डॉ मनमोहन सिंह के प्रति इतिहास आखिर क्यों दयालु होगा? समझिए विस्तार से!

Dr Manmohan Singh
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कमलेश पांडे । Dec 27 2024 12:22PM

देखा जाए तो प्रख्यात अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह भारत के 13 वें प्रधानमंत्री थे। वो लोकसभा चुनाव 2009 में मिली जीत के बाद, जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने, जिन्हें पांच वर्षों का कार्यकाल पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला था।

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह अब नहीं रहे, लेकिन पिछले 10 वर्षों से उनकी एक पंक्ति मुझे रह-रह कर चुभती आई है। वह यह कि वर्तमान मीडिया से ज्यादा इतिहास उनके प्रति दयालु होगा। चूंकि मैं इतिहास स्नातकोत्तर का विद्यार्थी रहा हूँ और पेशेवर मीडिया कर्मी भी हूँ, इसलिए उनकी बात और उसके मर्म को भलीभांति समझता हूं। इसलिए अमूमन सोचता रहता हूँ कि आखिर डॉ सिंह ने इतनी तल्ख टिप्पणी क्यों की? 

याद दिला दें कि जनवरी 2014 में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने कहा था कि "मैं मानता हूं कि अभी की मीडिया की तुलना में इतिहास मेरे प्रति दयालु होगा।" इसलिए यह यक्ष प्रश्न स्वाभाविक है कि आखिर डॉ मनमोहन सिंह के प्रति इतिहास क्यों दयालु होगा? किस स्तर तक यानी कितना होगा? और उन बातों-जज्बातों को जिन्हें खुद उन्होंने मुखरित होकर उठाया, या फिर मीडिया के उठाने के बावजूद भी उन पर चुप्पी साध ली, उसके बारे में इतिहास विद किस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे, वस्तुनिष्ठ अवलोकन करना जरूरी है। 

ऐसा इसलिए कि पत्रकारिता भी तो आज का इतिहास ही है। यह हर रोज गुजश्ते इतिहास का जीता-जागता सबूत है। कभी कभी तो वह खुद को दोहराता भी है, जैसा कि इतिहास बेकन ने कहा है। इसलिए सहज ही सवाल उठता है कि क्या मीडिया नासमझ है और इतिहास वस्तुनिष्ठ, जिस पर पक्षपात के आरोप लगते आए हैं! या फिर वो यानी डॉ सिंह जज्बाती, जिन्होंने मैडम (सोनिया गांधी) का यस मैन बनकर अपनी सियासत तो चमका ली, अपने युगान्तकारी नीतियों-रणनीतियों से कुछ लोगों को लाभान्वित भी कर गए! लेकिन जब एक शासक के रूप में राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को बचाने और आतंकवादियों व उनके आकाओं के खिलाफ सख्त प्रशासनिक फैसले लेने की जरूरत आई तो किंकर्तव्यविमूढ़ बन बैठे। 

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वहीं, राष्ट्रीय संसाधनों पर अल्पसंख्यकों के पहले अधिकार की बात छेड़कर बहुसंख्यक समाज के आंखों की किरकिरी बन बैठे। चाहे आरक्षण हो या बेरोजगारी, इसका समुचित समाधान अपने 10 वर्षीय शासनकाल में भी नहीं दे पाए, जिसके चलते एक बार राहुल गांधी भी उनसे नाखुश प्रतीत हुए और उसके बाद ही उन्हें चुनावी हार का भी सामना करना पड़ा। बावजूद इसके जब उनसे जुड़ी विभिन्न बातों को यदि समय की कसौटी पर कसा जाए, उनके विचारों और व्यवहारों को परखा जाए तो उपर्युक्त तीनों बातें सही हैं। 

इसके बावजूद, डॉ सिंह का पलड़ा इसलिए भारी है, क्योंकि वह स्वभाव से मृदु, पेशेवर तौर पर ईमानदार और राजनीतिक रूप से सदाशयी और स्पष्टवादी व्यक्ति थे। जिस दौर में उन्होंने सियासत की, जैसा उन्होंने कांग्रेस/यूपीए परिवार का विश्वास और भरोसा हासिल किया और जिन मानवीय मूल्यों को निभाया, उसमें वो सौ प्रतिशत खरे हैं। हां, इतना अवश्य है कि जब चांद भी बेदाग नहीं समझा जाता तो यह 'सियासी चांद' भी 26/11 जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के बाद आक्रामक कार्रवाई न करने के लिए जनमानस के कठघरे में खड़ा है! 

