पशुओं संबंधी आदेश का विरोध करने से पहले जरा यह भी सोचें
पशुओं के प्रति क्रूरता के लिए रोकने केंद्र के नए कानून का विवेकहीन विरोध या फिर उसका समर्थन करने से पहले कुछ महत्वपूर्ण बातें हमें ध्यान में रखनी चाहिए।
पशुओं के प्रति क्रूरता के लिए रोकने केंद्र के नए कानून का विवेकहीन विरोध या फिर उसका समर्थन करने से पहले कुछ महत्वपूर्ण बातें हमें ध्यान में रखनी चाहिए।
1. सम्पूर्ण विश्व में अन्तराष्ट्रीय स्तर पर पशुओं के साथ क्रूरता रोकने के लिए आन्दोलन चल रहे हैं।
2. कहा जा रहा है कि कृषि और पशुपालन राज्यों का विशिष्ट अधिकार है और इस आदेश से केंद्र उनके इस अधिकार का अतिक्रमण कर रही है। तो सबसे पहले राज्य सरकारें इस बात को समझ लें कि राज्य चलाने के लिए जो कानून और संविधान बनाया गया है उनका सुचारू रूप से पालन करना उनका "फर्ज़" है न कि "अधिकार", दूसरा, देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए शासन के लिहाज से देश को केंद्र और राज्य दो भागों में बाँटा गया ताकि हर राज्य अपने देश काल, वातावरण और रहन सहन के हिसाब से अपने नागरिकों जीव जंतुओं एवं पर्यावरण की रक्षा कर सके। हर राज्य की अपनी नगर निगम व्यवस्था होती है, कानून व्यवस्था होती है, अपनी पुलिस फोर्स होती है लेकिन सेना पूरे देश की एक ही होती है। उसी प्रकार देश का पर्यावरण मंत्रालय पूरे देश के वन्यजीवों एवं जलवायु के संरक्षण के लिए होता है। इसलिए इस मंत्रालय द्वारा बनाया गया कोई भी कानून देश के पर्यावरण एवं वन्य जीवों की रक्षा के लिए ही होता है।
3 "बीफ" केवल गोमांस नहीं होता है। बीफ में भैंस, बैल, सांड आदि का मांस होता है और इस नए कानून ने देश के वैध बूचड़खाने बन्द नहीं किए हैं और न ही बीफ पर प्रतिबंध लगाया है।
4 बीफ के नाम पर गोवध करना और विरोध स्वरूप बीफ पार्टी करके गोमांस का सेवन या तो विकृत मानसिकता है या फिर देश की भोली भाली जनता को मूर्ख बनाकर अपने राजनैतिक हित साधने की गंदी राजनीति।
5 और आखिरी लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात कि राज्यों में सरकार किसी भी पार्टी की हो उसका केवल एक लक्ष्य होना चाहिए कि वह एक दूसरे एवं केंद्र के साथ मिलकर देश को विकास एवं आपसी सौहार्द के पथ पर आगे ले जाएं न कि अपने अपने अधिकारों की दुहाई दे कर अपनी अपनी पार्टी के राजनैतिक हितों को साधने के लिए पूरे देश में अशांति और नफरत का वातावरण फैलाएँ।
इस देश के हर नागरिक का अधिकार है कि वह हर नेता हर मंत्री, हर पार्टी, हर सरकार से कहे कि वे अपने अधिकारों की बात करने से पहले अपने फर्जों का निर्वाह करें क्योंकि अधिकार फर्ज निभाने के बाद खुद-ब-खद प्राप्त होते हैं छीने नहीं जाते।
डॉ. नीलम महेंद्र
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