्रो. पॉल हिक्सन, ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय, कनाडा बताते हैं कि पृथ्वी के घूमने से चित्र पूरे कैमरे में आ जाते हैं, लेकिन इस गति की भरपाई कैमरे द्वारा इलेक्ट्रॉनिक रूप से की जाती है। संचालन का यह तरीका देखने की दक्षता में बढ़ोतरी करता है और दूरबीन को विशेष रूप से धुंधले और विस्तृत वस्तुओं को लेकर संवेदनशील बनाता है।

वहीं, एआरआईईएस के निदेशक प्रो. दीपांकर बनर्जी बताते हैं कि आईएलएमटी, पहला लिक्विड-मिरर टेलीस्कोप है, जिसे विशेष रूप से एआरआईईएस के देवस्थल वेधशाला में स्थापित खगोलीय अवलोकन के लिए डिजाइन किया गया है। इस प्रकार देवस्थल वेधशाला के पास अब दो चार मीटर श्रेणी के दूरबीनों- आईएलएमटी और देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप (डीओटी) है, जो भारत में उपलब्ध सबसे बड़े एपर्चर टेलीस्कोप हैं। 

गौरतलब है कि प्रो. बनर्जी बिग डेटा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग (एआई व एमएल) एल्गोरिदम के अनुप्रयोग को लेकर भी उत्साहित हैं, जिन्हें आईएलएमटी के साथ देखी गई वस्तुओं को वर्गीकृत करने के लिए लागू किया जाएगा। उन्हें उम्मीद है कि यह परियोजना वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के कई युवा मस्तिष्कों को चुनौतीपूर्ण समस्याओं को लेने के लिए आकर्षित व प्रेरित करेगी।

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वहीं, एआरआईईएस में आईएलएमटी के परियोजना अन्वेषक डॉ. कुंतल मिश्रा बताते हैं कि आईएलएमटी सर्वेक्षण से उत्पन्न डेटा संपत्ति अनुकरणीय होगी। भविष्य में कई युवा शोधकर्ता आईएलएमटी डेटा का उपयोग करते हुए विभिन्न विज्ञान कार्यक्रमों पर काम करेंगे। वहीं, एआरआईईएस में आईएलएमटी के परियोजना वैज्ञानिक डॉ. ब्रजेश कुमार ने कहा कि जब इस साल के अंत में नियमित विज्ञान परिचालन शुरू होगा, तो आईएलएमटी हर रात लगभग 10 जीबी डेटा का उत्पादन करेगा, जिसका विश्लेषण वेरिएबल (चर) और क्षणिक तारकीय स्रोतों को प्रकट करने के लिए किया जाएगा। उन्होंने आगे बताया कि परिष्कृत बैक-एंड उपकरणों की उपलब्धता के साथ 3.6 मीटर डीओटी, नजदीकी आईएलएमटी के साथ नए खोजे गए क्षणिक स्रोतों के तेजी से अनुवर्ती अवलोकन की सुविधा देगा।

वहीं, इस परियोजना के निदेशक प्रो. जीन सुरदेज, लीज विश्वविद्यालय, बेल्जियम और पॉज्नैन विश्वविद्यालय, पोलैंड बताते हैं कि आईएलएमटी से एकत्र किए गए डेटा आम तौर पर 5 वर्षों की अवधि में एक गहन फोटोमेट्रिक और एस्ट्रोमेट्रिक परिवर्तनशीलता सर्वेक्षण करने के लिए आदर्श रूप से अनुकूल होगा।

बताते चलें कि आईएएमटी सहभागिता में भारत के एआरआईएस, बेल्जियम स्थित लीज विश्वविद्यालय व बेल्जियम की रॉयल वेधशाला, पोलैंड की पॉजनैन वेधशाला, उज्बेकिस्तान स्थित उज्बेक विज्ञान अकादमी के उलुग बेग खगोलीय संस्थान और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ उज्बेकिस्तान का राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय, लावल विश्वविद्यालय, मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय, टोरंटो विश्वविद्यालय, यॉर्क विश्वविद्यालय और कनाडा स्थित विक्टोरिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ता शामिल हैं। इस टेलीस्कोप की डिजाइन और विकास बेल्जियम में एडवांस्ड मैकेनिकल और ऑप्टिकल सिस्टम्स (एएमओएस) कॉर्पोरेशन और सेंटर स्पैटियल डी लीज ने किया था। इससे देश के खगोल विज्ञानियों और शोधकर्ताओं को आशातीत फायदे मिलेंगे। मौजूदा सरकार की भी यह एक बड़ी उपलब्धि है।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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