क्या बेटी को पिता से शादी का खर्च पाने का अधिकार है?
खंडपीठ ने कहा कि ऐसे में पिता का यह दायित्व होता है कि वह अपनी बेटियों की शादी के उचित खर्चों को पूरा करे। अविवाहित बेटी का अपने पिता से शादी का खर्चा निकालने का अधिकार अब कानूनी अधिकार हो गया है।
केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में अपने एक फैसले में सुनाया कि एक अविवाहित बेटी, चाहे वह किसी भी धर्म से सम्बन्ध रखती है, अपनी शादी के खर्चों को पूरा करने के लिए अपने पिता से उचित राशि प्राप्त करने का अधिकार रखती है।
उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के न्यायमूर्ति अनिल के. नरेंद्रन और न्यायमूर्ति पी. जी. अजित कुमार ने कहा कि ऐसे अधिकारों को धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता है। अदालत ने कहा कि किसी के धर्म के आधार पर इस तरह के अधिकारों का दावा करने से भेदभावपूर्ण बहिष्कार नहीं किया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं ने मुख्य रूप से शादी के खर्च के लिए और निर्धारित संपत्ति पर उक्त राशि के लिए डिक्री क्रिएटिंग चार्ज के लिए 45,92,600 रुपये की वसूली की मांग की थी। उन्होंने अपने पिता को उक्त संपत्ति, जिस पर एक आवासीय घर का निर्माण किया गया था, को अलग करने या किसी भी तरह की बर्बादी करने से रोकने के लिए अस्थायी निषेधाज्ञा की मांग की, इस विवाद के आधार पर कि उन्होंने उक्त संपत्ति को अपनी मां के सोने के गहने बेचकर जुटाए गए धन का उपयोग करके खरीदा था।
अदालत ने यह आदेश दो अविवाहित बेटियों द्वारा दायर याचिका पर जारी किया, ताकि उनके पिता को अपनी संपत्ति को अलग करने से रोका जा सके जिससे वे उससे शादी के खर्च का दावा कर सकें। बच्चे अपनी मां के साथ रह रहे थे क्योंकि उनके पिता के साथ उनका वैवाहिक संबंध अलग हो गया था। उनके पिता और मां के बीच मुकदमेबाजी भी हुई।
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कोर्ट ने इस मामले में पाया कि याचिकाकर्ताओं के पिता और मां के वैवाहिक संबंध पूरी तरह से अलग-थलग प्रतीत होते हैं, जिसमें मुकदमेबाजी भी चल रही है और बेटियां अपनी मां के साथ रह रही हैं। आगे यह देखा गया कि याचिकाकर्ताओं के पास शादी के खर्च के लिए दावा की गई राशि की डिमांड की याचिका को छोड़कर शैक्षिक व्यय या उक्त संपत्ति से संबंधित कोई दावा नहीं किया गया है।
खंडपीठ ने कहा कि ऐसे में पिता का यह दायित्व होता है कि वह अपनी बेटियों की शादी के उचित खर्चों को पूरा करे। अविवाहित बेटी का अपने पिता से शादी का खर्चा निकालने का अधिकार अब कानूनी अधिकार हो गया है। खंडपीठ ने कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम से समानता लेकर पिता की अचल संपत्ति से होने वाले मुनाफे के खिलाफ अधिकार को लागू किया जा सकता है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो।
अदालत ने पाया कि उनकी शादी के लिए 50 सोने के गहने खरीदने के लिए बेटियों का ₹ 18.96 लाख का दावा प्रथम दृष्टया निराधार था क्योंकि वे पेंटेकोस्टल विश्वास का पालन करती थीं और उनके संप्रदाय की महिलाएं धातु के गहने नहीं पहनती थीं। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता शादी के उचित खर्चों को पूरा करने के लिए केवल एक राशि के हकदार थे, जिसका अनुमान प्रत्येक बेटी के लिए 7.5 लाख रुपये तक था।
बेंच ने खर्च के लिए 15 लाख रुपये की राशि सुरक्षित करने के लिए उनके पिता के स्वामित्व वाली संपत्ति की कुर्की की अनुमति दे दी। खंडपीठ ने कहा कि यदि पिता सावधि जमा या अन्य समान तरीकों के माध्यम से 15 लाख रुपये की सुरक्षा प्रदान करता है तो संपत्ति पर कुर्की को वापस लिया जा सकता है।
खंडपीठ ने कहा कि अविवाहित बेटी का अपने पिता से शादी का खर्चा निकालने का अधिकार अब कानूनी अधिकार बन गया है। इस प्रकार अदालत ने कहा कि इस मामले में पिता का यह दायित्व होता है कि वह अपनी बेटियों की शादी से संबंधित उचित खर्चो को पूरा करे।
- जे. पी. शुक्ला
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