वहीं, देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है, का राग अलापकर अपने धवल इतिहास में भी उलाहना के कुछ पंक्तियों को सुनने के लिए हमेशा समुपस्थित रहेगा। बातें बहुत सारी हैं, जिन्हें गागर में सागर की तरह समाया नहीं जा सकता। फिर भी इतिहास के एक अध्ययनकर्ता के रूप में और मीडिया कर्मी के रूप में भी मैं कांग्रेस के इन विचारों से सहमत हूँ कि डॉ. मनमोहन सिंह को उनके गरिमामय आचरण, सार्वजनिक सेवा के प्रति प्रतिबद्धता, गहन ज्ञान और विनम्रता के लिए हमेशा याद रखेगा। 

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि वह अपने पीछे आर्थिक सुधारों, राजनीतिक स्थिरता और प्रत्येक भारतीय के जीवन के उत्थान के लिए समर्पण की विरासत छोड़ गए हैं। पहले एक टेक्नोक्रेट के रूप में, उसके बाद अर्थशास्त्री के रूप में और फिर भारत के प्रधान मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल सामाजिक कल्याण पर ध्यान देने के साथ आर्थिक समृद्धि और विश्व मानचित्र पर भारत की स्थिति को मजबूत करने के लिए याद किया जाएगा। 

कहना न होगा कि अपने शांत लेकिन लचीले नेतृत्व के लिए जाने जाने वाले, वह एक सिद्धांतवादी व्यक्ति थे जिन्होंने देखभाल, चिंता और देश के कल्याण के अलावा किसी भी चीज़ के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता के साथ कठोर निर्णय लिए। एक नेता के रूप में, डॉ. सिंह ने शायद ही कभी सुर्खियां बटोरीं हों, फिर भी उनके फैसले भारतीय समाज के हर पहलू और उससे परे गहराई से गूंजते रहे। इस तरह से राजनीतिक सहयोगियों, विरोधियों और विश्व नेताओं से उन्होंने जो विश्वास और सम्मान अर्जित किया, वह उनके गहरे प्रभाव का प्रमाण है।

देखा जाए तो प्रख्यात अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह भारत के 13 वें प्रधानमंत्री थे। वो लोकसभा चुनाव 2009 में मिली जीत के बाद, जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने, जिन्हें पांच वर्षों का कार्यकाल पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला था। वहीं, उन्हें 22 जून 1991 से 16 मई 1996 तक पीवी नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल में वित्त मंत्री के रूप में किए गए आर्थिक सुधारों का श्रेय दिया जाता है।

उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए, जहां से उन्होंने पीएचडी की उपाधि हासिल की। फिर उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी-फिल भी किया। उनकी पुस्तक इंडियाज एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ भारत की व्यापार नीति की पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है।

डॉ. सिंह ने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की। वह पंजाब विश्वविद्यालय और बाद में प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकनामिक्स में प्राध्यापक रहे।  

इसी बीच वह संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन सचिवालय में सलाहकार भी रहे और 1987 और 1990 में जेनेवा में साउथ कमीशन में सचिव भी रहे। 1971 में डॉ. सिंह भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किए गए। इसके बाद 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। मनमोहन सिंह योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे हैं। इसके अलावा रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे। भारत के आर्थिक इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब वह 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मंत्री रहे।

1985 में राजीव गांधी के शासन काल में मनमोहन सिंह को योजना आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस पद पर उन्होंने लगातार पांच वर्षों तक कार्य किया, जबकि 1990 में वह प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार (Economic Reforms of India 1991) बनाए गए। जब पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने मनमोहन सिंह को 1991 में अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया और वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंपा। इस समय वह न तो लोकसभा और न ही राज्यसभा के सदस्य थे। मगर संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सरकार के मंत्री को संसद का सदस्य होना आवश्यक होता है। इसलिए उन्हें 1991 में असम से राज्यसभा भेजा गया था।

डॉ. मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में कार्य करते हुए साल 1991 में शुरू किए गए आर्थिक उदारीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसमें सरकारी नियंत्रण को कम करना, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को बढ़ाना और स्ट्रक्चरल रिफॉर्म्स को लागू करना शामिल था, जिसने भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजारों के लिए खोल दिया था।

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा): 2005 में शुरू किए गए इस अधिनियम ने प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन के वेतन रोजगार की गारंटी दी, जिससे लाखों लोगों की आजीविका में उल्लेखनीय सुधार हुआ और ग्रामीण बुनियादी ढांचे में वृद्धि हुई।

सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI): 2005 में पारित आरटीआई ने नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों से जानकारी मांगने का अधिकार दिया, जिससे शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा मिला।

