यूपी में दम तोड़ती गठबंधन की सियासत को जिंदा रखने का कारण क्या है?
इतना खराब प्रदर्शन होने के बाद भी यह दल एक क्यों हो जाते हैं ? इसकी वजह है एक उम्मीद ? उम्मीद इस बात की कि मुस्लिम वोटों के सहारे वह बीजेपी को शिकस्त दे सकते हैं क्योंकि इन सबको लगता है कि हिन्दू तो आपस में बंटा हुआ है।
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एक छतरी के नीचे आने के बाद सियासी ऊर्जा से भरे हैं। दोनों दलों का नेतृत्व ऐसा माहौल बनाने में लगा है मानो अब उत्तर प्रदेश में बीजेपी का ‘गेम ओवर’ हो गया है। ऐसा ही माहौल 2017 के विधान सभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बनाने का प्रयास किया गया था। दोनों ही मुकाबलों की खास बात यह थी कि बीजेपी को यूपी में साइड लाइन करने की विरोधियों की जंग में समाजवादी पार्टी एक प्रमुख किरदार थी। 2017 का विधान सभा चुनाव समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से हाथ मिलाकर लड़ा था। 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन हुआ था। दोनों ही बार जब चुनाव नतीजे आये तो गठबंधन दलों का ग्राफ धरातल पर नजर आया।
2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीए गठबंधन यानि बीजेपी प्लस को कुल 325 सीटें मिली थीं। इसमें से अकेले बीजेपी ने 384 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे जिसमें 312 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं बीजेपी गठबंधन की अन्य दो पार्टियों में अपना दल (सोनेलाल) ने 11 सीटों में नौ सीटें और भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी ने आठ में से चार सीटें जीती थीं। वहीं मुख्य विपक्षी दल के रूप में सपा और कांग्रेस को जनता ने पूरी तरह से नकार दिया था। तब इस गठबंधन को मात्र 54 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा था। कांग्रेस को चुनाव में 114 सीटों में केवल सात सीटों पर जीत मिली थी, वहीं समाजवादी पार्टी को 311 सीटों में से केवल 47 सीटों पर जीत मिली थी। इसी तरह से बात 2019 के लोकसभा की कि जाये तब सपा-बसपा के बीच गठबंधन हुआ था। तब भी वैसा ही माहौल बनाया गया था, जैसा 2017 में बनाने की कोशिश की गई थी। परंतु नतीजे इस बार भी बीजेपी के ही पक्ष में आये। समाजवादी पार्टी को मात्र पांच और बसपा को दस सीटों पर जीत हासिल हुई थी।
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इतना खराब प्रदर्शन होने के बाद भी यह दल एक क्यों हो जाते हैं ? इसकी वजह है एक उम्मीद ? उम्मीद इस बात की कि मुस्लिम वोटों के सहारे वह बीजेपी को शिकस्त दे सकते हैं क्योंकि इन सबको लगता है कि हिन्दू तो आपस में बंटा हुआ है। इसी के चलते गैर बीजेपी नेता हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचार पर चुप्पी साधे रहते हैं, जबकि मुसलमानों के साथ छोटी-सी भी घटना घट जाये तो जमीन-आसमान एक कर देते हैं। याद कीजिये जब सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका गांधी वाड्रा भाजपा शासित राज्यों में जरा-सी घटना पर भी सिर आसमान पर उठा लेती हैं। खासकर महिला उत्पीड़न के मामलों को तो यह लोग बेहद ही तीखे अंदाज में उठाते हैं। राहुल-प्रियंका ने कुछ वर्ष पूर्व योगी सरकार के प्रथम कार्यकाल में यूपी के हाथरस मामले को जोर-शोर से उठाया था। तब एक दलित युवती की बलात्कार के बाद हत्या किये जाने की बात सामने आई थी। पहली अक्टूबर 2020 को जब प्रियंका गांधी दिल्ली से हाथरस पीड़िता के परिवार से मिलने जा रही थीं तो पुलिस ने ग्रेटर नोएडा के पास उनका काफिला रोक दिया था। तब उन्होंने मीडिया से कहा कि उनकी भी बेटी है, इसलिए एक मां के नाते उन्हें ऐसी घटनाओं से बहुत गुस्सा आता है। प्रियंका ने उन्नाव दुष्कर्म कांड को लेकर योगी सरकार पर जमकर सवाल उठाए थे। इस मामले में उनकी सक्रियता देखते ही बनती थी। एक तो मामला भाजपा शासित राज्य का था, दूसरा आरोपों के घेरे में बीजेपी विधायक था। प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को घेरते हुए पूछा था कि सरकार को बताना चाहिए कि वो महिलाओं के साथ है या अपराधियों के साथ? इसी प्रकार 21 जनवरी 2022 को यूपी के बुलंदशहर जिले में एक किशोरी की हत्या का मामला सामने आया था। परिजनों का आरोप था कि किशोरी की गैंगरेप के बाद हत्या की गई। प्रियंका गांधी 3 फरवरी 2022 को यूपी के बुलंदशहर पहुंचीं, जहां उन्होंने पीड़ित परिजनों से मुलाकात कर पुलिस और प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए। 