लीज और रेंट में क्या है फर्क? एग्रीमेंट साइन करने से पहले जान लें इसकी बारीकियां
रेंट में मालिक हमेशा मालिक ही होता है जबकि लीज में किराएदार आगे चलकर उस संपत्ति का मालिक बन सकता है अगर वह उस संपत्ति का उस वक्त की कीमत दे देता है। लीज के अंत में पट्टेदार को अवशिष्ट मूल्य पर संपत्ति खरीदने का विकल्प मिलता है।
जब भी हम कोई मकान या गाड़ी किराए पर लेने जाते हैं तो उसके लिए हमें एक एग्रीमेंट बनाना होता है। एग्रीमेंट बनाते समय जो बातें सामने आती हैं वो आपके अंदर एक बड़ा कंफ्यूजन पैदा करती हैं। कंफ्यूजन यह होता है कि आप इसके लिए लीज बनवाएं या फिर रेंट एग्रीमेंट। तो आज हम आपको लीज और रेंट में अंतर बताते हैं।
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सबसे पहले आपको लीज के बारे में बताते हैं। लीज तब बनवाई जाती है जब हम कोई चीज ज्यादा अवधि के लिए ले रहे होते हैं। यानी कि 1 साल से ज्यादा के लिए और लगभग 10 से 15 साल तक। उदाहरण के लिए जब आप कोई ऑफिस अपने बिजनेस उपयोग के लिए किराए पर लेते हैं तब वहां लीज एग्रीमेंट का इस्तेमाल होता है। ऐसे ही विमानन कंपनिया फ्लाइट्स को लीज पर लेती हैं जो 10 से 15 सालों के लिए होता है। कंस्ट्रक्शन कंपनी अपनी मशीनरी का सामान भी लीज पर ही लेते हैं। कहने का मतलब यह है कि अगर ज्यादा समय के लिए कोई एसेट आप किराए पर लेते हैं तो वहां लीज एग्रीमेंट बनता है जिसे लीज डीड भी कहते हैं।
लीज के प्रकार-
वित्त लीज
परिचालन लीज़
बिक्री और लीस बैक
प्रत्यक्ष लीज
ओपन-एंडेड लीज
क्लोज एंडेड लीज
एकल निवेशक लीज
लीवरेज लीज
घरेलू लीज
अंतर्राष्ट्रीय लीज
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अब बात रेंट की करते हैं। रेंट एग्रीमेंट की जरूरत तभी पड़ती है जब आप 12 महीने से कम अवधि के लिए कोई चीज किराए पर लेते हैं। उदाहरण के लिए जैसे कि हम ओला या उबेर कैब 1 दिन 2 दिन या 5 दिन के लिए किराए पर लेते हैं। या फिर ऑफिस में काम के लिए कोई कंप्यूटर 10 दिन, 20 दिन या 25 दिन या फिर महीने भर के लिए बाहर से मंगाते हैं। रेंट एग्रीमेंट हमेशा 11 महीने की या उससे कम अवधि के लिए ही बनाया जाता है। सामान्यत: हम अपने घर के लिए भी रेंट एग्रीमेंट बनवाते हैं तो वह भी 11 महीने का ही होता है। कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि लीज हमेशा लॉन्ग टर्म के लिए होता है जबकि रेंट शॉर्ट टर्म के लिए।
लीज और रेंट के बीच कुछ और अंतर:
- अगर कोई भी सामान आप लीज पर लेते हैं तो इसके मेंटेनेंस की जिम्मेदारी आपकी होती है जबकि रेंट पर लिए गए सामान का मेंटेनेंस उसके मालिक ही करते हैं।
- लीज पर लिए गए सामान का किराया एक बार में ही निर्धारित हो जाता है जबकि रेंट पर ली गई चीजों का किराया महीने, दिन या फिर घंटे के हिसाब से बदलता रहता है। उदाहरण के लिए जैसे आप ने कोई ऑफिस 10 सालों के लिए लीज पर लिया है तो उसका किराया आप एक बार में ही फिक्स कर लेते हैं। लेकिन रेंट पर लिए गए मकान या फिर गाड़ियों का किराया इस महीने कुछ और हो सकता है और अगले महीने कुछ और हो सकता है। यह घंटों में भी बदल सकता है।
- रेंट एग्रीमेंट में आपका मकान मालिक एग्रीमेंट ब्रेक करके शॉट टर्म में मकान खाली करने को कह सकता है लेकिन लीज एग्रीमेंट में यह चीजें नहीं होतीं। उदाहरण के लिए अगर किसी मकान का लीज 10 सालों के लिए बना है और मकान मालिक 5 साल या 7 साल पर एग्रीमेंट ब्रेक करके इसे खाली करने को कहता है तो उसे भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है। आखिरी तक लीज के नियम और शर्तों को नहीं बदला जा सकता है।
- रेंट में मालिक हमेशा मालिक ही होता है जबकि लीज में किराएदार आगे चलकर उस संपत्ति का मालिक बन सकता है अगर वह उस संपत्ति का उस वक्त की कीमत दे देता है। लीज के अंत में पट्टेदार को अवशिष्ट मूल्य पर संपत्ति खरीदने का विकल्प मिलता है।
- लेखांकन मानक के अनुसार लीज के मानक निर्धारित हैं, जबकि किराए के लिए कोई विशिष्ट मानक जारी नहीं किया गया है।
- एक लीज एग्रीमेंट में दो पक्ष होते हैं, लेजर और लीजी यानी पट्टेदाता और पट्टेदार। इसके विपरीत, मकान मालिक और किरायेदार किराए के मामले में पक्षकार हैं।
- पट्टेदार पट्टेदाता को किराया का भुगतान करता है जबकि किरायेदार मकान मालिक को किराए का भुगतान करता है।
- रेंटल एग्रीमेंट अपने आप रिन्यू हो जाता है, लेकिन लीज के मामले में ऐसा नहीं है।
तुलना के आधार | लीज | रेंट |
लेखा मानक | एएस - 19 | कोई विशिष्ट लेखा मानक नहीं |
अवधि | लंबी अवधि | लघु अवधि |
पार्टी | लेसर और लेसी | लैंडलॉर्ड और किरायेदार |
मरम्मत | रखरखाव पट्टे के प्रकार पर निर्भर करता है | मकान मालिक |
संशोधन | अनुबंध की शर्तों को तब तक संशोधित नहीं किया जा सकता जब तक यह मौजूद है। | अनुबंध की शर्तों को मकान मालिक द्वारा संशोधित किया जा सकता है। |
- अंकित सिंह
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