आधार की सुविधा: आधार परियोजना निवासियों को विशिष्ट पहचान प्रदान करने, विभिन्न सेवाओं तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने के लिए शुरू की गई थी।

प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण: डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) सिस्टम को लागू किया, जिसने कल्याण वितरण को सुव्यवस्थित किया और कई खामियों को दूर किया।

कृषि ऋण माफी (2008): कृषि संकट को दूर करने के लिए 60,000 करोड़ रुपए के ऋण माफी के माध्यम से किसानों को राहत प्रदान की।

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता: मनमोहन सिंह की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर बातचीत थी। इस समझौते के तहत, भारत को परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) से छूट मिली। इसके तहत भारत को अपने नागरिक और सैन्य परमाणु कार्यक्रमों को अलग करने की अनुमति मिली। इस डील के तहत भारत को उन देशों से यूरेनियम आयात करने की अनुमति मिली, जिनके पास यह तकनीक है।

विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) अधिनियम 2005

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) अधिनियम 2005 को 23 जून 2005 को भारत के राष्ट्रपति की मंजूरी मिली। यह अधिनियम 10 फरवरी 2006 को विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) नियम 2006 के साथ लागू हुआ।

जीडीपी 10.08% पर पहुंच गई: राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग द्वारा गठित रियल सेक्टर सांख्यिकी समिति द्वारा तैयार जीडीपी पर आंकड़ों के अनुसार, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के तहत 2006-2007 में भारत ने 10.08% की वृद्धि दर दर्ज की थी। यह 1991 में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद से भारत में दर्ज की गई सबसे अधिक जीडीपी थी। उच्चतम जीडीपी वृद्धि दर 2006-2007 में 10.08% थी।

इन उपलब्धियों के आधार पर निर्विवाद रूप से यह कहा जा सकता है कि राजनीति के इस विद्वान संत ने अपनी क्षमता से बढ़कर कार्य किया। हर बात में सियासी उछलकूद मनाने वालों को, यूपीए गठबंधन को 10 साल तक सफल नेतृत्व देना सबके बूते की बात नहीं थी। इसके लिए वह सदैव याद किये जाएंगे। इतना विद्वान प्रधानमंत्री न पहले हुआ था, न होगा। उनकी नीतियां इतनी कालजयी रहीं कि परवर्ती मोदी सरकार ने भी किंतु-परंतु करते हुए उन्हें अपना लिया।

इतना ही नहीं, सरदार मनमोहन सिंह ने अपने कलीग को  जो सम्मान दिया, वैसा राजनीति में कम ही लोग प्रेरित करते हैं। उनकी ईमानदारी हमेशा प्रेरणा बनी रहेगी और वह हमेशा उन लोगों के बीच खड़े रहेंगे जो वास्तव में इस देश से प्यार करते हैं। एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो अपने विरोधियों द्वारा अनुचित और गहरे व्यक्तिगत हमलों के बावजूद देश की सेवा करने की अपनी प्रतिबद्धता पर दृढ़ रहे। वह अंत तक वास्तव में समतावादी, बुद्धिमान, दृढ़ इच्छाशक्ति वाले और साहसी थे।  

वस्तुतः राजनीति की कठिन दुनिया में एक अद्वितीय प्रतिष्ठित और सज्जन व्यक्ति थे। मनमोहन सिंह ने असीम बुद्धिमत्ता और निष्ठा के साथ भारत का नेतृत्व किया। उनकी विनम्रता और अर्थशास्त्र की गहरी समझ ने देश को प्रेरित किया। जबकि कांग्रेस ने एक गुरु और मार्गदर्शक खो दिया है। हममें से लाखों लोग जो उनके प्रशंसक थे, उन्हें अत्यंत गर्व के साथ याद करेंगे। एक राजनेता, एक विद्वान, एक नेता, एक दूरदर्शी के रूप में वो भारत के सबसे गौरवान्वित पुत्रों में से एक रहे, जिनकी बहुत याद आएगी।

हां, भ्रष्टाचार न रोक पाने, सोनिया गाँधी के इशारे पर चलने वगैरह-वगैरह तमाम आरोपों और तमाम ख़ामियों के बावजूद भारत आज जो समृद्धि देख रहा है, उसका दरवाज़ा मनमोहन सिंह ने ही खोला था। आज जो फ्लाइट्स फुल चल रही हैं, होटलों में कमरे नहीं मिल रहे, मिडिल क्लास अपने बच्चों को इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ा पा रहा है, इकोनॉमी बूम कर रही है, इस सबकी बुनियाद सिंह साहब ने ही रखी थी। इसलिए उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

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