सपा और बसपा ने कांग्रेस को इस तरह भाग कर समर्थन क्यों दिया ?
मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस बहुमत के आंकड़े से दो कदम पीछे क्या रही, सपा−बसपा ने तुरंत कांग्रेस को समर्थन की घोषणा कर दी, पहले बसपा ने तो फिर समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के प्रति नरमी दिखाई, जो यूपी की राजनीति में बदलाव का साफ संकेत हैं।
पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस के उभार के साथ ही समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के कांग्रेस को लेकर सुर बदलने लगे हैं। मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस बहुमत के आंकड़े से दो कदम पीछे क्या रही, सपा−बसपा ने तुरंत कांग्रेस को समर्थन की घोषणा कर दी, पहले बसपा ने तो फिर समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के प्रति नरमी दिखाई, जो यूपी की राजनीति में बदलाव का साफ संकेत हैं। कांग्रेस को समर्थन की घोषणा करने वाली ये वही बसपा है, जिसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने मध्य प्रदेश चुनाव के दौरान ऐलान किया था कि बसपा अब कांग्रेस से कभी गठबंधन नहीं करेगी। वहीं अखिलेश यादव भी कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर ज्यादा उत्साहित नजर नहीं आते थे। अभी तक सपा व बसपा यूपी के गठबंधन में कांग्रेस को 4−5 सीट देने की ही बात किया करते थे, लेकिन परिस्थितियां अब बदल गई हैं। पांच राज्यों में कांग्रेस की जीत से उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का सियासी कद बौना पड़ता दिख रहा है। लगातार हार के चलते जिन कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा हुआ था, इन नतीजों से उनका उत्साह बढ़ गया। साथ ही राहुल के नेतृत्व को भी मजबूती मिलना तय है। निश्चित तौर पर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए पांच राज्यों के चुनाव परिणाम मोरल बूस्टर की तरह काम करेंगे।
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उधर, सपा और बसपा ने जिस तरह से उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की दुर्दशा के बाद उसे साइड लाइन करके गठबंधन तैयार कर लिया था और कांग्रेस को शामिल करने पर असमंजस व्यक्त कर रहे थे, अब उन्हें अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी। इन चुनाव नतीजों से सपा और बसपा को अब कांग्रेस को भी बराबर की अहमियत देनी पड़ेगी। यूपी में हाशिये पर पहुंच चुकी कांग्रेस को इन विधानसभा चुनाव के परिणामों से जहां संजीवनी मिलेगी, वहीं लोकसभा चुनाव में होने वाले सपा−बसपा गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर उसकी बार्गेन पॉवर भी बढ़ेगी। सम्मानजनक सीटें नहीं मिलने पर कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने की बात भी कर सकती है और उसकी जीत के आंकड़े में भी उछाल आ सकता है। इन चुनाव परिणामों ने यह भी देखने को मिला कि बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक और दलित वर्ग कांग्रेस के साथ आया। यूपी के शहरी सीटों पर भी कांग्रेस की पकड़ रही है, जहां अल्पसंख्यक और दलित वोटर ज्यादा हैं लिहाजा कांग्रेस अगर अकेले लड़ती है तो भी वह 2009 के आंकड़े को तो छू ही सकती है। तब कांग्रेस को 20 सीटें मिली थीं।
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बहरहाल, सच्चाई यह भी है कि एक तरफ कांग्रेस खुश है तो वहीं उत्तर प्रदेश में कई बार सत्ता का स्वाद चख चुकी समाजवादी पार्टी का पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव में बुरी तरह से हार का मुंह देखना पड़ा। इसलिये कांग्रेस की जीत पर अखिलेश को इतराने और बीजेपी को आइना दिखाने से पहले स्वयं भी आईना देख लेना चाहिए। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को नोटा (इनमें से कोई नहीं) से भी कम वोट मिले। नोटा को जहां 0.5 प्रतिशत वोट मिले, वहीं समाजवादी पार्टी को मात्र 0.2 प्रतिशत ही मत मिले। समाजवादी पार्टी से बेहतर प्रदर्शन बहुजन समाज पार्टी का रहा। बसपा छत्तीसगढ़ में 3.7 फीसदी, मध्य प्रदेश में 4.8 फीसदी और राजस्थान में चार फीसदी मतों के साथ कई सीटें हासिल करने में कामयाब रही। वहीं सपा को इन राज्यों में क्रमशः 0.2 फीसदी, 1.11 फीसदी और 0.2 फीसदी मतों से ही संतोष करना पड़ा है। कांग्रेस के शानदार प्रदर्शन के बाद से कांग्रेसियों ने यह संकेत देना भी शुरू कर दिया है कि यूपी में उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती है। पांच राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन गठबंधन की राजनीति में कांग्रेस की भूमिका को लेकर सपा−बसपा पर दबाव भी बढ़ाएगा और उन्हें अपने पुराने स्टैंड से वापस लौटने कें लिए मजबूर होना पड़ सकता है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर ने भी कहा है कि वह यूपी के समान विचारधारा वाले को साथ लेकर चलने के पक्षधर हैं, लेकिन इसके लिये वह सम्मानजनक समझौते की बात भी करते हैं। बदली परिस्थिति में प्रदेश में भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों के गठबंधन की भूमिका नए सिरे से लिखी जानी तय है।
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कांग्रेस, बसपा और सपा से अलग बीजेपी की बात कि जाये तो पांच राज्यों के चुनाव नतीजे भाजपा के अनुकुल भले ही नही रहें हों, लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इन राज्यों में हुई चुनावी सभाओं की जीत का प्रतिशत 50 फीसदी से अधिक रहा। तेलंगाना जहां पहले भी भाजपा को कोई उम्मीद नहीं थी और छत्तीसगढ़ जहां नतीजे सभी पूर्वानुमानों के उलट आए, उनको अपवाद मान लें तो मप्र और राजस्थान में पहले की तरह योगी फैक्टर ने काम किया। तेलंगाना में उन्होंने आठ सभाएं की थीं। वहां ओवैसी के खिलाफ दिया गया उनका बयान कई दिनों सुर्खियों में रहा। वहां पार्टी को घोशा महल की जो एक मात्र सीट मिली, योगी ने वहां भी चुनाव रैली की थी। छत्तीसगढ़ के जिन करीब डेढ़ दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में योगी की जनसभाएं हुई थीं उनमें से पांच भाजपा के खाते में गईं। योगी ने 23 अक्टूबर सें 18 नवंबर के दौरान छत्तीसगढ़ को हफ्ते भर समय दिया था। वहां उन्होंने 23 जनसभाएं की थीं। मध्य प्रदेश में योगी ने तीन दिन में ताबड़तोड़ 17 सभाओं को संबोधित किया। यहां योगी का स्ट्राइक रेट 70 फीसदी से अधिक रहा। योगी ने राजस्थान में 5 दिन में सर्वाधिक 26 सभाएं कीं। कयासों के उलट वहां भाजपा ने काफी हद तक भरपाई की यहां भी योगी की सफलता की दर 50 फीसदी से अधिक रही।
-संजय सक्सेना
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