4 फरवरी, 2024 को सोशल मीडिया एकाउंट एक्स पर प्रियंका गांधी ने उप्र के बांदा में एक जज की मौत के मामले को उठाने में देरी नहीं की और प्रदेश सरकार पर जमकर अपनी भड़ास भी निकाली। एक जिम्मेदार नेता और नागरिक के नाते प्रियंका की महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों और अत्याचार पर मुखरता काबिले तारीफ नजर आयी, लेकिन यह दर्द दिखावा था। दरअसल वह शुद्ध रूप से सियासत कर रही थीं क्योंकि प्रियंका गांधी की सारी सक्रियता भाजपा या एनडीए शासित राज्यों में ही दिखाई देती है। उन्हें न जाने क्यों भाजपा शासित राज्यों में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों पर ही गुस्सा आता है, लेकिन जहां गैर भाजपा सरकारें हैं, वहां महिलाओं के उत्पीड़न के मामले सामने आने पर गांधी परिवार चुप्पी साध लेता है।
मणिपुर हिंसा पर कांग्रेस के गांधी परिवार सहित हर छोटे बड़े नेता ने मणिपुर और दिल्ली की केंद्र की सरकार पर तीखी बयानबाजी की। सरकार को आरोपों के कटघरे में खड़ा किया। मोदी से बार-बार पूछा गया कि वह मणिपुर क्यों नहीं जाते हैं? लेकिन लगभग इसी समय कांग्रेस शासित राज्यों- राजस्थान (अब यहां बीजेपी सरकार है), छत्तीसगढ़ और गैर भाजपा शासित राज्यों- बिहार, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल आदि में महिला उत्पीड़न के मामलों में प्रियंका गांधी ने मौन धारण करके रखा। राजस्थान में तत्कालीन गहलोत सरकार के पांच साल के शासन में बलात्कार और महिला उत्पीड़न की घटनाओं की बाढ़-सी आ गई थी। महिला सुरक्षा में नाकाम गहलोत सरकार के कारण राजस्थान में महिलाओं के साथ हुए अत्याचार, दुराचार और बलात्कार जैसी जघन्य घटनाओं को राजस्थान कभी नहीं भूलेगा, लेकिन गांधी परिवार को यहां न कुछ दिखाई दिया और न ही कुछ सुनाई दिया, परिणाम यह हुआ कि जनता ने ही विधान सभा चुनाव में गहलोत सरकार का उखाड़ कर फेंक दिया।
यहां पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में महिलाओं के साथ हुए अत्याचार की घटना पर कांग्रेस और गांधी परिवार के रवैये की भी चर्चा जरूरी है। जो खबरें सामने आ रही हैं, उन्हें सुनकर आत्मा सिहर उठती है। संदेशखाली की कई हिंदू महिलाओं ने तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेता शाहजहां शेख और उनके समर्थकों पर पिछले कुछ वर्षों में रात-रात भर यौन उत्पीड़न और बलात्कार करने का आरोप लगाया है। सोशल मीडिया पर वायरल विभिन्न समाचार चैनलों को दिए गए साक्षात्कारों के आधार पर महिलाओं की गवाही के अनुसार, महिलाओं को अक्सर और लापरवाही से रात में उनके घरों से उठाया जाता है और टीएमसी कार्यालय ले जाया जाता है जहां गुंडों द्वारा उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। उन्हें धमकी दी जाती है कि अगर उन्होंने बात नहीं मानी तो उनके पतियों को मार दिया जाएगा। जैसा कि महिलाओं ने बताया है, यह यौन उत्पीड़न की कोई आकस्मिक या भयावह घटना नहीं है, बल्कि इन महिलाओं के साथ ये अत्याचार और शोषण वर्षों से जारी था। महिलाओं का आरोप है कि स्थानीय पुलिस, प्रशासन भी उनकी बात नहीं सुनता था। मुख्यधारा की मीडिया ने भी संदेशखाली पर व्यापक रूप से रिपोर्ट दिखाई। फिर भी किसी कथित बुद्धिजीवी और सेलिब्रिटी ब्रिगेड ने निंदा का एक शब्द भी ममता सरकार के खिलाफ नहीं बोला। इस अति संवेदनशील और गंभीर मुद्दे पर देश की सबसे पुरानी पार्टी के कर्णधारों प्रियंका गांधी वाड्रा और उनके भाई राहुल गांधी की चुप्पी भी उन्हें सवालों के घेरे में खड़ा करती है। राहुल गांधी हर छोटे-बड़े मुद्दे पर केंद्र और भाजपा शासित सरकारों को घेर रहे हैं। ऐसे में अहम सवाल यह है कि संदेशखाली की पीड़ितों के लिए उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री से न्याय क्यों नहीं मांगा? वहीं संदेशखाली पर प्रियंका गांधी की चुप्पी यह साबित करती है कि उन्हें महिला सुरक्षा और बेटियों की अस्मिता से कोई खास लेना-देना नहीं है।
-अजय कुमार
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